मेरी एक और लम्बी कविता - रक्कासा सी नाचे दिल्ली जल्दी ही आप पढेंगे। दिल्ली में लगभग ८ साल रहने के दौरान मैंने देखा कि इस शहर में कुछ है जो इसे औरों से तो अलग करता ही है,इसे हर पल अपने-आप से भी अलग करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह शहर पल-पल रंग बदलता है। यह बनता है,यह बिगड़ता है,यह फिर बनता है।
दिल्ली की गलियों में मानसिक पर्यटन का अपना ही मज़ा है। तो लीजिये सुनिए-एक नई सदी में पुराने ऐतिहासिक शहर के धमाल की दिलचस्प दास्ताँ- "रक्कासा सी नाचे दिल्ली"
गिल्ली डंडे की बाज़ी में अब 'कॉमन-वेल्थ' शॉट जड़ती
दिल्ली अब छोड़ बीसवीं को,इक्कीस सदी में लो बढ़ती
ऊँची मीनारों की दिल्ली,ऊँचे किरदारों की दिल्ली
ऊँची जनता ,ऊँचे नेता ,ऊँचे सरदारों की दिल्ली
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Sunday, February 20, 2011
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