पिछले कुछ दिनों से मैं अपनी एक लम्बी कविता - रक्कासा सी नाचे दिल्ली आपको सुना रहा था। यह कविता आज से कई वर्ष पहले लिखी गयी थी। हाँ,इसका अंत करते-करते मैंने आज की कुछ पंक्तिया भी जोड़ दीं।यह न तो किसी दुर्भावना से लिखी गयी थी और ना ही किसी पूर्वाग्रह से। एक दिन मैं अपने कुछ मित्रों के साथ रात को सड़क पर घूम रहा था। घूमते-घूमते इस बात पर चर्चा होने लगी कि किस तरह बच्चन जी ने मधुशाला लिख दी। केवल मदिरा की बात करते-करते वे ज़माने के बारे में क्या-क्या कह गए। बस, हम में से कुछ मित्रों ने भी ठान लिया कि हम भी ऐसा ही कोई प्रयास करके देखेंगे। सभी मित्र थोड़ा-बहुत लिखने-पढने से तो जुड़े ही थे। किसी ने चाय को अपना विषय चुना,तो किसी ने पान की दुकान को।मैंने दिल्ली शहर को ही चुन लिया, क्योंकि मैं पिछले कई साल से दिल्ली में रह रहा था। और बस-हो गयी रक्कासा सी नाचे दिल्लीशुरू।
अब पिछले कुछ समय से मेरा मन कह रहा है कि मैं अमेरिका के बारे में कुछ लिखूं। यहाँ कुछ बातें मैं आपको और कहना चाहूँगा-
1अपने हर प्लान को मैं एक पूर्वघोषित समय में पूरा कर सकूं यह कोई आवश्यक नहीं।
२मुझे समय-समय पर अमेरिका के बारे में लोगों का जो द्रष्टिकोण सुनने-पढने को मिलता रहा है मैं उसे किसी कसौटी पर उतारने की कोई कोशिश नहीं करूँगा,बल्कि मैं वही लिखूंगा जो मेरी अपनी सोच होगी ।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Saturday, February 26, 2011
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