Friday, April 27, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 55 ]

     सना और सिल्वा दोनों ही बहुत खुशमिजाज़ थीं. उनका दिमाग अपनी उम्र से कुछ आगे ही था. लेकिन फिर भी उनकी इच्छा बहुत पढ़ने से ज्यादा दुनिया देखने की थी. उन्हें जब भी कोई घूमने का अवसर मिलता, वे उसे छोड़ती नहीं थीं.पानी दोनों की पहली पसंद था, नदी,समंदर, सरोवर और झीलें उनके प्रिय स्थान होते थे.  पिछले शनिवार को एशिया से आये एक पॉप-स्टार का जीवंत कार्यक्रम देखने के बाद से उन्हें कई बार गुनगुनाते सुना गया था...
          "कभी पत्थर पे पानी, कभी मिट्टी में पानी...कभी आकाश पे पानी, कभी धरती पे पानी...
           दूर धरती के तल में, बूँद भर प्यास छिपी है, सभी की नज़र बचा कर वहीँ जाता है पानी..."
     सच में पानी की बेचैनी भी बड़ी अजब है, सफ़ीने इसी में तैरते हैं, इसी में डूबते हैं...सना मेंडोलिन बजाती, सिल्वा गुनगुनाती. दुनिया ने अपने को जवान बनाये रखने के कितने नुस्खे ईज़ाद कर रक्खे  हैं.जो लोग  दुनिया से चले जाते हैं, वे भी फिर-फिर लौट कर आते हैं. और क्या, सिल्वा रस्बी की तरह दीन-दुनिया  खोकर ही तो गाती थी.
     पेरिना डेला के आने की तैयारियों में जुट गई.बहुत सालों के बाद ऐसा मौका आ रहा था, जब डेला अपने पति के साथ स्वदेश आ रही थी. किन्ज़ान की उम्र से भी कम से कम दस वर्ष घट गए थे.सना और सिल्वा तो अपने पिता से पिछली बार तब मिलीं थीं, जब वे टीन एज में भी नहीं आईं थीं.और अब ...अब तो उनके कमरे के बाहर उनकी नेम-प्लेट्स लगी थीं- 'सना रोज़ और सिल्वा रोज़'.
     किसी पिता के लिए यह बेहद गौरव का क्षण होता है, जब वह दीवार पर अपने बच्चों की नेम-प्लेट लगी देखे. पेरिना ने डेला के ख़त को कई बार पढ़ा था. और किन्ज़ान ने तो झटपट मकान के पिछवाड़े ख़ाली पड़े मैदान में दो कमरे और बनवाने ही शुरू कर दिए थे. 
     माता-पिता के लिए तो  उनके बच्चों के आने की खबर-गंध ही तमाम  दुनिया छोटी पड़ने की निशानी होती है.उन्हें लगता है कि उनका बस चले तो आकाश को थोड़ा और ऊंचा बाँध दें,क्षितिज को ज़रा दूर खिसका दें...
     सना और सिल्वा ने नए कमरों की साज-सज्जा में पूरा दखल दिया. 
     जब किसी बसेरे में तीन पीढ़ियाँ एक साथ रहने का ख्वाब सजाती हैं, तो स्थिति बड़ी दिलचस्प होती है.एकदम नई पीढ़ी अपने लिए ज्यादा जगह नहीं चाहती, उसे लगता है, अभी दुनिया देखनी है, किसी सोन-पिंजरे में कैद होकर थोड़े ही रहना है.
      वर्तमान पीढ़ी को लगता है, हर काम के लिए अलग जगह हो,जितनी जगह अपने नाम हो, उतना ही अच्छा. जीवन के आखिरी पड़ाव पर बसर कर रही पीढ़ी अपना दायरा सिमटने नहीं देना चाहती. युवा लोग इसे उनकी लालसा कहते हैं, पर वह वास्तव में उनका अकेलेपन से लगता हुआ डर होता है.वे कह नहीं पाते, पर मन में सोचते हैं कि एकांत को हमारे करीब मत लाओ, हमारे बाद तो सब तुम्हारा ही है.
      लेकिन जिस तरह कोई माता-पिता अपनी संतान को अपनी उतरन नहीं पहनने देते, वैसे ही नई पीढ़ी अपने पूर्वजों के कमरे रहने के लिए तब तक नहीं लेना चाहती, जब तक कि कोई विवशता न हो. युवा पीढ़ी का रहने का अपना तरीका होता है. उसमें पूर्वजों की आँखों के अक्स भला कौन पसंद करेगा. यह बड़ों के प्रति उनकी अवज्ञा नहीं, बल्कि सम्मान ही तो है.
     ... डेला  के आने के दिन नज़दीक आ रहे थे...[जारी...]                       

Thursday, April 26, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 54 ]

     ...एमरा की डायरी को पढ़ने के बाद पेरिना ने अपने भीतर एक ज़बरदस्त बदलाव महसूस किया. कई प्रश्न उसके अंतर्मन में धुआं बनकर उठे और धीरे-धीरे सुलगने  लगे.उसका जीवन भी बदलने लगा. अब वह अपना ज्यादा समय पढ़ने में ही बिताती, और न जाने कौन-कौन सी किताबों में दिन-रात खोई रहती. 
     उसे यह बात झकझोरती  थी, कि एक सिद्ध पुरुष स्त्री से जीवन भर बच कर कैसे सिद्ध हो सकता है? क्या वह उस क्षण को भूल सकता है, जब दुनिया में उसका पदार्पण हुआ? क्या स्त्री से बच कर दुनिया में आने की कोई और राह भी है?स्त्री के शरीर में बन कर, उसके दर्द के सहारे दुनिया में आने वाले उसकी अवहेलना कैसे कर सकते हैं? क्या यह निरा पाखंड नहीं है? कौन सा ईश्वर है,जो  किसी को 'सिद्ध' बनाने के लिए औरत से बचने की शर्त रखता है?यदि किसी देश-समाज में ऐसा कोई देवता है, तो उसके पास दुनिया चलाने के लिए स्त्री की भूमिका से बचने का कोई विकल्प है? 
     डेला को यह आश्चर्य होता कि माँ का अधिकांश समय अब शहर के पुस्तकालयों में ही बीतता है. वह न केवल नियमित लायब्रेरी जाती हैं, बल्कि बाज़ार में भी कपड़ों और ज्वैलरी  से ज्यादा बुकस्टोर्स  पर ही देखी जाती हैं.डेला की दोनों बेटियां सना और सिल्वा अपनी दादी के इस बदलाव को जब संजीदगी से लेतीं, तो डेला को भी यह लगता कि अब उनके पास रहने से बेटियों के कैरियर को लेकर उसे कोई चिंता नहीं रहेगी. वह कुछ दिन माँ, और बेटियों के साथ बिता कर वापस चाइना लौट जाती. 
     किन्ज़ान को चीज़ों को जमा करने का शौक था, वह अब धीरे-धीरे कारोबार में बदलता हुआ, किसी खोज और अनुसन्धान में तब्दील हो गया. पेरिना के नए शौक ने उसमें पुरानी पुस्तकों का इज़ाफ़ा भी कर दिया.किन्ज़ान और पेरिना न जाने किस खोज में रहते? न जाने क्या ढूंढते? तेज़ी से युवा होतीं सना और सिल्वा भी अब इस वृद्ध दंपत्ति से मित्रवत हो चली थीं. 
     किन्ज़ान का कारोबार भी अब पेरिना के हवाले होने लगा. क्योंकि किन्ज़ान का अब बाहर जाना बहुत कम होता था, और पेरिना अपनी जिज्ञासा को लेकर न केवल व्यस्त रहती थी, बल्कि उसका घूमना भी ज्यादा होता. उसकी दिलचस्पी लगातार इस बात में होने लगी, कि स्त्रियों को लेकर दकियानूसी ख्याल जिन देशों में भी हैं, वह वहां जाकर काम करे.कम से कम यह तो जाने कि जिन देशों और तबकों में स्त्री को समाप्त करने की वृत्ति है या  उसे जकड़ कर पिछड़ा बनाये रखने की जिद है, उन देशों के रहनुमाओं और आकाओं से यह तो जाने कि उनके पास वैकल्पिक  जीवन का क्या रास्ता है? जीवन का क्या विकल्प है? जो लोग औरत को जन्म लेने से पहले ही उसके शरीर में ही ख़त्म कर देने के षड्यंत्रों में जी रहे हैं, उनसे भावी  समाज का उनका वांछित  एक ब्ल्यू-प्रिंट तो लिया जाये.
     लेकिन पेरिना की योजना एकबार खटाई में पड़ गई, क्योंकि उसके विचार केवल उसे मथ रहे थे.   
     विचार जब पकने लगते हैं, तो शरीर भी युवा होने लगता है. उम्र तब कोई खास माने नहीं रखती. यही कारण था कि जब डेला ने एक लम्बे पत्र द्वारा अपनी माँ  पेरिना को उनके जल्दी शुरू होने वाले एक  मिशन के बारे में बताया तो  वह उत्तेजित होने की हद तक ख़ुशी से उछल पड़ी.सना और सिल्वा भी इस खबर से बहुत खुश हुईं, कि उनके मम्मी-पापा चाइना से एक खास मिशन पर यहाँ आ रहे हैं, और अब काफी दिनों तक अमेरिका में ही रहेंगे...किन्ज़ान की आँखों में तो आंसू ही आ गए. इसलिए नहीं कि उसकी बेटी वापस आ रही थी, बल्कि इसलिए कि  उसकी जिंदगी की एक बंद किताब के पन्ने फिर से खुलने के लिए फडफडा रहे थे...[जारी...]   

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 53 ]

     बाबा द्वारा एमरा के दोनों सवालों का जवाब दे दिए जाने के बावजूद हैरानी की आंधी एमरा के लिए थमी नहीं. बाबा ने पहले तो यह बता कर चौंकाया, कि यह भटकती आत्मा अब भी शांत नहीं हुई है. और दूसरा इससे भी बड़ा झटका एमरा को यह जान कर लगा, कि इसी आत्मा ने कुछ वर्ष पूर्व किन्ज़ान की माँ के रूप में धरती पर जन्म लिया था.
     इस जानकारी से एमरा की ऑंखें एकबारगी खुली की खुली रह गईं, और अगले ही पल वह बेहोश हो गई.कुछ देर बाद आश्रम के बाहर और आसपास रहने वाले सभी कुत्ते एक साथ, एक स्वर में रोने लगे. 
     इस आवाज़ को सुन कर आश्रम के मुख्य संतजी नंगे पैर बाबा के भूतल स्थित आवास की और दौड़े. आश्रम का सारा निज़ाम थोड़ी देर के लिए गड़बड़ा गया.
     लड़खड़ा कर गिरते बाबा ने सेवकों के एक समूह से बुदबुदा कर सिर्फ इतना कहा- तुम लोग अब कहीं और चले जाना...यह आश्रम अब नहीं रहेगा...इतने में ही संतजी भी पहुँच गए और बाबा को सम्हालते-सम्हालते उन्होंने बाबा के आखिरी शब्द सुने-"...जीवन में पहली बार औरत से बात करके मैंने अपना नियम तोड़ दिया है, मेरी सिद्धियाँ मेरा साथ छोड़ गईं, मुझे अब लौटना होगा..." बाबा शांति से आँखें मींचे धराशाई हो गए. उन्होंने प्राण त्याग दिए.
     कोमा की हद तक बेहोशी की हालत में चली गई एमरा को कई दिन बाद होश आया, जब तक बाबा की अंत्येष्टि और सारे संस्कार संपन्न हो चुके थे. बाबा के चले जाने के बाद अब वह जान पाई कि बाबा ने उससे मिलने की क्या कीमत चुकाई.
     ऐसा कोई नहीं था जिसे एमरा बता पाती कि बचपन में उसका नाम एमरेल्ड ही था, जो बाद में एमरा रह गया. वह यह भी जान गई कि एमरेल्ड का अर्थ बाबा के देश में 'पन्ना' ही था. और यह सच भी वह अपने मन में छिपाए संन्यास की राह पर आई,कि उसने जीवन में कई बार विवाह किया, कई बार उसकी संतानें भी हुईं , लेकिन उसके भाग्य और स्वभाव ने हर बार उसे अकेला ही कर दिया. एक दिन सब कुछ छोड़-छाड़ कर वह बैरागन बन गई. 
     ...एमरा की इस पुरानी डायरी को पढ़ने के बाद पेरिना का दिल चाहा कि वह कम से कम एक बार किसी तरह एमरा से मिले, किन्तु इतने समय बाद, अब तो उसे यह भी पता नहीं था कि एमरा अब तक जीवित भी है या नहीं, और यदि है, तो वह कहाँ है.
     पेरिना के यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो गए कि बाबा मरते समय आश्रम के न रहने की बात पहले ही कह गया था. जब उसने इस डायरी और आश्रम के बारे में किन्ज़ान को बताया तो उसके दिल में भी यह सोच कर कसक उठी, कि उसे एक बार फिर जाकर बाबा से मिलना ही चाहिए था. लेकिन गया वक्त केवल अपनी याद ही वापस ला पाने की ताकत रखता है. वापस लौटना उसके वश में कहाँ? 
     इस डायरी को पढ़ लेने का एक असर ज़रूर हुआ कि पेरिना डेला की बेटियों को अब अपनी आँखों से कभी दूर नहीं करती थी. औरतों से बात न करने के बाबा के दृष्टान्त ने पेरिना के मन में डेला और दोनों बच्चियों के प्रति एक अदृश्य ममता का स्रोत गहरा दिया था...[जारी...] 
          

Wednesday, April 25, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट[ भाग 52 ]

     एमरा यह सुनते ही पसीने में नहा गई कि बाबा को किन्ज़ान के माध्यम से दिखा 'प्राण' या 'आत्मा' उनके लिए पहले से परिचित है. बाबा के 'पन्ना-पन्ना' चिल्लाने का राज़ खुल जाने के बाद बाबा ने एमरा को बताया कि  यह लगभग पिछले चार सौ साल से भटक रहा "प्राण" है, जो बीच में एक बार कुछ समय के लिए दुबारा मानव-योनि में जीवन पा जाने के बावजूद शांत नहीं हो सका, और पुनः भटकने के लिए विवश है.
     बाबा बोला- मनुष्य अपने परिवार, अपनी जाति, अपने धर्म या समाज को लेकर जितना प्रमादी है, वह उतना ही दया का पात्र है. वह नहीं जानता कि वह जिसे अपनी सामूहिक पहचान समझता है, उसका जीवन-चक्र में क्या हश्र होता है.  यह मनुष्य सोच भी नहीं पाता.मनुष्य के पास ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि वह अपनी उत्पत्ति के कारण और प्रक्रिया को समझ सके.फिर भी वह अपने परिदृश्य को अंतिम मान कर उसके लिए ताउम्र भ्रमित रहता है. 
     बाबा ने बताया कि वर्षों पहले एक स्त्री के रूप में जन्म पा कर यह प्राण एक शासन-महल में दासी अथवा सेविका के रूप में जी रहा था. पन्ना, इसका नाम था. 
     एक दिन एक राजनैतिक उथल-पुथल के कारण कोई आक्रान्ता शासक एक बच्चे का वध करने नंगी तलवार हाथ में लिए उस  महल में चला आया, जहाँ यह स्त्री सेविका के रूप में तैनात थी. राज्य का भावी राजा, उम्र में बहुत छोटा होने के कारण इसी दासी की देख-रेख में था. पैशाचिक मनोवृत्ति के उस आक्रान्ता आतताई ने भावी राजा का वध करना चाहा. जिस तरह उस आदमी पर हैवानियत हावी थी, उसी तरह इस दासी की प्रत्युत्पन्न-मति ने इस के ह्रदय में राजा के प्रति स्वामी-भक्ति की भावना उगा दी. राज्य के प्रति अपने कर्तव्य की सकारात्मक  ज्वाला में तप कर इस स्त्री ने ' न भूतो- न भविष्यति' निर्णय ले डाला . इसने एक बांस की टोकरी में राज-पुत्र को छिपा कर महल से किसी के संरक्षण में बाहर भेज दिया, और उसके स्थान पर अपने स्वयं के पुत्र को वहां लिटा दिया. फलस्वरूप क्रुद्ध  सेना-खलनायक की तलवार की धार से वह अबोध, निर्दोष, अपनी ही सगी माँ से तिरस्कृत बालक  बेमौत मारा गया. 
     घटना सुना कर बाबा बाकायदा इस तरह रोने लगा, जैसे यह अपराध और विडम्बना, खुद उसी के कारण घटित हुए हों. एमरा का चित्त भी ग़मगीन हो गया. 
     बस, इसके बाद से यह 'माँ' अब तक अपने आप को भी यह नहीं समझा पाई कि यह उसने क्या किया? दुनिया का सबसे शक्तिशाली और पवित्र रिश्ता इस दृष्टांत के गुंजलक में अब तक भटक रहा है. जब अपनी जान पर खेल कर कोई हरिणी अपने शावक को सिंह के पंजों से छुड़ाने का असंभव ख्वाब  देखती है, तो यह दृष्टान्त उस सुनहरी- केसरिया, इमली के आकार वाली छोटी मछली की तरह मानवता के साफ पानी को धुआं छोड़ कर मटमैला बना देता है.जब कोई चिड़िया अपने अंडे बचाने के लिए ज़हरीले सांप से लोहा लेने की मुहिम पर निकलती है, तो यह दृष्टान्त उसके मनोबल को तोड़ने के लिए दुनिया में अँधेरा कर देता है...[जारी...]     

Tuesday, April 24, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 51 ]

     एमरा के पास अब बाबा की बात मानने के सिवा और कोई चारा न था. उसकी आँखों में आंसू आ गए, जब उसने सौ वर्ष के जर्जर, कृशकाय और संत स्वभाव मनीषी पर चमड़े के हंटर से लगातार पैशाचिक वार किये.
     थोड़ी ही देर में खून के पतनाले उस बूढ़ी काया से झरने लगे.एमरा का दिल कहता था कि उसके हाथ से आज हत्या न हो जाए. लेकिन वह वर्षों से उस आश्रम में थी, बाबा के कई महिमामय क्रिया-कलापों के बारे में सुन चुकी थी, इसलिए बाबा का कहा मानने पर विवश थी.
      सबसे बड़ी बात यह, कि वह किन्ज़ान और पेरिना  को लेकर अपने सवालों का सही खुलासा चाहती थी, जो बाबा का कहा मान लेने पर ही संभव था.
     बाबा का मुंह खुला, लेकिन एमरा को एक अप्रत्याशित अनुभव देकर. 
     एमरा यह देख कर दंग रह गई कि पूरे शरीर से रक्त बहते हुए भी बाबा जैसे ही ज़मीन पर एमरा के सवालों का जवाब देने के लिए बैठे, उनका चेहरा असीम तेज़ से दमकने लगा. और सारे बदन पर न तो कोई चोट का निशान दिखाई दिया, और न ही एक भी कतरा खून का. एमरा की जान में जान आई, और वह तन्मय होकर सुनने लगी. 
     बाबा बोला - हवा में भटकती एक "आत्मा" किन्ज़ान को पिछले कुछ दिनों से अपनी गिरफ्त में लिए हुए थी. उसने एक छोटी मछली का रूप लेकर किन्ज़ान के प्रभा-मंडल में डेरा डाला हुआ था, अर्थात वह पूरी कोशिश में थी कि वह उसके आसपास रहे. 
     एमरा सपाट चेहरे से बाबा का मुंह देखने लगी. फिर साहस कर बोली- क्या यह आत्मा किसी को कोई नुक्सान पहुंचा सकती थी? वह वास्तव में क्या थी?क्या यह किसी वायरल-इन्फेक्शन की तरह किसी शरीर में लग जाती है? क्या इसका सम्बन्ध किसी भौतिक घटना-दुर्घटना से है? क्या यह दुबारा  जन्म लेने की कोई कोशिश थी? क्या ऐसी कोशिश कोई कर सकता है? 
     बाबा जोर से हंसा.बोला- ये जीवन छोटा है, इसमें इतना जानने की कोई ज़रुरत नहीं. जब जीवन किसी के लिए शुरू होता है, तो उससे पहले उसे कुछ भी पता नहीं होता, कि पहले क्या था. न ये मालूम होता है कि बाद में क्या होगा. लेकिन जैसे एक पात्र से दूसरे पात्र में डालते समय जल की कुछ बूँदें  छलक कर धरती पर गिर जाती हैं, वैसे ही जीवन न होने, होने और फिर न होने के क्रम में कभी कोई जान छिटक कर जीवन चला रहे हाथों से गिर कर ओझल हो जाती है. ठीक किसी पात्र से तड़प कर उछली हुई मछली की भांति...
     अच्छा, बाबा ये बताइए, आप किन्ज़ान को देख कर 'पन्ना-पन्ना' क्यों चिल्लाये थे?एमरा ने सवाल किया. 
     बाबा ने बताया- यह जो 'प्राण' किन्ज़ान के साथ चिपक कर सामने आया, यह पहले भी मेरी आँखों के सामने आ चुका था, इस से मैं इसे पहचान गया...
     एमरा अवाक् रह गई. उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं. उसके मुंह से यकायक बोल नहीं फूटा...[जारी...] 
        

Monday, April 23, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट[भाग 50 ]

     इस साधारण सी डायरी को डेला ने आश्रम की म्यूजियम सेल में वैसे ही उठा कर देखा, और इसके पहले ही पृष्ठ पर खूबसूरत बारीक लिखावट में लिखा पाया- " प्यारी पेरिना और उसके पति किन्ज़ान के लिए...जो अपने हनीमून ट्रिप में भी समय निकाल कर आश्रम  देखने चले आये...'एमरा' "
     इतना पढ़ लेने के बाद डेला के लिए ऐसा कोई कारण नहीं था कि वह उस डायरी को न खरीदे.उसने किसी कीमती तोहफे की भांति उसे खरीद लिया. और वह डायरी, क्योंकि उसके माता-पिता के लिए थी, और इससे भी बढ़ कर, वह उनके हनीमून ट्रिप से सम्बंधित थी, डेला ने उसे पवित्र कुरान, बाइबिल या रामायण की तरह सहेज कर अपने पास रख लिया... उसका एक भी लफ्ज़ पढ़े बिना.
     पेरिना ने उसे पढ़ना शुरू किया तो उसे दीन-दुनिया की कोई खबर न रही.
     एमरा ने लिखा था कि उसने किन्ज़ान और पेरिना का बरसों इंतज़ार किया. उसे पूरी उम्मीद थी कि वे एक न एक दिन ज़रूर आयेंगे. किन्ज़ान को तो संतजी ने आने का आग्रह भी किया था, और यह कहा था कि वे उसके द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब चौथी बार में देंगे. इसलिए वह उनकी प्रतीक्षा में थी. लेकिन जब बहुत समय गुज़र जाने के बाद भी वे लोग नहीं आये, तो वह उनके लिए चिंतित भी थी. उसे लगता था कि कहीं उनके साथ कोई अनहोनी न घट गई हो.
     एमरा ने लिखा था कि वह बाद में आश्रम के सारे नियम-कायदे तोड़ कर 'बाबा' से भी मिली, केवल पेरिना की खातिर. इस बात का भी उसने खुलासा किया था कि हमेशा निर्वस्त्र रहने वाले बाबा  से मिलना निषिद्ध होने के बावजूद भी जाकर मिल लेने का उसे क्या दंड भुगतना पड़ा. 
     एमरा ने बाबा से केवल दो सवाल किये थे. एक तो यह, कि उन्होंने किन्ज़ान के पीछे दौड़ कर उसकी जेब से मृत मछली क्यों व कैसे निकाली? दूसरे, वे किन्ज़ान को देख कर 'पन्ना-पन्ना' क्यों चिल्लाये? 
     बाबा ने सर हिला कर उसके दोनों ही प्रश्नों का उत्तर देने की स्वीकृति दे दी.इस बात से एमरा बेहद खुश हुई. उसे यह यकीन हो गया कि इस जानकारी से वह अपने मेहमानों की मदद कर पायेगी. कई महीनों तक उन दोनों के वहां न आने से एमरा थोड़ी-थोड़ी मायूस होने लगी थी. उसके बाद उसे यह ख्याल आया कि वह ये सारी जानकारी लिख कर रख ले, ताकि लम्बा समय-अन्तराल हो जाने पर भी वह जानकारी सुरक्षित रहे, और कभी उन लोगों का पता-ठिकाना मिल जाने पर वह यह जानकारी उन तक पहुंचा भी सके. एमरा ने डायरी के अंतिम पन्ने पर यह खुलासा भी किया था कि वह यह सब क्यों कर रही है? उसका  पेरिना या किन्ज़ान से यह लगाव किस कारण पैदा हुआ ?
     एमरा ने लिखा था कि बाबा ने उसके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए एक अजीबो-गरीब शर्त भी रख दी. बाबा ने उससे कहा कि वह एक चमड़े के हंटर से बाबा को पूरी ताकत लगा कर मारे. और तब तक मारती रहे, जब तक कि बाबा पूरे बदन पर लहू-लुहान न हो जाये.बाबा का कहना था, कि यदि वह ऐसा न कर पाई तो उसके प्रश्नों के सही उत्तर नहीं मिलेंगे.बाबा ने उसका यह अनुरोध भी ठुकरा दिया कि वह हंटर मारने के लिए आश्रम के किसी और कर्मचारी की सहायता लेले...[जारी...]           

Sunday, April 22, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 49 ]

     डेला को जब नाईजीरिया की एक कम्पनी में नौकरी मिली तो पहले पेरिना थोड़ा झिझकी, लेकिन जब उसे पता चला कि काम यहीं न्यूजर्सी में करना होगा तो उसकी चिंता दूर हो गई. और मुश्किल से तीन महीने गुज़रे होंगे कि डेला ने उन्हें दूसरी राहत दी.वह वहीँ अपने सहकर्मी वुडन रोज़ से शादी करके एक दिन उसे अपने साथ ले आई. किन्ज़ान और पेरिना के लिए वह एक यादगार दिन था. उस दिन के आलम ने भी उनकी जिंदगी की जिल्द पर सुनहरी इबारत लिखी. वक्त की कलम से घटनाओं के हर्फ़ लिखते चले जाने का नाम ही तो जिंदगी है...
     लेकिन किन्ज़ान और पेरिना के जीवन -पात्र  में फूलों का अर्क उस दिन भर गया, जब डेला ने दो जुड़वां बच्चियों को जन्म दिया. समय कितनी जल्दी बीतता है, इसका अंदाज़ पेरिना को उस दिन हुआ, जब दोनों बच्चियों को लेकर वुडन और डेला एक दिन सचमुच नाईजीरिया चले गए. 
     किन्ज़ान को जब भी अपने काम से फुर्सत मिलती वह और पेरिना बच्चों के पास नाईजीरिया जाने का प्लान बनाने लगते. लेकिन किन्ज़ान की फुर्सत जैसे मिलती, वैसे ही फुर्र भी हो जाती. वे कभी बच्चों के पास जा ही नहीं पाते.अलबत्ता बच्चे ज़रूर एक-दो बार उनके पास आकर रह गए. 
     ये प्लान बनाने और पूरा न कर पाने का सिलसिला तब जाकर टूटा, जब एक दिन डेला वहां आई, और बच्चों को बफलो में पेरिना और किन्ज़ान के पास ही छोड़ गई. वुडन और डेला दोनों को ही अपने काम के सिलसिले में घूमना पड़ता था. बल्कि कुछ दिन बाद तो वे दोनों चाइना ही चले गए. पूरी तरह चाइना में शिफ्ट होने से पहले डेला किन्ज़ान से वादा लेकर गई कि वे लोग कुछ दिन के लिए चाइना ज़रूर आयेंगे. 
     इधर एकदिन एक करिश्मा हुआ. डेला जब बच्चों और माता-पिता से मिलने बफलो आई, तो उसने अपने सूटकेस से एक कीमती तोहफे की तरह निकाल कर एक छोटी सी पुरानी डायरी पेरिना को दी. पेरिना ने उसे उलट-पलट कर देखा और फिर डेला की ओर जिज्ञासा से देखने लगी. डेला से उस डायरी का राज़ सुन कर वह ख़ुशी से उछल पड़ी. उसके हाथ से कपड़ों के वे पैकेट्स भी छूट गए, जो डेला ने उसे और अपनी बेटियों को उपहार में लाकर दिए थे. 
     पेरिना उस डायरी को इस तरह सीने से लगा कर एकांत में भागी, जैसे नव-विवाहिताएं अपने पीहर में पति का पहला पत्र आने के बाद उसे लेकर भागती हैं. इस तरह कि किसी को न दिखे, कि पत्र में क्या लिखा है, और सबको दिख जाये कि पत्र आया है. 
     डेला ने बताया कि काम के सिलसिले में वह जब चाइना गई, तो वहां उसने एक छोटे से क़स्बे में एक अजीबो-गरीब सेल देखी.इस सेल में एक पुराने से मकान में ढेर सारा पुराना सामान रख कर एक बूढ़ा  अपने दो-तीन साथियों के साथ बैठा था. वे लोग किसी म्यूजियम से  तरह-तरह का सामान इकठ्ठा करके लाये थे, और उसे बेच रहे थे. सामान में एक आश्रम, और उसके स्वामी के चित्र भी थे. साथ ही इसे विश्व-प्रसिद्द आश्रम का सामान बता कर बेचा जा रहा था. डेला को वह डायरी भी उसी सामान को उलटते-पलटते मिली...[जारी...]

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 48 ]

     इतना भयंकर तूफ़ान पिछले कई सालों से नहीं आया था. बफलो पर से तो इस तूफ़ान ने केवल ठंडी कंटीली हवाओं के तीर छोड़े थे लेकिन देश के और कई हिस्सों में इसने भीषण तबाही मचाई थी. नायग्रा झरना उस कांपती रात में ठिठुर कर रह गया था. बर्फीले अंधड़ के उन्मत्त विहार ने जगह-जगह जान-माल का नुकसान भी किया था. लोगों ने कई टूटे घरौंदों  के क्रूर चित्र अख़बारों में देखे. कई इलाके अंधकार में डूब गए. 
     इस तूफ़ान ने हजारों मील दूर म्यांमार में भी खलबली पैदा की. लोग यह जान कर सन्न रह गए कि अमेरिका में रह रहे  वे नामी-गिरामी संतजी जिनके बरसों पुराने आश्रम को लोग पूजने की हद तक महान मान कर गौरवान्वित  होते थे, इस क्रुद्ध ज़लज़ले का शिकार हो गए. पहाड़ी-स्थान पर बना उस आश्रम का अहाता पूरी-तरह छिन्न-भिन्न हो गया. गिरी दीवारों और बिखरे असबाब के बीच  इस आश्रम में रहने वाले 'बाबा' जिनकी आयु सौ वर्ष से भी अधिक बताई जाती थी,न जाने कहाँ अंतर्ध्यान हो गए. भारत और म्यांमार के साथ-साथ अमेरिका ने भी हताहतों को भारी राहत मुहैय्या कराई.इस बात पर भी कयासों और अटकलों का बाज़ार गर्म रहा, कि संतजी और वयोवृद्ध बाबा जीवित बचे या काल-कवलित हो गए.आश्रम की अकूत संपत्ति क्षत-विक्षत  हो गई और उसे दूतावासों के ज़रिये सरकारी स्वामित्व में ले लिया गया. 
    कल तक लोगों को उनका भवितव्य बता रही ज़मीन  आज अपने भवितव्य की सलामती की मुहताज हो गई. 
    पानियों में बहते डूबे किनारों को आंसुओं के साहिल  देने वालों में नार्वे की एमरा भी थी, वर्जीनिया की अगाथा भी, अज़रबैजान का सांझा भी, और डेनमार्क का प्रिंस  भी.
     जो बच न सका, वह तो बचा ही नहीं, जो बच गया, उसका कुछ न बचा.सागर में इतनी ऊंची-ऊंची लहरें उठी, कि नाराज़ होकर अगली सुबह मछलियों ने धूप  की सूरत तक न देखी. गहरे पानी में छिपी रहीं.
     ऐसा लगा, जैसे दुनिया के स्टीयरिंग पर बैठे खुदा को झपकी आ गई, और संसार की गाड़ी किसी गहरे गड्ढे पर जोर से उछल गई. लेकिन जैसे जंगल में मवेशियों का झुण्ड कोई मुसीबत टूट पड़ने पर अपने चरवाहे को भी बचाता है, वैसे ही, खुदा के ही कई बन्दों ने बढ़-चढ़ कर खुदा की मदद की. उस रात की भी सुबह होकर रही.
     किन्ज़ान और पेरिना अख़बार के पन्नों को छू-छू कर पश्चाताप करते रहे. और याद करते रहे बरसों पहले गुजरी अपने हनीमून की रात...
     लेकिन जल्दी ही उस नशीली रात की याद की खुमारी उन्हें छोड़नी पड़ी, क्योंकि सामने कॉलेज से लौटी आदमकद बिटिया डेला जो खड़ी थी.उसे क्या मालूम कि तूफ़ान की ख़बरों ने उसके माता-पिता के मानस नगर के कौन से चौराहे पर पुंगी बजा दी? वे आवाजें तो दोनों के अंतर पुर में सोहर गा रही थीं, डेला को इससे क्या?
     तूफ़ान की याद में कई ख़ुशी के उत्सव निरस्त होने की ख़बरें अख़बार में थीं, उन्हीं की तरह किन्ज़ान और पेरिना ने भी  अपने मन में खिले बाग़ निरस्त कर लिए...[जारी...]         

Saturday, April 21, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 47 ]

     वह बदला हुआ मौसम था. कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. बफलो का तापमान शून्य से बहुत नीचे उतर गया था, ठीक वैसे ही, जैसे भारतीय बावड़ियों में घुमावदार सीढ़ियों से पानी लेने के लिए ग्रामीण उतरते चले जाते हैं.जैसे-जैसे धरती के गर्भ में कदम धसते जाते हैं, ठंडक बढ़ती जाती है.नदी सरोवर वहां बर्फ की सिल्लियों से ढँक से गए थे. शालीन सफेदी ने सब्ज़ पत्तों के राग मंद कर छोड़े थे. पेड़ों ने बहरूपिया रूप धर लिए थे. आसमान धरती को पानी नहीं बर्फ़ परोस रहा था.सड़कों पे यायावर इने-गिने रह गए थे. सैलानी भी केवल जिगर वाले घूम रहे थे. 
     किन्ज़ान और पेरिना डिनर के बाद डेला को उसके कमरे में भेज कर बिस्तर पर कागजों की छोटी-छोटी थैलियों को फैलाए बैठे थे. इन थैलियों  में तरह-तरह के पन्ने जमा थे. पेरिना को ये बहुत प्रिय थे. उसका जी न इन्हें गिन कर भरता था, और न इन्हें देख-देख कर. पिछले कुछ दिनों से किन्ज़ान के मन में यह विचार आने लगा था, कि वह भारत से ऐसे कीमती रत्न लाकर यहाँ उनका कारोबार करे. वह देख रहा था कि यहाँ  लोग न केवल उन्हें पसंद करते हैं, बल्कि उनके लिए अच्छी कीमत देने को भी तैयार रहते हैं. पेरिना इसे अपने शौक और किन्ज़ान की कारोबारी नज़र के योग  के  रूप में देख कर अत्यंत प्रसन्न थी. पेरिना तो क्या, खुद किन्ज़ान को भी यह पता न था, कि उसके अवचेतन में कहीं भारत देखने की इच्छा भी दबी है. 
     जबसे उसने जेद्दा से आये  अपने मामा से अपनी माँ के पिछले जीवन के बारे में जाना था, वह अपने तार कहीं उस परिवेश से भी जुड़े पाता था.उसकी दिलचस्पी अपनी माँ रस्बी के रसबानो और रसबाला रूप से परिचित होने में  भी हो गई थी. अपनी जड़ों को भला कौन नहीं टटोल कर छूना चाहता? 
     अचानक तेज़ हवा चलने लगी. किसी तूफ़ान के आने से पहले की तीखी और सनसनाती हवा. ठंडक और भी बढ़ती जाती थी. थोड़ी ही देर में ख़बरों से किन्ज़ान ने सुना, कि नायग्रा झरना जम गया है. इस कल्पना-मात्र से ही रोमांच हो आता था, कि आसमान से ज़मीन पर छलांग लगाता विराट सागर किसी तपस्वी की तरह हवा में समाधि लेले. अतिवृष्टि का शिकार ज़लज़ला अचानक स्लो-मोशन में नर्तन करता हुआ पाषाण-पर्वत  बन जाये.
     उस रात नींद में किन्ज़ान ने अपने को स्केटिंग करके बर्फ़ के झरने से नीचे आते कई बार देखा. वह हवा में उड़कर ऊपर जाता था, और फिर जमे हुए बर्फ़ के झरने से फिसलता हुआ नीचे आता था. उसे बच्चों की तरह इस खेल में मज़ा आ रहा था. 
     यहाँ तक कि सुबह जब कॉफ़ी टेबल पर रख कर पेरिना उसे नींद से जगाने आई, तो वह अपने बेड से नीचे फिसल कर फर्श पर पड़ा मिला.उसे इस तरह ज़मीन पर बेसुध पड़ा  देख कर पेरिना खिलखिला कर हंसी. हंसती ही चली ही गई. ठंडी रात की गुनगुनी सुबह...ऐसी हज़ार रातें...ऐसे हज़ारों सवेरे...ऐसे हज़ार सपने... ऐसी हज़ार ख्वाहिशें... जिंदगी की नाव को समय की लहरों पर खेते हुए ...हंसी की इस मादक खनक ने डेला को भी जगा दिया, वह भी अपने कमरे से निकल कर आँखें मलते हुए चली आई और अपने पापा को फर्श पर पड़ा देख, अपनी मम्मी की खिलखिलाहट में शामिल हो गई...[जारी...]                 

Friday, April 20, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट[ भाग 46 ]

     कुदरत ने धरती के श्रृंगार के लिए दो गहने बना छोड़े हैं. एक तो चमकती धूप, और दूसरी छिटकी चांदनी. चाँद और सूरज को दे दिया है ये काम, कि धरती पर कभी इनकी कमी न हो, बरसाते रहो, बरसाते रहो...कभी थक कर न बैठना, कोई छुट्टी- वुट्टी नहीं मिलेगी कभी. हाँ, थक जाओ तो बादल की चादर ओढ़कर आराम फरमालो. लेकिन चलते-चलते...रुकने की इजाज़त नहीं मिलेगी. 
     बस, इसी से कहीं- कभी -कुछ थमा नहीं. 
     धीरे-धीरे किन्ज़ान भी सब भूल बैठा, और पेरिना भी. समय ने उन्हें जो कुछ नहीं दिया, उसके एवज़ में बहुत कुछ और दिया. उनके एक प्यारी सी बिटिया हुई. 
     लेकिन एक बात है, समय चाहे सब कुछ भूल जाये, लोग नहीं भूलते. और जो लोग मन से जुड़ जाते हैं, वे तो कभी नहीं भूलते, कुछ नहीं भूलते.यही कारण था कि जब किन्ज़ान और पेरिना ने अपनी बिटिया का पहला जन्मदिन धूम-धाम से मनाया तो आने वाले मेहमानों में न्यूयॉर्क से  अपनी मालकिन-मॉम  के साथ आया वह नन्हा ब्राज़ीलियन पप्पी भी था, जिसका और  किन्ज़ान का सपना कभी एक था.हाँ, यह बात ज़रूर थी, कि वह नन्हा भी अब उतना छोटा न रहा था. अच्छा खासा शैतान-शरारती बन गया था.  
     इसी शानदार पार्टी में पेरिना की मेहनत और पसंद के लाजवाब व लज़ीज़ व्यंज़नों के बीच किन्ज़ान ने मेहमानों को बताया कि उनकी बिटिया डेला का जन्म नियाग्रा - फाल्स से गिरते बेशुमार पानी के छींटों के बीच आधी रात को एक  शिप में ही हुआ था.उनकी जिंदगी का वह नायाब तोहफ़ा चांदनी रात में लहरों पर डगमगाते जहाज़  पर ही उनकी झोली में आया था. 
     यह बात तो सुखद आश्चर्य और रोमांचक ख़ुशी की थी, लेकिन इसे बताते-बताते जब किन्ज़ान रो पड़ा तो सबको हैरानी हुई. ख़ुशी के इन आंसुओं ने पेरिना को भी उद्वेलित कर दिया. सब जानते  थे  कि किन्ज़ान भावुक होने वाले लोगों में नहीं है, इसलिए अब सबकी हैरानी इस बात को लेकर थी कि किन्ज़ान की अप्रत्याशित उदासी का राज़ जानें.मजबूरन किन्ज़ान को बताना ही पड़ा. 
     किन्ज़ान ने सब को  बताया कि डेला की दादी का जन्म जब हुआ था, तब वह एक बाल्टी पीने के पानी के लिए जेल में थी. अपने परिवार के लिए एक समय का पानी लाने के लिए उसे ज़बरदस्त संघर्ष करना पड़ा. 
     सब ग़मगीन हो गए. माहौल में देर तक नमी छाई रही.
     किन्ज़ान के दोस्त उसे उदासी से निकालने के लिए कुछ सोचते, इससे पहले ही पेरिना की चपल-तत्पर बुद्धि ने काम किया, और वह माहौल बदलने के लिए अपना कीमती पत्थरों का कलेक्शन उठा लाई, जिसे सब चाव से देखने लगे. पेरिना ने सबको बताया कि उसे तरह-तरह के पन्ने जमा करने का शौक है, और उसे जहाँ से भी कोई पन्ना मिलता है, वह खरीद लाती है. उसके कलेक्शन को सबने सराहा. पार्टी की रंगत फिर से हरी-भरी हो गई. बिटिया डेला को हजारों आशीषें मिलीं, जिसने दादी की प्यास को जीत कर अथाह पानी के सीने पर ही जन्म लिया...[जारी...]   

Thursday, April 19, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 45 ]

     बाबा से मिलने के लिए बूढ़ी महिला,एमरा उस शर्त को मानने के लिए भी तैयार थी, जिसकी वज़ह से संतजी ने महिलाओं का बाबा से मिलना निषिद्ध घोषित किया था. उसे तो हर कीमत पर पेरिना की मदद करनी थी. उसका दिल भीतर से यह कहता था कि वह ऐसा करे.
     लेकिन उसके बाद सालों गुज़र गए, न किन्ज़ान वहां आया, और न ही पेरिना. 
     शायद वे दोनों ही उन बातों को भूल गए कि वे आश्रम में किस मकसद से गए थे. उन्हें केवल यह याद रहा, कि उनकी शादी के बाद ये उनका हनीमून ट्रिप था, जो बहुत आनंद-दायक रहा. बफलो पहुँच कर वे दोनों अपनी गृहस्थी में खो गए, और किन्ज़ान जी-जान से अपने कारोबार में जुट गया. 
     कभी गाहे-बगाहे उसके मन में अपने सपने का ख्याल आता भी, तो वह यही सोचता कि उसे अपने बचपन की अभिलाषा किसी संत-महंत के मंत्र- तावीज़ से नहीं, अपने जीवट और हौसले से पूरी करनी है.
     किन्ज़ान उम्र और अनुभव के साथ समझ भी प्राप्त कर रहा था. वह सोचता, यदि ये महाज्ञानी लोग अपने ज्ञान और टोने-टोटके से लोगों का जीवन सुधारने की क्षमता रखते हैं, तो फिर ये संपन्न मुल्कों में क्यों चले आते हैं? ये अपने उन पिछड़े देशों में ही  रह कर काम क्यों नहीं  करते, जहाँ विपन्नता के कारण इनकी ज़रुरत है.
     और तब इनके ज्ञान पर लगा प्रश्न-चिन्ह ऐसा लगता, मानो दाल में कुछ काला हो.
     कुछ भी हो, पेरिना की दिलचस्पी कीमती, हरे, पन्नों में बढ़ गई. वे जब शहर में किसी एशियाई या भारतीय परिवार को देखती, तो विवाहिताओं  के हाथ में पड़ी हरे कांच की चूड़ियाँ उसे आकर्षित करतीं. बल्कि कभी-कभी तो चूड़ियाँ और पन्ना जड़ी अंगूठी वह भी पहनती, जिसे उसने अपनी यात्राओं के दौरान ढूंढ ही लिया था. 
     पेरिना के मन में एक फांस और चुभ कर रह गई थी. उसे वह केसरिया सुनहरी  मछली भी कभी नहीं भूलती थी, जो बाबा ने अकस्मात किन्ज़ान के पीछे भाग कर उसकी जेब से निकाली थी. 
     और उस दिन किन्ज़ान के साथ बोस्टन में घूमते हुए उसने विशाल-काय मछलीघर देखा तो उसकी याद और ताज़ा हो गई. इस शानदार व अत्याधुनिक एक्वेरियम में उसकी आँखें अपनी चिर-परिचित उसी मछली को तलाश करती रहीं. जब किन्ज़ान एक से एक अद्भुत मछली को निहारता हुआ   आगे बढ़ता, पेरिना दीवारों पर  लिखी इबारतों और चार्टों तक को पढ़ती, कि शायद उसे अपनी उस  चिर-परिचित केसरिया  सुनहरी मछली का कोई सुराग मिले, जिसने  पेरिना के मन में शंका का बीज डाल कर जिज्ञासा का खेत उगा दिया था.
     एक्वेरियम के सबसे ऊपरी तल पर जब  सागर के एक जीवंत हिस्से में तैरते हुए एक युवक और युवती आये, तो पेरिना का दिल चाहा, कि वह भी उनकी तरह ठन्डे पानी में उतर कर गहराई का चप्पा-चप्पा छाने, और किन्ज़ान की जेब में मिली मछली का प्रतिरूप ढूँढे.
     दुनिया का कोई देश हो, किसी नस्ल के लोग हों, किसी उम्र के जीवन साथी हों, अपने पति की जेब की जानकारी जैसे  हर पत्नी का शायद पहला कर्तव्य होता हो...[जारी...]       

Wednesday, April 18, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 44 ]

     बूढ़ी महिला ने तो चुपचाप पेरिना को बाबा के दर्शन करवा देने चाहे थे, पर इस से इतना बखेड़ा खड़ा हो जायेगा, यह उसने न सोचा था. वह भी असहज हो गई, और उसने जल्दी-जल्दी किन्ज़ान-दंपत्ति को विदा किया. 
     लौटते समय पेरिना बहुत खुश थी. उसे यह भी याद न रहा कि कम से कम किन्ज़ान से ये तो पूछे कि उसकी मुख्य संतजी से मुलाकात में क्या हुआ. किन्ज़ान ने खुद ही उनसे मुलाकात का थोड़ा विवरण दिया. किन्ज़ान उनकी सम्पन्नता और विनम्रता से अच्छा-खासा प्रभावित था. संतजी ने उसके सपने के पूरा होने के बारे में यही कहा था कि वह यहाँ आता रहे, और उससे चौथी मुलाकात में वे यह बता देंगे कि किन्ज़ान नायग्रा-फाल्स को पार करने के अपने मकसद में कभी कामयाब होगा कि नहीं, और यदि होगा तो कैसे? उत्तेजित किन्ज़ान अब संतजी से दूसरी और तीसरी बार नहीं, बल्कि चौथी बार मिलने के बारे में ही सोच रहा था. 
     पेरिना की इच्छा अब किसी ज्वैलरी की दूकान में जाने की थी. किन्ज़ान उसे 'हनीमून' उपहार देने वाला था, और पेरिना के ज़ेहन में भारतीय पन्ने जगमगा रहे थे. वे न केवल पन्ने का कोई आभूषण लेना चाहती थी, बल्कि उनके बारे में जानना भी चाहती थी. उसके भीतर महिला-सुलभ वही प्रदर्शन-प्रियता पैठ चुकी थी कि वह अगली बार नार्वे की उस महिला से आश्रम में जब भी मिले, तो पन्नों का कीमती हार पहन कर ही मिले. इसे वह बाबा के प्रति सम्मान के रूप में देखती थी. 
     पेरिना ने पता लगा लिया कि पन्ना केवल कुछ ही देशों में पाया जाने वाला कीमती पत्थर है, जो भारत में सबसे ज्यादा मिलता है. शाम को जब किन्ज़ान ने डिनर के समय रंगीन मदिरा का ग्लास पेरिना को पेश किया तो पेरिना को उस चमकते शीशे के एक-एक कोण से बेश-कीमती  पन्ने चमकते दिखाई दिए.भोजन में जब साबुत बटेर शोरबे में रखा आया, तो उसकी खुली आँखों में पेरिना ने पन्ने ही जड़े देखे. 
     लेकिन ये तमाम चमक उस समय फीकी पड़ गई, जब देर रात होटल के खुशबूदार अहाते में झांकते, खिड़की का पर्दा फैलाते हुए  किन्ज़ान ने नाइट- लैम्प का स्विच ऑफ़ किया. खिड़की से झांकते आसमान के सैंकड़ों पन्ने उन दोनों को अकेला छोड़ कर परदे के पार रह गए. अँधेरे में पेरिना किसी मानसरोवर से मोती चुनने की मुहिम पर निकल गई.किन्ज़ान ने रात और नींद को सौतिया डाह में जलती दो पड़ोसनों की तरह लड़ता छोड़ दिया. न रात बीतती थी, न दिन उगता था. 
     उस रात संतजी के आश्रम में अपने कमरे में सोती बूढ़ी महिला को भी आसानी से नींद नहीं आई. वह सोचती रही, कि बाबा ने पेरिना के पति का 'पन्ना-पन्ना' कहते हुए  पीछा क्यों किया? वह बरसों से यहाँ थी, और थोड़ा बहुत यहाँ की गतिविधियों को समझती भी थी, पर मन ही मन वह समझ रही थी कि पेरिना वापस ज़रूर आएगी. और इसीलिए वह चाहती थी कि इस पहेली को किसी तरह सुलझा ले. पेरिना से उसे एक किस्म का लगाव सा भी हो गया था. नई-नई दुल्हन...हनीमून के अगले ही दिन अपने पति के साथ क्या सोच कर  यहाँ चली आई? भला बैराग के आश्रम में ऐसे युवा बच्चों का क्या काम? 
     बूढ़ी महिला किसी न किसी तरह उस पहेली को सुलझा लेना चाहती थी. उसका मन कहता था कि वह पेरिना की मदद करे, और यदि वह अकारण किसी मुसीबत में घिरने वाली है तो वह उसकी जानकारी कर पेरिना को पहले से सचेत करे. बाबा से महिलाओं का मिलना चाहे निषिद्ध हो...[जारी...]    

Tuesday, April 17, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 43 ]

      बाबा ने एकाएक पलट कर पीछे देख लिया. इससे किन्ज़ान भी हड़बड़ा गया.उसने बाबा को अभिवादन कर डाला. बाबा जोर से हंसा और पलट कर दरवाज़े के सामने की ओर आ गया.   बाबा के घूम कर सामने आते ही किन्ज़ान के साथ आया युवक पलट कर विपरीत दिशा में भागने लगा. लेकिन किन्ज़ान उसी तरह वहां खड़ा रहा. 
     ज़मीन के तल से छेद में झांककर अब पेरिना भी बाबा को देख पा रही थी. 
     बाबा लगभग छलांग लगा कर किन्ज़ान के सामने कूदा, और उसके एकदम पास आ गया.फिर बिजली की सी गति से बाबा ने किन्ज़ान की टी-शर्ट की जेब को पकड़ा और खींचने लगा. उसके दांत किसी पागल की तरह ही भिंचे हुए थे. किन्ज़ान अब घबरा गया और उसी युवक की तरह उसी दिशा में भागने लगा. युवक थोड़ी दूर पर खड़ा सारा नज़ारा देख रहा था. 
     किन्ज़ान के पीछे भागते हुए  बाबा ने अकस्मात् "पन्ना-पन्ना" चिल्लाना शुरू कर दिया.
     यह सुनते ही ज़मीन के छेद से झाँक रही पेरिना उत्तेजित हो गई और उसने तुरंत बूढ़ी महिला को बताया कि उसका पति किन्ज़ान उसे 'पन्नी' कह कर ही पुकारता है.वह उत्तेजना में यह भी भूल गई कि महिलाओं के लिए बाबा के सामने जाना निषिद्ध है, वह दौड़ कर बाबा के पास आने लगी. 
     लेकिन वहां तक आने के लिए उसे काफी घुमावदार सीढ़ियाँ उतरना ज़रूरी था.वह आगे बढ़ती, इस से पहले ही बूढ़ी महिला ने लपक कर उसकी कलाई पकड़ कर उसे रोक लिया. पेरिना बूढ़ी के हाथ की ताकत से दंग रह गई.
     उधर तेज़ी से दौड़ते किन्ज़ान को बाबा ने हांफ कर भागते हुए पकड़ लिया और तुरंत उसकी टी-शर्ट की जेब में हाथ डाल कर कुछ टटोलने लगा.इससे किन्ज़ान की घबराहट कुछ कम हुई और वह रुक कर खड़ा हो गया. 
     बाबा ने किन्ज़ान की जेब से जैसे ही हाथ बाहर निकाला, किन्ज़ान यह देख कर चौंका कि उसकी जेब से सुनहरी केसरिया इमली के आकार वाली मछली निकल कर बाबा के हाथ में आ गई. मछली मरी हुई थी. लेकिन किन्ज़ान डर से थर-थर कांपने लगा, क्योंकि इसी मछली को दूर फेंकने की कोशिश में किन्ज़ान ने भयंकर सपना देखा था. वह फिर भी मछली को फेंक नहीं सका था, और मछली गायब हो गई थी. अब बाबा के हाथ में न जाने कहाँ से वही मछली किन्ज़ान की जेब से निकल कर आ गई थी. 
     किन्ज़ान ने भी बाबा के 'पन्ना-पन्ना' चिल्लाने की आवाज़ सुनी थी और वह कुछ समझा नहीं था. इतना उसके दिमाग में भी कौंधा कि वह पेरिना को कभी-कभी प्यार से पन्नी कह कर पुकारता है. 
     अब वह युवक पलट कर  नज़दीक आया और बाबा का हाथ पकड़ कर उसे वापस उसकी गुफा की ओर ले जाने लगा. किन्ज़ान भी संयत होकर एक ओर खड़ा हो गया. 
     बूढ़ी महिला पेरिना को बताने लगी कि पन्ना भारत का एक कीमती पत्थर होता है, जिसे लोग चाव से अपने गहनों, जैसे अंगूठी आदि में जड़वा कर पहनते हैं.पेरिना इस जानकारी से बहुत खुश हुई. लेकिन बूढ़ी उसके इस सवाल का कोई जवाब नहीं दे सकी, कि बाबा ने किन्ज़ान की जेब से मरी मछली कैसे निकाली, और मछली को हाथ में लेकर चिल्लाने का क्या प्रयोजन था. यह जिज्ञासा तो खुद बूढ़ी को भी थी...[जारी...]                 

Monday, April 16, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 42 ]

     जिसे पेरिना आसान काम समझ रही थी, वह इतना आसान था नहीं. वह महिला इतनी जल्दी चुप हो जाने को कतई तैयार नहीं थी. लिहाज़ा पेरिना को उससे कई बातें और भी पता चलीं. उसने बताया कि आश्रम शुरू होने के समय जिन जर्जर और कृशकाय वृद्ध को लाया गया था, वे तो अब जीवित नहीं हैं, किन्तु अब भी सौ वर्ष से अधिक आयु के एक महात्मा वहां मौजूद हैं, जिन्हें आश्रम के बेसमेंट की एक छोटी कोठरी में रखा गया है. ये नाममात्र का भोजन करते हैं, और निर्वस्त्र रहते हैं. कोठरी एक प्राकृतिक गुफा की शक्ल में है, और यह बाबा पहली नज़र में किसी को भी पागल नज़र आते हैं. लेकिन असलियत यह है कि इन्हीं के ज्ञान से हमारे संतजी चारों दिशाओं में नाम कमा रहे हैं.
     ऐसा कहते ही महिला ने बेबसी से चारों ओर देखा, कि कहीं उनकी बात कोई सुन न रहा हो.
     पेरिना की इच्छा हुई कि वह  चाहे आश्रम के मुख्य संतजी से मिले या न मिले, किन्तु उस वृद्ध महात्मा को एक नज़र ज़रूर देखे. अब पेरिना की दिलचस्पी उन बाबा के बारे में और जानने में  हुई.
     कुछ देर बाद पेरिना को किन्ज़ान सामने से आता हुआ दिखा.वह उसे ही ढूंढता हुआ पिछवाड़े चला आया था.
     वृद्ध महिला से इतनी देर की आत्मीयता ने पेरिना को यह साहस दे दिया कि वह बाबा से मिलने की अपनी इच्छा के बारे में उसे बता दे.
     कुछ सोच कर महिला उन्हें बाबा के पास ले जाने के लिए तैयार हो गयी. लेकिन पेरिना को उसकी यह विचित्र शर्त माननी पड़ी कि बाबा, क्योंकि महिलाओं से नहीं मिलते हैं, उसे किन्ज़ान के साथ मुलाकात के दौरान उन्हें छिप कर देखना होगा. किन्ज़ान को वह कुछ संकोच के बाद जोखिम उठा कर भी मिलवाने के लिए तैयार हो गई.
     महिला को स्वयं भी वहां जाने की अनुमति नहीं थी, इसलिए उसने बगीचे में काम कर रहे एक लड़के को किन्ज़ान के साथ भेजने का बंदोबस्त किया. वह महिला और पेरिना दूसरी ओर से एक छोटे झरोखे से बाबा के दर्शन के लिए छिप गयीं.
     बाबा को देखना आसान न था.लड़के के पीछे जाते किन्ज़ान को ऐसा महसूस हो रहा था, कि जैसे वह किसी ज़ू में शेर को देखने जा रहा हो. पिंजरे में घूमता शेर दर्शकों के सामने आये, या न आये, यह शेर पर निर्भर था. इस बात का कोई महत्त्व न था कि दर्शक कहाँ से आया है, या उसने ज़ू देखने का टिकट लिया है. आश्रम की कई कंदराओं के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुज़र कर किन्ज़ान उस लड़के के साथ बाबा की गुफ़ा के करीब पहुंचा.
     बाबा उस समय दरवाज़े की ओर पीठ किये आसमान की दिशा में हाथ उठाये था. दोनों युवक खामोशी और श्रद्धा के साथ चुपचाप खड़े होकर बाबा के इस तरफ देखने का इंतज़ार करने लगे.उधर ऊपर की ओर से एक  धूप की छोटी सी  टॉर्च ज़मीन से गुफ़ा की दिशा में पड़ रही थी, जिसमें से सांस रोक कर पेरिना और वह बूढ़ी महिला झांक रही थीं.उन्हें अब तहखाने की उस  कोठरी का एक हिस्सा तो दिख रहा था, पर बाबा के शरीर का कोई भी भाग नहीं दिखाई दिया था.
     युवक ने किन्ज़ान को बताया कि जब बाबा इधर देखें, तो वह उन्हें प्रणाम न करे. ऐसा करने से क्या होगा, यह पूछते ही...[जारी...]         

Sunday, April 15, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 41 ]

     भीतर कुछ लोग इंतज़ार में थे. उन्हें एक सुसज्जित कक्ष में बैठाया गया था. उन्हें पीने के लिए कोई खुशबूदार स्वादिष्ट पेय दिया गया था. अपनी बारी के लिए टोकन भी दिया गया था. और आश्रम के लिए स्वेच्छा से 'कुछ' देने का अनुरोध भी प्रसारित किया गया था. किन्ज़ान अभिभूत होकर पेय का गिलास हाथ में पकड़े, वहां लगे सोफे पर बैठ गया.पेरिना को यह सब ऊब भरा लगा. वह आश्रम के चारों ओर की नैसर्गिक आभा को देखने की गरज से अहाते के पिछवाड़े की ओर चली आई.पीछे की ओर एक बड़े औषधीय बगीचे में लोग तरह-तरह के काम कर रहे थे.
     पेरिना ने एक वृद्ध महिला से बात करनी चाही, किन्तु वह 'हाँ' 'हूँ' के अलावा और कुछ न बोली. पेरिना मायूस होकर चार-दिवारी के पास, दूर तक चली गई, और अकेले ही टहलने लगी.भीतर की भीड़ देख आई पेरिना को अनुमान था कि किन्ज़ान का नंबर कई घंटों के बाद ही आ पायेगा.
     लेकिन पेरिना को यह देख कर अच्छा लगा कि वही वृद्ध महिला कुछ देर के बाद पेरिना की ओर आने लगी.कुछ ही देर में वह पेरिना से मुखातिब थी.
     महिला लगभग चालीस साल से उस आश्रम में काम कर रही थी और वहां की गतिविधियों के बारे में काफी कुछ जानती थी. महिला ने सबसे पहले तो पेरिना से इस बात के लिए क्षमा मांगी कि वह ड्यूटी पर रहते हुए उस से कोई बात नहीं कर सकी. वहां किसी से काम के वक्त बात करने पर सख्त पाबंदी थी. अब, ड्यूटी का समय ख़त्म होते ही महिला पेरिना के पास चली आई.
     महिला नार्वे के ओस्लो की रहने वाली थी. आश्रम की विश्वास-पात्र थी, और कई देशों की यात्रा कर चुकी थी. पेरिना को अपनी मित्र बनाने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा, क्योंकि वह वाचाल भी थी. शायद आश्रम में जब-तब बोलने की पाबन्दी के कारण उसकी वाचालता को हवा मिली हो.
     कंकड़ों की तरह बजती आवाज़ में बहुत कुछ बताने के बीच महिला ने पेरिना को फुसफुसा कर भी कुछ बातें बताईं. और इसी से पेरिना को मालूम हुआ कि आश्रम के मुख्य संतजी भारत के नहीं, बल्कि म्यांमार के रहने वाले हैं.
     महिला की दी इस जानकारी ने तो पेरिना को चौंका ही दिया कि लगभग नब्भे साल पहले यह आश्रम बना था. तब भारत से एक कृशकाय वृद्ध व्यक्ति को लगभग बंदी बना कर ही यहाँ लाया गया था. लोग बताते थे कि भारत में पहाड़ी-कंदराओं में जाकर वर्षों तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त करने की बहुत पुरानी परम्परा है.ऐसे तपस्वी न कुछ धनोपार्जन करते थे, और न ही अपनी सिद्धियों के एवज में किसी से कुछ लेते थे. उनके ज्ञान की बदौलत उन्हें ऐसे पूर्वानुमान हो जाते थे, जिन्हें लोग जानना चाहते थे.
     बाद में ऐसे लोगों को कुछ व्यापारिक बुद्धि के समर्थ लोग जबरन आश्रय प्रदान करके छिपे तौर पर अपने साथ रख लेते थे, और उनके चमत्कारिक ज्ञान  के बूते पर अपनी दुकान चलाते थे. भारतीय रजवाड़ों ने ऐसे तपस्वियों को सहारा देकर कई देशों में अपनी पैठ बनाई. पेरिना का मन हुआ कि यह महिला बोलते-बोलते रुके, तो जा कर किन्ज़ान को सचेत करदे...[जारी...]      

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 40 ]

     जो चन्द्रमा पूनम की रात में  चाँदी की परात की तरह चमकता दिखाई देता है, वही थोड़ी देर बादलों से आँख-मिचौनी खेल कर कच्ची बर्फ के गोले सा धूमिल भी हो जाता है. शहद की मिठास भी तृप्त कर देती है. और फिर चारों ओर दिखाई देने लग जाता है.
     किन्ज़ान ने एक सुबह पेरिना को अपना वह स्कूल भी दिखाया, जिसे याद कर के  वे लोग यहाँ चले आये थे.पेरिना को उस इमारत या जगह में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा, जिसे लेकर बरसों तक उसे याद रखा जाये. किन्ज़ान ने भी शायद पेरिना की यह प्रश्नवाचक मुद्रा भांप ली, और इसीलिए उसने अब पेरिना को वहां आने का असली कारण बताया.
     दरअसल यहाँ से कुछ ही दूरी पर एक पर्वतीय क्षेत्र में बने बड़े चर्च के पीछे एक बहुत बड़ा फार्म-हाउस था, जिसमें एक भारतीय संत ने कुछ साल पहले अपना आश्रम बना लिया था. अब वे संत अमेरिका के ही वासी होकर रह गए थे. इस आश्रम में सैंकड़ों लोगों का लगातार आना-जाना लगा रहता था. गाड़ियों की भीड़ वहां हर समय देखी जा सकती थी.लोग बताते थे कि उस आश्रम की लगभग सत्तर देशों में शाखाएं हैं. हजारों लोग इन संत जी  से आकर मिलते थे , और अपनी कठिनाइयाँ बताते थे , तथा उनसे अपनी समस्याओं का समाधान पाते थे .किन्ज़ान के मन में भी एक दबी इच्छा थी कि उसका नायग्रा झरने को पार करने का  सपना कभी पूरा होगा या नहीं, वह जानना चाहता था.
     पेरिना ने इस बात को तटस्थता से सुना, और सपाट प्रतिक्रिया दी. कोई दूसरा इंसान यह कैसे बता सकता है कि एक इंसान की कोई कोशिश पूरी होगी या नहीं?
     ये दिन साथ-साथ घूमने के थे. बस, उसके लिए यही काफी था कि वह किन्ज़ान के साथ जा रही है. फिर ये फलसफा भी तो खुद पेरिना का ही था, कि यदि एक इंसान कुछ करना चाहता है, तो दूसरा यह क्यों चाहे कि वह न करे. वह ऐसी किसी बहस में नहीं उलझना चाहती थी कि यदि संतजी ने किन्ज़ान को सफल होने का संकेत दिया, और फिर किन्ज़ान अपने मकसद में कामयाब हो गया, तो इस सफलता का श्रेय किसे मिलेगा- संतजी को या किन्ज़ान को? यदि संतजी ने किन्ज़ान का सपना पूरा होने में कोई संदेह जताया, और किन्ज़ान फिर भी अपने मकसद में कामयाब रहा, तो संतजी को क्या सज़ा मिलेगी? यदि संतजी ने किन्ज़ान को सफल होने का आशीर्वाद दिया, और किन्ज़ान विफल हो गया, तो किन्ज़ान को क्या मुआवज़ा मिलेगा? यदि किन्ज़ान से संतजी ने सफल न होने की बात कही, और किन्ज़ान सफल नहीं ही हुआ, तो एक देश में साहसिक कारनामा पूरा न होने देने का दोषी कौन ठहराया जायेगा, संतजी या किन्ज़ान? और यदि संतजी ने कुछ भी कहा, और किन्ज़ान के साथ कुछ भी हुआ, तो सत्तर देशों के लोग इन बातों में क्यों खर्च हो रहे हैं?
     लेकिन विश्व का दूसरा सबसे "घना" देश इन्हीं बातों में बीत रहा हो  तो इस से पेरिना को क्या?
     कुछ देर बाद पेरिना  किन्ज़ान की बांह पकड़े आश्रम की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.जिस तरह वे आश्रम के मुख्य द्वार की ओर जा रहे थे, उसी तरह कई लोग आश्रम से बाहर आ रहे थे. पेरिना को तो इसी बात की हैरत थी कि लोगों को अपनी हिम्मत से ज्यादा भरोसा बंद कमरे में बैठे एक दूसरे, उन जैसे ही आदमी पर था. हर बात के दो उत्तर थे- हाँ और न. इस तरह आदमी आँख बंद करके सबको हाँ या सबको 'न' भी कहे तो पचास प्रतिशत सच्चा ही होने वाला था. और इतनी बड़ी सफलता पर तो उसे वाहवाही मिलने ही वाली थी...[जारी...]
           

Saturday, April 14, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 39 ]

     कहते हैं, ज़मीन चाहे जैसी भी हो, उस पर कभी न कभी हरियाली की रंगत आती ही है. कुदरत की झोली में हर किस्म की मिट्टी के लिए बहारों के नुस्खे हैं, बस सही मौसम के आने  तक धैर्य रखने की दरकार होती है.किन्ज़ान का वह घर जो पिछले कई महीनों से तरह-तरह के असमंजस झेल रहा था, पेरिना के आते ही गुलज़ार हो गया. दीवारें 'घर' की शक्ल में ढल गईं. छत के कोनों में बने जाले और कीट-पतंगों के अस्थाई आवास  ऐसे गुम होने लगे, जैसे उनकी एक्सपायरी डेट आ गई हो.जिस तरह कलई साज़ बर्तनों पर ज़स्ते की कलई से चमक ला देता है, पेरिना के हाथों ने घर की हर चीज़ पर चमक ला दी.
     कुछ दिन के लिए किन्ज़ान ने अपने धंधे से भी मोहलत निकाली, और बफलो से बाहर कुछ  दिन बिताने का कार्यक्रम बनाया. किन्ज़ान के मित्रों ने इसे मधुचंद्र ट्रिप कहा. इस ट्रिप में मित्र-गण कोई नुक्सान नहीं होने देते हैं, और अपने साथी के काम को ऐसे मनोयोग से सँभालते हैं, मानो उनका मित्र किसी आध्यात्मिक जगत की यात्रा पर हो.
     किन्ज़ान के मन के किसी कोने में अपने बचपन के उस छोटे से शहर ग्रोव सिटी की यादें किसी किताब में रखे फूल की तरह रखी थीं, जहाँ के एक  स्कूल में उस ने कुछ दिन तक पढ़ाई की थी.उसने जब पेरिना के सामने  वहां चलने का प्रस्ताव रखा, तो वह ख़ुशी से मान गयी. कहते हैं कि शादी के बाद लड़कियां लड़कों के वर्तमान से ज्यादा  उनके अतीत को जानना पसंद करती हैं. उनके लिए ये उस लॉकर को खोलने के समान होता है, जिसमें उन्हें विरासत में मिला खज़ाना  रखा हो. ये खोज उन्हें आल्हादित करती है कि जिस पेड़ के साए में उन्होंने अपना आशियाना बनाया है, वह किस नर्सरी में उगा, और किस हवा-पानी में जवान हुआ है?
     कुछ ही दिनों बाद वे  पिट्सबर्ग होते हुए डेट्रोइट में थे. एक लम्बी काली लिमोज़ीन में सफ़र करते हुए पेरिना उस रास्ते को देख कर गदगद थी, जहाँ किन्ज़ान  उसे लेजा रहा था. किन्ज़ान  को सोच के दरिया में यादों की हजारों रंग-बिरंगी मछलियाँ तंग कर रही थीं. लाल बड़े पत्थरों से बना यह क़स्बा उसे हवा में घुले गुलदस्ते की तरह लग रहा था. इसकी गोल घुमाव-दार सड़कें सारे शहर की एकता बयां करती थीं.एक-एक इंसान की आँखों  के हिस्से में  बेतहाशा फैला मंज़र आता था. 
     वे जिस निराले से होटल में रुके उसके पिछवाड़े गज़ब की शांति और हरारत थी. माहौल के जिस्म के पोर-पोर में उमंग-भरा उठान था. जब रात आई, सब छिप गया.
     न जाने कहाँ-कहाँ क्या-क्या होता रहा. मनु और श्रद्धा को लेकर किसी दूर-देश में जयशंकर प्रसाद कामायनी रचते रहे...लन्दन के आसपास घर लौटते कवि को डेफोडिल फूल दिखाई दिए...यूनान  में कहीं कोई आदम और हव्वा के लिए थिरकन की थाप गढ़ता रहा...
     ध्रुवों पर न बीतने वाली रात बिक रही थी... किसी के पास समय होता तो जाकर खरीद लाता...[जारी...]   

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 38 ]

     उस दिन वाशिंगटन में धूप के तेवर कुछ नरम थे. जहाँ रात को नौ बजे दिन छिपता था, वहां शाम की शुरुआत ही कुछ धुंधले बादलों ने जल्दी कर डाली.
     व्हाइट-हॉउस   के सामने के   लम्बे-चौड़े लॉन पर टहलने वालों की आमदो-रफ्त रोजाना जैसी ही खुशनुमा थी. एक ओर युवकों और बच्चों के घेरे में तो जैसे  चहल-पहल का मेला ही लग रहा था. लोग कौतुहल से देख रहे थे, उस छोटे से ब्राज़ीलियन नस्ल के पप्पी को, जो लोगों के घेरे में घूम-घूम कर अपने पैरों पर खड़ा नाच रहा था. उसे किसी ने शायद शराब  पिला दी थी. वह ऐसे उन्माद में नाच रहा था कि उसके गले में पड़ा सुनहरा स्कार्फ किसी परचम की तरह हवा में लहरा रहा था.उसे देख कर ख़ुशी से ताली बजाने वालों में केवल बच्चे ही नहीं, बल्कि खुद उस नन्हे कुत्ते की मालकिन-मॉम ग्रेटा भी शामिल थी, और उसके साथ न्यूयॉर्क से आयी उसकी मित्र भी. कुछ ही दूर पर खड़े एक फोटोग्राफर ने इस बेमिसाल मंज़र को कैमरे में कैद भी करना शुरू कर दिया था. फोटोग्राफर जिस कार्यक्रम को तस्वीरों में  उतारने वहां आया हुआ था, उसके शुरू होने में थोड़ा सा वक्त अभी बाकी था.
     किन्ज़ान अपनी होने वाली दुल्हन को लेकर अभी तक वहां पहुंचा नहीं था, बस उसी का सब को इंतज़ार था.अमेरिका के  राष्ट्रपति भवन के ठीक सामने थोड़ी ही दूर पर एक बेहद खूबसूरत फव्वारे के समीप किन्ज़ान के कुछ मित्र भी इसी इंतज़ार में थे. डांस करता ब्राज़ीलियन डॉग और वे महिलाएं भी किन्ज़ान के निमंत्रण पर ही वहाँ पहुंचे थे.
     मुश्किल से दो मिनट ही गुज़रे होंगे कि फूलों से सजी एक आलीशान कार वहाँ आकर रुकी. उसे अर्नेस्ट चला रहा था. पीछे दूल्हा-दुल्हिन की पोशाक में किन्ज़ान और उसकी प्रेमिका बैठे थे. पलक झपकते ही आकर्षण का केंद्र  नन्हे कुत्ते की जगह कार से उतरा युगल हो गया. सभी ने उन्हें बधाई दी.
     फोटोग्राफर ने किन्ज़ान-दंपत्ति और उनके मेहमानों का एक यादगार फोटो उतारा जिसमें वे सभी एक साथ हवा में लयबद्ध उछाल लेक़र अपनी ख़ुशी के अतिरेक का इज़हार क़र रहे थे. वे शानदार क्षण-अक्स इस बात की सनद था, कि किन्ज़ान ने धरती से लेकर आकाश तक के जीवन-सफ़र में,मित्रों को हाज़िर-नाजिर जान क़र अपनी प्रेयसी के साथ दुनियां की तमाम दूरियां तय करने का संकल्प ले लिया. मखमली मुलायम लॉन  शेम्पेन से जैसे सींच दिया गया. किन्ज़ान के दमकते चेहरे पर नए जीवन का उन्माद रच गया.
     शाम को और गहराने का मौका दिए बिना ही वे सभी लोग तीन-चार  कारों में बैठ क़र एक लज़ीज़ रेस्तरां में रात्रि-भोज के लिए प्रस्थान क़र गए.वहीँ किन्ज़ान ने पेरिना से सब का परिचय कराया, जिसे वे पन्नी नाम से पुकारता था. एक खुशगवार शाम और दिल के नज़दीकी लोगों की उपस्थिति ने किन्ज़ान के तमाम  वे पल धो-पौंछ डाले, जिन्होंने पिछले दिनों तरह-तरह से उसका इम्तहान लिया था.देर रात मादक  आलम के बीच अर्नेस्ट ने गाड़ी को बफलो  की सड़क पर डाला, और मित्रों ने हाथ हिला क़र विदा ली...[जारी...] 
           

Friday, April 13, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 37 ]

     उस रात जब किन्ज़ान सोया,तो जिंदगी में पहली बार उसे सपना आया. थकान और देर हो जाने के कारण किन्ज़ान को उस रात नींद भी बहुत गहरी आई. कहते हैं कि नींद जितनी गहरी हो, उसमें देखा गया सपना उतना ही साफ़ दिखाई देता है. 
     किन्ज़ान ने देखा कि देर रात को उस मरी हुई मछली को फेंकने के लिए उसने  अपने हाथ  में उठाया.उसे आभास हो रहा था कि मछली बहुत बुरी तरह से दुर्गन्ध फेंक रही है, इसलिए वह उसे घर की डस्टबिन में नहीं फेंकना चाहता था. वह दरवाज़ा खोल कर चुपचाप बाहर निकला और गली पार करके सड़क के दूसरे किनारे पर बने बड़े कचरा-पात्र की ओर जाने लगा. यह कचरा-पात्र ढका हुआ था, और इसे ज़्यादातर लोग अपने पालतू कुत्तों के मल-मूत्र आदि को फेंकने के लिए प्रयुक्त करते थे. इसमें रासायनिक पदार्थ डाल कर गंध को आगे न फैलने देने की व्यवस्था भी  थी.
     किन्ज़ान ने ढक्कन हटा कर जैसे ही उस मरी हुई मछली को फेंकना चाहा, किन्ज़ान यह देख कर दंग रह गया कि झटके से उछल कर मछली वापस उसके हाथ में आ गयी. उसे जैसे करेंट का सा झटका लगा. उसने अपने हाथ की ओर देखा ही  था कि उसकी चीख निकल गई.उसकी  पूरी हथेली खून से भर गयी. उसने अपने हाथ को गौर से देखा- कहीं चोट का कोई निशान नहीं था, न जाने खून कहाँ से आया था?देना चाहा. इस बार मछली डिब्बे में न गिर कर डिब्बे के दूसरी ओर बाहर गिरी. लेकिन फिर वही हुआ, मछली उछल कर पुनः किऔर खून की मात्रा इतनी थी कि पूरी हथेली लथपथ हो गई. किन्ज़ान ने तुरंत झटक कर मछली को फिर से फेंक न्ज़ान के हाथ में आ गयी. इस बार वह डरा नहीं. उसे अपने घर की चादर के रंग जाने का रहस्य भी समझ में आया. 
     अबकी बार उसने कुछ संभल कर पूरी ताकत से मछली को बहुत दूर घनी घास की ओर  फेंका.किन्ज़ान के युवा हाथों की ताकत इतनी ज़बरदस्त थी कि वह छोटी सी, सूखी, मरी हुई मछली   लगभग  सत्तर फिट की दूरी पर जाकर गिरी. किन्ज़ान को पसीना छूट गया. लेकिन इस पसीने में और इज़ाफा ही हुआ, जब मछली किसी रिफ्लेक्स एक्शन की तरह उसी दूरी और उसी ऊंचाई को लेकर फिर से किन्ज़ान के हाथ में आ फंसी. 
     अब किन्ज़ान डर से कांपने लगा. रात के लगभग दो बजे थे. हार कर किन्ज़ान ने मछली को अपनी जेब के हवाले करना चाहा. अब कोई भयानक या क्रुद्ध प्रतिक्रिया नहीं हुई, बल्कि आहिस्ता से निकल कर मछली फिर से किन्ज़ान के हाथ में ही आ गई. किन्ज़ान ने अपने को थका और बेबस अनुभव किया. वह भारी क़दमों से अपने घर की ओर वापस लौटने लगा. घर आकर उसने दरवाज़ा खोलने के लिए जैसे ही उसे धक्का दिया, किन्ज़ान की नींद खुल गई. वह उठ बैठा. उसने चौंक कर इधर-उधर देखा, उसे सब कुछ ठीक और यथावत पाकर भारी राहत मिली. उसका ध्यान तुरंत अपनी हथेली की ओर गया. वह सामान्य थी, वहां खून का कोई नामोनिशान नहीं था. हाथ में कोई मछली भी नहीं थी. 
     उसे याद आया, कि रात को चादर के रहस्य -मयी रूप से लाल हो जाने के कारण वह ज़मीन पर ही सो गया था. उसने बिस्तर पर नज़र डाली- चादर अपने मूल हल्के रंग में ही थी, और उस पर किसी मरी मछली का कोई निशान तक न था. सुबह होने में काफी देर बाकी थी. किन्ज़ान अपने बिस्तर पर आराम से आ सोया...[ जारी...]      

Thursday, April 12, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 36 ]

     किन्ज़ान ने बहुत याद करने की कोशिश की, ऐसा कब हुआ था कि उसने अपने कमरे में यह सुर्ख लाल रंग की चादर बिछाई, पर उसे याद नहीं आया. वह कुछ अनमना सा हो गया. उसकी ज़रा भी इच्छा नहीं हुई कि वह उस तिलिस्मी चादर पर सोए. वह ज़मीन पर एक ओर बैठ गया.
     थोड़ी देर बैठे रहने के बाद उसका ध्यान गया, कमरे की दीवार पर बने एक छोटे से छेद की ओर.उसने देखा कि सुनहरी रंग की बहुत सारी चींटियाँ एक कतार में वहां से निकल कर दीवार पर रेंगती हुई नीचे की ओर आ रही हैं. वह ध्यान से उनकी ओर देखने लगा. चीटियाँ एकदम सीध में और बराबर की दूरी के अंतर से एक दूसरे के पीछे चली आ रही थीं. ऐसा लगता था, मानो चींटियों को कई दिन तक इस तरह एक साथ चलने का प्रशिक्षण दिया गया हो. किन्ज़ान सोचने लगा, सेना में अभ्यास  परेड के समय एक साथ चल पाने के लिए सैनिकों को किस तरह सख्ती से निर्देश देकर प्रशिक्षित किया जाता है. और यह छोटा सा जीव बिना किसी निर्देश, बिना रस्ते के संकेतों के, अपने आप लाइन में चला आ रहा है? 
     किन्ज़ान ने खेल ही खेल में उनका अनुशासन तोड़ने का निश्चय किया. उसने पहले जेब में पड़े एक छोटे से लाइटर से उनकी पंक्ति को तोड़ना चाहा.ऐसा करके वह केवल तीन-चार  चींटियों को तितर-बितर कर सका.लेकिन कुछ दूर जाकर उन चींटियों ने अपना रास्ता फिर ढूंढ लिया. वे फिर अपने दल के साथ उसी तरह चलने लगीं. किन्ज़ान ने देखना चाहा- वे आखिर  जा कहाँ रही हैं? थोड़ी दूर उस कतार का पीछा करते हुए किन्ज़ान को उनके गंतव्य का पता मिल गया. वे उस लाल चादर पर जा रहीं थीं. अब किन्ज़ान की दिलचस्पी यह जानने में थी कि उस चादर  पर ऐसा क्या था, जिस पर वे अनुशासित सैनिक-नुमा जीव  लामबंद होकर धावा बोलने को आतुर थे? 
     और तब किन्ज़ान यह देख पाया कि चादर के एक किनारे पर एक छोटी सी मछली चिपकी हुई है, इमली के आकार की,सुनहरे केसरिया रंग की. मरने के बाद, सिकुड़ी-सिमटी सी. चादर की सलवटों के बीच फंसी, लाचार और बेदम...जब पानी में जीवित हो, तो अपने शरीर से धुआं छोड़ने वाली. अब उसकी निर्जीव देह शायद धुंए की जगह गंध छोड़ रही थी. कमरे की बदबू को किन्ज़ान ने भी अब महसूस किया, जब उसने मृत-मछली अपनी आखों से देख ली. 
     दीवार से रेंग कर आती चींटियों की सेना इसी मछली की गंध के इशारे पर इसकी काया को दुनिया से रुखसत करने की मुहिम पर  आ रही थी. 
     किन्ज़ान के मस्तिष्क में अचानक कुछ कौंधा. तो क्या चादर के रंग बदलने में इस मछली का हाथ हो सकता है? क्या इसकी बेजान लाश में ठीक उसी तरह की  कोई चमत्कारिक प्रक्रिया घट कर चुकी है, जिस तरह इसके जीते- जी इसके शरीर से धुआं उठा करता है? क्या यह अजूबा पिछले दिनों घटी घटनाओं से कोई ताल्लुक रखता है? या यह सामान्य सी वैज्ञानिक प्रक्रिया  है, जो किसी जीव-जंतु की अपनी शारीरिक बनावट से जुड़ी है...[जारी...]        

Tuesday, April 10, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 35 ]

     जहाँ किन्ज़ान ने अपनी दुकान लगाईं थी, उस से कुछ ही दूर पर कुछ और लड़कों ने भी तरह-तरह की चीज़ें बेचने के लिए रख छोड़ी थीं. दिन भर एक ही तरह के कारोबार में लगे वे लड़के ख़ाली समय में एक दूसरे से मिलते तो उनमें बातें होतीं और देखते-देखते दोस्ती भी हो जाती.किन्ज़ान की जान-पहचान नज़दीक ही एक पुरानी किताबें बेचने वाले लड़के से हो गई.
     अब अक्सर खाली समय में किन्ज़ान उसके पास जाकर बैठता, और धंधे की बातों के बाद आते-आते पढ़ने के लिए उससे कोई पुरानी किताब भी उठा लाता.
     किन्ज़ान अपने बचपन के दिनों में कभी भी पढ़ने में दिलचस्पी नहीं लेता था. उसका रुझान अब भी हल्के-फुल्के मनोरंजक साहित्य पर ही रहता था. वह पत्रिकाएं उलट-पलट कर देखता, थोड़ा बहुत पढ़ता फिर शाम को वापस लौटा देता.
     यहीं एक दिन किन्ज़ान के हाथ वो किताब लग गई, जिसे एक बार पढ़ना शुरू करके किन्ज़ान उस में खो गया.शायद दो-एक ग्राहक आकर लौट भी गए हों. किन्ज़ान को कुछ पता ही नहीं चला. उस किताब में किन्ज़ान को अपने साथ घटी  हुई घटनाओं के अक्स भी दिखे.किताब कुछ ऐसे लोगों के बारे में थी, जो एक बार मर कर भी वास्तव में मरे नहीं, बल्कि किसी न किसी तरह इस दुनियां में बने रहे.
     किताब में ऐसे चरित्रों को 'आत्मा' नाम दिया गया था जो अपनी मौत के बाद भी कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में अपने जानने वाले लोगों को दिखाई देते रहे. इन आत्माओं का आगमन इसी तरह होता था, पहले उनसे जुड़ी कोई चीज़ या कोई बात सामने आती, फिर कभी अदृश्य, तो कभी प्रत्यक्ष रूप से वे अपने होने का आभास कराते. आश्चर्य की बात तो ये थी कि कुछ लोग इन आत्माओं से बात भी कर लेते थे और इनके बारे में पूरी जानकारी भी ले लेते थे. इन लोगों का आत्माओं के साथ कोई दैवीय सम्बन्ध जैसा होता.
     यदि कुछ दिन पहले किन्ज़ान ने यह सब पढ़ा होता तो शायद वह भी इस उम्र के बाकी लड़कों की तरह सारी बात को केवल मनोरंजन के लिए लिखे गए मनगढ़ंत किस्सों के रूप में ही स्वीकार करता, लेकिन अब वह ऐसा न कर सका. उसने खुद कुछ समय पहले अपने घर में किसी की अदृश्य उपस्थिति महसूस की थी.उसका मन उसे  अब इस बात पर यकीन दिलाने लगा था कि उसके घर में अवश्य किसी ऐसी ही आत्मा का वास है.
     उस रात जब किन्ज़ान अपने घर गया तो उसने देखा कि घर में कुछ अजीब और अपरिचित सी गंध फैली हुई है. उसे कमरे की दीवार पर टंगी एक तस्वीर भी बदली-बदली सी लगी. वह काफी दिनों से वहां थी, फिर भी किन्ज़ान को ऐसा लगा कि वह तस्वीर अपने मूल आकार से काफी बड़ी हो गई है. ऐसा कैसे हो सकता था? किन्ज़ान को ज़रूर कोई भ्रम हुआ होगा. या फिर दिन में पढ़ी गयी किताब का कोई मनोवैज्ञानिक असर उसे घर की चीज़ों पर दिखाई दिया हो.
     नहीं, यह नहीं हो सकता. यह कोई मनोवैज्ञानिक असर नहीं था, किन्ज़ान को अच्छी तरह याद था, कि उसके बिस्तर पर बिछी चादर लाल नहीं थी. लाल सुर्ख रंग ऐसा नहीं होता कि उसे कोई भूल जाये...[जारी...]      

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 34 ]

     ...भी एक न एक दिन ज़रूर सच होता.
     सपने आँखों में लकीर छोड़ जाते हैं. जब तक पूरे न हों, आँखों में नींद के साम्राज्य को जमने नहीं देते. किन्ज़ान ने भी नसीब को पड़ाव दिया था, आत्म-समर्पण नहीं. कुछ दिन बाद वह बूढ़ा, किन्ज़ान का मामा और रस्बी का सौतेला  भाई वापस लौट गया.
     किन्ज़ान ने एक दिन अपने घर के भीतर एक बहुत विचित्र बात नोट की. उसने देखा, कि घर में अकेले उसके रहते हुए भी जब-तब ऐसी बातें होती हैं, जिनकी जानकारी उसे नहीं होती. एक सुबह उसने अपने फ्रिज़ में कुछ ऐसी चीज़ें रखी देखीं, जो वह खुद कभी नहीं लाया था. उसने बहुत दिमाग दौड़ाया कि ऐसा कैसे हो सकता है?
     कहीं ऐसा तो नहीं, कि किन्ज़ान की याददाश्त कमज़ोर हो गई हो? वह बाज़ार से कुछ चीज़ें ले आया हो, और उसे खुद यह याद न रहा हो. बुढ़ापे में तो फिर भी ऐसा होना कोई अनोखी बात नहीं मानी जाती, पर किन्ज़ान तो अभी नौजवान था. उस से भला ऐसी भूल-चूक कैसे हो सकती है? किन्ज़ान का मित्र अर्नेस्ट जब आता तो किन्ज़ान सोचता कि उसे इस बारे में बताये. पर वह कुछ सोच कर रुक जाता. वैसे भी, युवावस्था में अपने दोस्तों को भी अपना मखौल उड़ाने का मौका कोई दोस्त नहीं देता.
     और क्या, ऐसी बात सुन कर कोई भी किन्ज़ान का मज़ाक ही तो उड़ाता?
     लेकिन धीरे-धीरे किन्ज़ान को लगा कि यह अवश्य कोई गंभीर बात है. ऐसा अक्सर होने लगा. किन्ज़ान सुबह उठता तो ध्यान देता कि उसके बिस्तर के किनारे पानी की बोतल रखी हुई है. जबकि वह अच्छी तरह सोचता कि उसने पानी वहां नहीं रखा था. हाँ, नहीं ही रखा था.
     कभी-कभी किन्ज़ान को थोड़ा भय भी लगता, यह सब क्या है? इन बातों से उसे कभी कोई नुक्सान नहीं हुआ, किन्तु कोई भी ऐसे घर में भला कैसे रह सकता है, जिसमें वह होता हो जो आप न करें. खासकर तब जबकि घर में केवल आप ही रहते हों.
     किन्ज़ान अब घर में कम से कम देर रहने की कोशिश करता, वह अपना समय मित्रों के साथ बिताता. फिर अब उसने इस बारे में भी गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया था, कि वह कोई काम करे. उसे यह ख्याल आता कि उसकी माँ रस्बी उसे सेना में भेजना चाहती थी. लेकिन सेना से अब उसका मन उचाट हो गया था.
     उसने बफलो में ही कोई छोटा-मोटा कारोबार करने की सोची. मुख्य सड़क से थोड़ा हट कर एक गली में पर्यटकों को पसंद आने वाले छोटे-मोटे सामान की छोटी सी दूकान जमाने में उसे ज्यादा परेशानी नहीं आई. किन्ज़ान के स्टाल पर खरीदारों की अच्छी आवक-जावक होती थी. इससे उसे ज्यादा कुछ सोचने का अवसर नहीं मिलता था,लेकिन जब भी वह थोड़ा फुर्सत में होता तो यह देखता कि उसकी दुकान से वह मशहूर झरना- नायग्रा फाल्स साफ़ दिखाई देता था.कभी-कभी मन ही मन किन्ज़ान यह सोच कर मुस्करा देता कि बर्फीले सफ़ेद पानी का यह तूफ़ान सांस की तरह उसके जीवन से कैसे जुड़ गया है...[जारी...]    

Monday, April 9, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 33 ]

     ...कुछ सैनिक आकर उस फार्म-हाउस से थोड़ी ही दूर पर ठहरे, जिसमें उन दिनों रसबानो अपनी माता और कुछ अन्य रिश्तेदारों के साथ छुट्टियाँ मना रही थी.फार्म-हाउस में काम करने वाले लड़कों से रसबानो को पता चला कि अमेरिकी सेना का एक तेल-वाहक जहाज़ कुछ ही दूरी पर डेरा डाले हुए है, जिसके कामगारों और सैनिकों से उनकी जब-तब बातचीत होती रहती है.
     सैनिकों को स्थानीय बाज़ारों और देखने लायक जगहों में दिलचस्पी रहती, और फार्म-हाउस के कर्मचारियों को अमेरिका के बारे में जानने की जिज्ञासा रहती. सैनिकों के साथ आया छोटा-मोटा सामान भी उन्हें लुभाता.
     जिस तरह आसमान के तारे क्षितिज पर आकर धरती के पेड़ों की फुनगियों को येन-केन प्रकारेण छू ही लेते हैं, जिस तरह सागर और धरती किसी तट पर एक-दूसरे को नम कर ही देते हैं,जिस तरह लहरों पर तैरते पोत एक मुल्क से चल कर दूसरे मुल्क की सीमा चूम ही लेते हैं, वैसे ही एक बदन पर चस्पां नयन-खंजन किसी न किसी तरह दूसरे जिस्म पर उगी आँखों के काजल  की डाल पर घड़ी-दो-घड़ी बैठ ही लेते हैं.
     किसी डाल पर कोई पंछी आ बैठे, तो फिर तिनकों के  नशेमन बनने में भला कितनी देर लगती है? आशियाने  ज़मीन पर भी बनते हैं, पानी में भी, और आसमान की हवाई गलियों में भी.
     ऐसे ही, हल्की-हल्की बहती हवा में उड़ते पराग-कणों की तरह रसबानो का नसीब भी अमेरिकी सेना में भर्ती एक सोमालियाई सैनिक के साथ वाबस्ता हो गया. कुछ महीनों बाद रसबानो को भी अमेरिका आने का मौका मिल गया. सोमालिया की पहचान केवल पति के मुल्क के रूप में बनी रह गई. और इस तरह एक देश की धरती पर जन्मी रसबाला, बरास्ता खाड़ी रसबानो बनी, फिर अपने सैनिक पति के साथ हमेशा के लिए यहाँ आ गई.
     इसी धरती ने उसे रस्बी नाम दिया और इससे भी बढ़ कर उसे किन्ज़ान दिया.
     वह बूढ़ा,जो अपने आप को रस्बी का भाई बता कर अब किन्ज़ान से मामा का सम्मान पा रहा था,उसी फार्म-हाउस में किन्ज़ान के पिता से भी केवल एक बार मिला था. वह रस्बी का रिश्ते का भाई था, क्योंकि रस्बी के पिता ने दो शादियाँ की थीं. यह बूढ़ा घोड़ों की खरीद-फरोख्त में भी माहिर था और इसी काम में अपने पिता की मदद करता रहा था. इसका आना-जाना कारोबार के सिलसिले में अक्सर होता ही रहता था.
     बूढ़े ने किन्ज़ान से आग्रह किया कि वह एक बार उसके साथ जेद्दाह चले, जहाँ उसे उसके और भाई-बंधु भी मिलेंगे.लेकिन किन्ज़ान को यह सब किस्से-कहानियों  की बातें लगती थीं. क्योंकि इन सब के बारे में उसने अपनी माँ रस्बी से कभी कुछ नहीं सुना था. वह तो केवल इतना जानता था कि उसकी माँ अपने देश अमेरिका को दिलो-जान से चाहने वाली महिला थी, जो अमेरिकी सेना में काम करते हुए अपने पति को खो देने के बाद अपने बेटे को भी उसी सेना में भेजना चाहती थी. और अब अपना अधूरा आग्रह साथ लिए दुनिया से ही कूच कर गई. किन्ज़ान की नज़र तो खुद उसके अधूरे सपने पर भी थी. विधाता दुनिया में अधूरा कुछ भी कैसे छोड़ पाता है?...दुनिया का ब्ल्यू-प्रिंट उसने  पहले से बना कर रखा होता तो किन्ज़ान का सपना...[जारी...]          

Sunday, April 8, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 32 ]

     ये काम आसान न था. रसबाला को मुस्लिम परिवार के लिए गोद लेना आसान न था. कई पेचीदगियां थीं. लेकिन बच्चों के भविष्य को देखते हुए, जब अनाथालय के अधीक्षक ने पाया कि कोई संपन्न महिला बार-बार रसबाला को ले जाने के लिए ही आग्रह कर रही है, तो उन्होंने रूचि लेकर मुस्लिम दंपत्ति की मदद की. थोड़ा हेर-फेर अभिलेख में भी किया गया.और इस तरह रसबाला एक दिन 'रस बानो' हो गई. उसे कैदी महिला की पुत्री के स्थान पर अनाथ बताया गया. जब किस्मत लिखने में विधाता से भूल होती आई है तो इंसानों का क्या ?
     और मुस्लिम दंपत्ति ने भी 'पाठशाला' के इस सहयोग का भारी इनाम दिया. पाठशाला में  बच्चों के लिए पीने के पानी का एक बड़ा टैंक बनवाया. हज़ारों रूपये इसमें खर्च हुए.
     अब रसबानो एक संपन्न परिवार में आ गई. उसके 'पिता' का घोड़ों और ऊंटों का बड़ा कारोबार था. एक से  एक बढ़िया नस्ल के अरबी घोड़े छोटी उम्र में खरीदे जाते थे, और उन्हें प्रशिक्षित करके ऊंचे दामों में  बेचा जाता था. पश्चिम की मांग के अनुसार बढ़िया जानवर तैयार करने में उन्हें भारी मुनाफ़ा होता था, क्योंकि ऊँट और घोड़े पूर्वी पिछड़े इलाकों में सस्ते मिल जाते थे. उनसे उन्नत किस्म के जानवरों की हायब्रिड नस्लें तैयार होती थीं. अच्छे खान-पान के साथ नफ़ासत की ट्रेनिंग उन्हें उम्दा माल बनाती थी.जबकि पूर्वी क्षेत्रों में तो इन्हें कभी चारे-पानी की कमी या दुर्भिक्ष के चलते वैसे ही छोड़ दिया जाता था, जहाँ ये कुछ औपचारिकताओं के बाद मुफ्त के माल की तरह मिल जाते थे.
     रसबानो का परिवार साल-दो साल में खाड़ी देशों में जाता रहता था.बारह साल की होने तक तो रसबानो ने अपने माँ-बाप के साथ हज यात्रा भी कर डाली. मक्का-मदीना और जेद्दाह में उसे बहुत आनंद आता था. वह अपने पिता के कारोबार को बहुत कौशल और ध्यान से देखती. अपनी माँ की तरह उसकी रूचि घर और लड़कियों वाले कामों में नहीं थी.
     परिवार इतना बड़ा था कि खुद रसबानो की माँ को भी पता नहीं था, कितने शहरों में कितने रिश्ते-नातेदार फैले हुए हैं. जहाँ जाती, रसबानो अपनों को पाती. फिर उसकी उम्र भी धीरे- धीरे ऐसी आ रही थी, जिसमें हर कोई लड़की को अपना समझता है. घर वाले चाहते हैं, कि वह दायरों में रहे, बाहर वाले चाहते हैं कि वह बेलगाम हर कहीं आती-जाती उपलब्ध रहे, और खुद मन चाहता है कि दुनियां क्यों न देखी जाय? रसबानो सोचती, कि ये मुकाम लड़कों की जिंदगी में क्यों नहीं आता ?
     रसबानो ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. न उसने अपनी पिछली जिंदगी के बारे में किसी से कुछ कभी पूछा, और न ही किसी ने कभी उसे कुछ बताया.
     इतना ज़रूर था, कि जब भी रसबानो भारत में अपने घर आकर वापस  लौटती, तो घर-गाँव की हर चीज़ उसे न जाने क्यों अपनी ओर खींचती. ये लगाव कैसा था, क्यों था, रसबानो कभी न जान पाती.
     हाँ, एक बार इस लगाव की सीरत, फितरत और ख़लिश किसी खुशबू की शक्ल में उसके मन के झरोखों से झांकी, जब सोमालिया से ...[जारी...]       

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 31 ]

     रसबाला के जन्म की कहानी भी अजब थी. नन्ही बच्ची अभी गर्भ में ही थी, कि एक दिन गाँव के बाहर ऊँट पर पीने का पानी बेचने वाला आया. सुबह से उसके इंतज़ार में खड़ी रसबाला  की माँ का पारा तब एकाएक चढ़ कर सातवें आसमान पर पहुँच गया, जब उसके आगे खड़ी औरत ने दो हांडियां खरीद लीं, और ऊँट वाले का डोल ख़ाली हो गया.पानी की कीमत चुकाने के लिए लाये गए अंडे उसके हाथ में न होते तो रसबाला की माँ दोनों का मुंह नोंच लेती- मुए ऊँट वाले का भी, और कलमुही पानी की उस लुटेरी का भी. मुनाफाखोरों की तरह पानी की कालाबाजारी करने चली थी!
     लेकिन दोनों हाथों में पानी भरी हांडियां लिए इतराती वो मटक्को जैसे ही पलटी, उसकी कोहनी रसबाला की माँ के हाथ से टकरा गई, और तीनों अंडे हाथ से छूट कर रेत में गिर गए.एक तो ऐसा फूटा, कि मिट्टी पर जलती  धूप में आमलेट ही बन गया. बाक़ी दोनों भी  फूट कर मिट्टी में जा मिले.
     रसबाला की माँ ने आव देखा न ताव, पहले तो बाल पकड़े उस औरत के, और फिर झटके से उसकी दोनों हांडियां फोड़ डालीं. ऊँट घबरा कर लीद करता हुआ आगे भागा. भगदड़ मच गई.
     अब एक तरफ फूटे अंडे, दूसरी तरफ बिखरा पानी, दोनों तरफ पैनी प्यास...जम कर लड़ाई हुई दोनों में. बात केवल मार-पीट पर ही नहीं रुकी, हाथ में पहने मोटे कड़े के वारों से रसबाला की माँ ने उस अंडे फोड़ने वाली को बेदम करके ही छोड़ा. थोड़ी ही देर में गर्म रेत ने उबलते लहू के थक्के भी देखे. तमाशबीन  तितर-बितर और रसबाला की माँ की कलाई में हथकड़ी भी आ गई. जो हाथ पानी लेने गए थे, वो हथकड़ी पहन कर लौटे.
     उसका आदमी तो पैदाइशी मजदूर था. हथकड़ियों को जमानत के झमेलों से तोड़ पाता, तब तक तो रसबाला की माँ जेल में आ गई.
     और इस तरह रसबाला का जन्म भी जेल में ही हुआ. दादी ने पोती का मुंह नहीं देखा था, बस, नाम रख दिया रसबाला.वह भी इतनी समर्थ नहीं थी कि बच्ची को अपने साथ रख सके. बीमार, कृशकाय व जर्जर.
     और अपने बचपन को रसबाला ने सूखी धूप में खेलते और सूरज ढलते ही अँधेरी बैरकों में बंद हो जाते देखा.
     कैदियों के बच्चों की सार-सम्हाल करने वाली किसी संस्था के कदम उस जेल में पड़े, तब रसबाला चार साल की थी. एक समाज-सेविका ने जेल में ही सब औरतों से मिल कर उन्हें समझाया कि अपने साथ-साथ अपने बच्चों का भविष्य तबाह मत करो. नसीब की मारी माओं को भला इसमें क्या ऐतराज़ होता,कि उनके बच्चों को कोई अँधेरी सुरंग से उजाले की दुनियां में निकाल ले जाये.
     रसबाला कैदियों के बच्चों की एक आवासीय पाठशाला में चली गई. बच्चे इसी आसरे में पलने लगे. रसबाला की माँ का कारावास जब तक पूरा होता, एक मुस्लिम परिवार ने उसे गोद ले लिया...[जारी...]              

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 30 ]

     ...जब नदी के किनारे से हारा-थका किन्ज़ान बोझल क़दमों और हैरत-भरे विचारों के साथ-साथ उस बूढ़े और नन्हे कुत्ते को लेकर अपने घर की ओर चला तो शायद वह सोच भी नहीं सकता था कि अब उसकी जिंदगी और उसका परिवार यही है. माँ के बारे में भी उसे कुछ खबर नहीं थी.
     वीरान पड़े घर में देर रात तक तो किन्ज़ान ने माँ का इंतज़ार किया, मगर फिर उसे किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी. किसी तरह किन्ज़ान ने अपना और अपने साथियों का पेट भरा,और वे सो गए. जिंदगी ने सभी का इम्तहान लिया था, इसलिए सभी थके थे.
     अगली सुबह घर के दरवाज़े पर सूरज और पुलिस, साथ-साथ आये. पुलिस ने बताया कि रस्बी अब इस दुनिया में नहीं है. किन्ज़ान ने जिंदगी का वो अँधेरा देखा, जिसे दूर कर पाने में ताज़ा उगा सूरज भी लाचार था.
     दोपहर को दरवाज़े की घंटी बजने पर जब किन्ज़ान ने दरवाज़ा खोला तो एक जानी-पहचानी कार को खड़ा पाया. न्यूयॉर्क से आई महिला ने किन्ज़ान के मिशन की असफलता के लिए दुःख व्यक्त किया, और अपने नन्हे पुत्रवत प्यारे कुत्ते को ले जाने की पेशकश की. लेकिन जब किन्ज़ान ने महिला के दिए डॉलर लौटाने चाहे तो उसने कहा कि इन्हें किन्ज़ान अपने भविष्य के मिशन हेतु अग्रिम शुभकामनाओं के रूप में अपने पास रखे.
     किन्ज़ान ने लाचारी से यह प्रस्ताव स्वीकार किया, क्योंकि उसे महसूस हो रहा था कि महिला उसके साथ हुए हादसे के बारे में पूरी तरह जान चुकी है.
     अब किन्ज़ान का पहला मकसद बूढ़े से अपनी माँ के अतीत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना था. किन्ज़ान तो अब तक केवल यह जानता था कि वे लोग सोमालिया से यहाँ आये थे, किन्ज़ान के पिता अमरीकी सेना में थे, और सेना में रहते हुए ही उनकी मृत्यु हुई थी.
     बूढ़ा यह देख कर आश्वस्त था कि अब किन्ज़ान ने अपना गुस्सा छोड़ कर उसकी आत्मीयता को जगह दी है. उसने किन्ज़ान को किसी परीलोक की कहानी की तरह पिछली बातों से रूबरू कराया.
     ...किन्ज़ान की माँ रस्बी मूल रूप से भारत की रहने वाली थी. वहां उसका जन्म जैसलमेर के पास एक बहुत छोटे से गाँव में हुआ था. रस्बी ने अपने जीवन के पहले चार वर्ष तक कभी चन्द्रमा नहीं देखा था. उसे यह भी पता नहीं था कि  तारे क्या होते हैं. फूल-पत्तियां, पेड़ और पंछी रस्बी को जीवन के पहले चार साल तक कभी नहीं दिखे.
     रेत और रेत के चारों ओर एक ऊंची सी पत्थरों की दीवार, और आसमान से आती सूखी धूप ही बस उसका जीवन था.उसकी माँ इसी धूप में और औरतों के साथ कभी चक्की पीसती, कभी कपड़ा बुनती,कभी बांस की टोकरी बनाती, तो कभी पत्थर तोड़ती. इसी बीच उसे प्याज़, चटनी या किसी दाल के साथ सूखी चार मोटी-मोटी रोटियां मिलतीं. उन रोटियों को माँ खाती, और उनके कुछ टुकड़े नन्ही रस्बी को मिलते, जिसका नाम तब  रस्बी नहीं, रसबाला था.
     रसबाला के लिए इस सारे सहरा में एक छोटा सा नखलिस्तान, अमृत जैसे दूध की बूंदों का एक प्यारा सा झरना था, जो उसकी माँ की छाती से बहता था, बाकी दुनियां सूखी और बदरंग थी.  [जारी ...]     

Wednesday, April 4, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 29 ]

     ...किन्ज़ान बहुत क्रोध में था, वह शायद बूढ़े की जान ही ले डालता,लेकिन मार खाते-खाते भी बूढ़ा बार-बार गिड़गिड़ा कर यही कहे जा रहा था कि एक बार मेरी बात तो सुनो...
     किन्ज़ान एक पल हाथ रोक कर बोला-  बोल, बता, तूने ऐसा क्यों किया?
     बूढ़ा बोला- ...मुझे रस बानो ने भेजा था...लेकिन यह कहते ही बूढ़ा पश्चाताप से भर गया. अपने दांत काट कर बोला- मुझे माफ़ करदो, मैंने उसकी दी हुई कसम तोड़ दी.
     किन्ज़ान एकदम ठहर गया. उसे इस बात का ज्यादा  आश्चर्य नहीं था कि उसकी माँ ने ही उसे किन्ज़ान का मिशन फेल करने भेजा, बल्कि इस से भी ज्यादा तो वह यह देख कर चौंका, कि यह कौन व्यक्ति है जो उसकी माँ को 'रस बानो' नाम से पुकार रहा है?
     बूढ़ा किसी हताश अपराधी की तरह माथे पर हाथ लगा कर नीचे बैठ गया. उसे लग रहा था कि उस से गलती पर गलती हुए जा रही है.
     किन्ज़ान तो जैसे दो पल में ही किसी दूसरी दुनियां का वासी हो गया. उसे ऐसा लगा, जैसे किसी ने प्रश्नों का गट्ठर उस के दिमाग की नसों में घुसा दिया हो. वह भी ठीक बूढ़े ही की तरह अपने सर पर हाथ रख कर बूढ़े के सामने बैठ गया.
     बूढ़ा आत्मीयता से बोला- तुम्हारी माँ तुम्हें बिलकुल भी नुक्सान नहीं पहुँचाना चाहती थी. उसने केवल मुझसे यह कहा था कि मैं तुम पर नज़र रखूँ, और तुम्हें जब भी पानी जीतने की मुहिम पर जाते देखूं, तो उचित-अनुचित की परवाह किये बिना तुम्हें रोकने की कोशिश करूँ.
     किन्ज़ान एकटक बूढ़े को देखता रहा. एक पल सांस लेकर वह बूढ़ा  खुद ही फिर बोला- तुम्हारी नाव बुलेट-प्रूफ थी. इसमें गोली का असर नहीं होता था, मैंने किनारे से केवल इसमें लम्बा काट लगाने की कोशिश की. किन्तु मुझे छेद होता नहीं दिखा, और यह तेज़ी से भाग रही थी. मैं डर गया. तुम थोड़ी ही देर में छलनी हुई नाव से आसमान जैसी ऊंचाई से गिर जाने वाले थे. मैंने आपा खो दिया,और बिना सोचे-समझे नाव के किनारे पर दनादन गोलियां बरसा डालीं. कह कर बूढ़ा फिर से अपने आंसू पोंछने लगा. किन्ज़ान और कुछ पूछता, इस से पहले ही बूढ़ा फिर अपने आप बोल पड़ा- मैंने आज तक अपनी बहन की कोई बात नहीं टाली...उसने पहले ही बहुत दुःख झेले हैं...
     किन्ज़ान सब भूल गया. अपने मिशन की असफलता भूल गया. अपना दर्द भूल गया. अपने आप को भी भूल गया. बस, उसे याद रहा तो केवल यह, कि एक अजनबी बूढ़ा उसकी माँ को अपनी बहन कह रहा है. और माँ का नाम रस्बी नहीं बल्कि रस बानो उच्चार रहा है. उसकी माँ के आदेश को पत्थर की लकीर मान कर इतना बड़ा जोखिम ले कर उसे बचाने चला आया है. माँ द्वारा कसम दिए जाने की बात कर रहा है... और अपने से चौथाई उम्र के लड़के से मार खाकर भी अविचलित बैठा है. ऐसे में किन्ज़ान को अपनी माँ की याद आई. [ जारी...]         

Tuesday, April 3, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 28 ]

     ...और तीखी आवाज़ आई, जैसे किसी ने नौका पर रिवाल्वर की गोलियों से वार किया हो.वार इतना आक्रामक था, कि बुलेट-प्रूफ परदे पर पड़ी खरोंच किसी ब्लेड की तरह एक ओर से परदे को चीर गई. पहले एक गोली चली, फिर कुछ रुक कर तीन-चार गोलियों की आवाज़ आई.
     बहते पानी में भागती नौका का जो हिस्सा खुला, उसके बाहर की ओर पलटते ही छोटा कुत्ता एक भय-मिश्रित चीत्कार के साथ उछलकर पानी में बाहर जा गिरा.बिजली की सी गति से किन्ज़ान ने बेल्ट हटा कर पानी में कूदने में पल का हजारवां हिस्सा भी नहीं गंवाया. उसे अपने मिशन की शुरुआत पर अमेरिकी महिला के कहे शब्द शायद आकाश से हुई वाणी की तरह कौंध कर सुनाई दे गए- "मैं अपना बेटा ही नहीं, अपनी जिंदगी का एक भाग तुम्हें दे रही हूँ..."
   कुशल तैराक किन्ज़ान ने झपट कर कुत्ते को हाथों में पकड़ लेने के बाद तेज़ी से दूर जाती नौका की ओर एक हसरत-भरी नज़र डाली, जो किसी आकाश में उड़ते विमान की तरह तेज़ी से ओझल हो गई. किन्ज़ान साँझ के झुटपुटे में तैर कर उदासी में डूबा किनारे आया. निढाल होकर बैठ जाने के बाद , अब उसका माथा यह सोच कर चकरा रहा था, कि उस पर गोलियों से वार करने वाला भला कौन हो सकता है?
     उसकी न तो किसी से दुश्मनी थी, और न ही उसके अभियान से किसी और को कोई नुक्सान होने वाला था. उसकी माँ रस्बी ने आज सुबह ही गुस्से में उसे प्लेट खींच कर ज़रूर मारी थी, परन्तु यह वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि माँ उस पर ऐसा कातिलाना हमला कभी कर सकती हैं.माँ को तो यह भी पता नहीं था, कि वह इस समय कहाँ है? वह तो कुछ भी बता कर घर से नहीं आया था. फिर माँ की जिंदगी में पिस्तौल उसने कभी देखी तो क्या, सुनी तक न थी.फिर भी उसे इस घड़ी में माँ याद आई. वह तेज़ी से घर पहुँच कर माँ की गोद में आराम करना चाहता था. माँ के हाथ से कुछ खाना चाहता था, और उसे यह भरोसा दिलाना चाहता था कि यदि वह न चाहेगी, तो वह ऐसी यात्रा पर फिर कभी न जायेगा.
     सुबह माथे में लगी चोट भी पानी में भीग जाने के बाद और तीखी होकर उभर आई थी. एक हाथ में छोटे कुत्ते को उठाये, वह हथेली से ज़मीन का सहारा लेकर जैसे ही उठा, उस वीराने में उसका सामना उसी ठिगने बूढ़े से हुआ जो अपनी लम्बी दाढ़ी के कारण इस समय भी किन्ज़ान को फ़ौरन पहचान में आ गया.बूढ़ा आते ही  किन्ज़ान से लिपट गया, और जोर-जोर से रोने लगा. इतने बूढ़े आदमी को बच्चों की तरह फूट-फूट कर इस तरह रोते हुए, किन्ज़ान ने तो क्या, किसी ने कभी न देखा था.
     किन्ज़ान भौंचक्का रह गया. उसे यह सारा माज़रा बिलकुल समझ में नहीं आया. बूढ़ा रोने के साथ-साथ तेज़ी से काँप भी रहा था. जैसे ही उसने कहा, कि किन्ज़ान की नौका पर गोली उसने चलाई थी, किन्ज़ान ने हाथ के कुत्ते को एक ओर रखा और पूरी ताकत से बूढ़े पर वार किया. पहला मुक्का पड़ते ही बूढ़े के होठों से खून का फव्वारा छूट पड़ा. पर इतने से किन्ज़ान रुका नहीं, उसने मुक्कों और लातों की झड़ी लगा दी. [जारी...]

Monday, April 2, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 27 ]

     ...अगली सुबह जब भारतीय दंपत्ति उठ कर बाहर लॉन में आये तो यह देख कर दंग रह गए कि आमतौर पर देर तक सोने के आदी उनके दोनों बच्चे उनसे पहले से ही जाग गए हैं, और बगीचे में पानी देने में नाना की मदद कर रहे हैं. बच्चों की मम्मी में भी बच्चों को देख कर कर्तव्य भाव जग गया और उन्होंने भीतर जाकर रसोई की जिम्मेदारी संभाल ली. नाना भी भरे-पूरे परिवार के साथ रहने का अवसर पाकर अतिरिक्त रूप से उत्साहित थे.
     दोपहर को भोजन से निवृत्त होने के बाद बच्चों के माता-पिता और नाना कमरे में बातों में इतने तल्लीन थे कि बच्चे कब बाहर जाकर एक डिपार्टमेंटल  स्टोर से रंग-बिरंगी मोमबत्तियों के पैकेट्स खरीद लाये, ये उन्हें पता ही न चला.
     इतनी मोमबत्तियां देख कर बच्चों की मम्मी ने उनकी ओर प्रश्न-वाचक नज़रों से देखा. बच्चे भी एक बार तो संकोच के कारण कुछ न बोल पाए, किन्तु पिता की ओर से दोबारा प्रश्न होने पर बेटी ने सर झुका कर धीरे से कहा- " हम शाम को रस्बी आंटी और किन्ज़ान भैया की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करेंगे."
     माता-पिता दोनों एकसाथ अभिभूत हो गए. उन्होंने देखा नाना की मिंची आखें भी नम हो आईं.माता-पिता नाना के पास से उठ कर भीतर चले गए. नाना के अकेले होते ही दोनों बच्चों ने करीब आकर उन्हें घेर लिया.
     -नाना, क्या किन्ज़ान भैया  को भी पानी में बहते हुए कहीं रस्बी आंटी का शव दिखाई दिया? बेटे ने अपनी जिज्ञासा रखी. ऐसा लगता था कि बच्चे अब तक रात की कहानी से उबर नहीं पाए थे.
     नाना ने इत्मीनान से एक गहरी सांस ली, और बोले- दरअसल किन्ज़ान झरना पार करके नीचे आ ही नहीं सका ?
     -क्यों ? क्या हो गया था ? फिर नाव टूटी कैसे ? बच्चों के सवाल किसी बंद गठरी के खुलने से जैसे निकल-निकल कर गिरने लगे थे.
     नाना ने किसी उड़ती चिड़िया की तरह कहानी का सूत्र फिर थाम लिया-"जैसे ही किन्ज़ान अपनी नौका में सवार होकर रवाना हुआ, वह बहुत खुश था. उसके साथ में न्यूयॉर्क से लाया गया ब्राज़ीलियन छोटा कुत्ता भी था, जिसके लिए बॉल के भीतरी अस्तर में खास बेल्ट से बंधी जेब भी बनाई गई थी.खुद किन्ज़ान के लिए भी नौका के भीतर सुरक्षित और मज़बूत ट्रांसपेरेंट  सेफ्टी-कैप्सूल था. दोनों के मुंह के करीब जूस के पाउच इस तरह लगाये गए थे, कि ज़रा से प्रयास से जूस पिया जा सके. लेकिन..."
     - लेकिन क्या नाना ? दोनों एकसाथ बोल पड़े.
     -एयर-टाइट नौका में ऑक्सिजन भी पर्याप्त मात्रा में थी.पानी की दहाड़ें, भीतर भी सुनाई दे रहीं थीं. यद्यपि आवाज़ बाहर की तुलना में भीतर बहुत कम थी. बादलों की गड़गड़ाहट जैसी ध्वनि थी. तभी अचानक एक भयंकर ...[जारी ...]    

Sunday, April 1, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 26 ]

     बच्ची को दवा देकर सुला दिया गया.नाना का ही नहीं, खुद उसके मम्मी-पापा का भी यही मानना था कि लगातार बैठ कर कहानी सुनने से हुई थकावट के चलते बच्ची को हरारत हो गई है.भोजन के बाद दोनों बहनों ने भी मेहमान दंपत्ति से जाने की इजाज़त ली क्योंकि उन्हें भी सुबह जल्दी ही अपनी ड्यूटी के स्थान के लिए वापस निकलना था. बेहद आत्मीयता से वे दोनों अभिवादन करके चली गईं.
     नाना इतने उम्रदराज़ होते हुए भी बिलकुल थके नहीं हैं, यह देख कर मेहमान दंपत्ति और उनका बेटा फिर से नाना के पास आ बैठे. माँ ने एक बार बेटे से कहा भी, कि बहुत रात हो चुकी है, और अब वह सो जाये, किन्तु उस पर माँ की बात का कोई असर नहीं हुआ. वह उसी तरह नाना के पास बैठा रहा. कुछ देर की चुप्पी के बाद बेटे ने ही मौन तोड़ा, वह बोला- नाना ! बाद में रस्बी आंटी को पानी में बहते हुए भी कहीं किन्ज़ान की लाश दिखाई दी?
     यह सुनते ही नाना थोड़ा संकोच के साथ यह देखने लगे, कि क्या वास्तव में इतनी रात गए वे लोग कहानी के बाबत और सुनना चाहते हैं? माता-पिता के चेहरे पर भी बेटे जैसी उत्सुकता देख कर नाना ने कहना शुरू किया- "रस्बी गिरते ही मौत के साथ दूसरी दुनिया में चली गई. उस दूसरी दुनिया में किसी को तलाश करना बहुत मुश्किल होता है. हम सोचते हैं कि जो लोग दुनिया से चले जाते हैं, वहां भगवान के घर एक छत के नीचे सब मिल जाते हैं, किन्तु ऐसा नहीं है. यहाँ तो फिर भी हम सौ-पचास साल के लिए आते हैं, और एकसाथ हमारी तादाद चंद अरब में ही होती है, परन्तु उस दुनिया में तो हम करोड़ों सालों से करोड़ों की संख्या में जाते रहे हैं. वहां न किसी को ढूंढना संभव है, और न किसी का आसानी से ऐसे मिल जाना. लेकिन...
     -...लेकिन क्या नाना ?
     -लेकिन फिर भी उस दुनिया और इस जगत की दूरी ऐसी नहीं है, कि वहां से कभी कोई लौट कर आया ही न हो.
     - क्या मतलब ? क्या मरने के बाद भी कोई फिर कभी जीवित हुआ है ?
     -नहीं, जीवित तो नहीं हुआ, मगर ...मगर ऐसा ज़रूर हुआ है कि कोई ठीक से पूरी तरह मर नहीं सका.
     - पूरी तरह न मरना क्या होता है? माँ और पिता ने बेटे जैसी ही उत्सुकता से एकसाथ पूछा.
     - यदि व्यक्ति असमय, किसी ज़बरदस्त लगाव के रहते या फिर किसी अभिलाषा के रहते अकस्मात् चला जाता है, तो उसके शरीर के साथ उसकी "जान" या आत्मा के सारे तंतु दुनिया से सिमट नहीं पाते. ऐसे में वह कभी-कभी किसी न किसी सूरत में दुनिया में फिर झलकता है, कभी हम इसे आत्मा का भटकना कहते हैं, तो कभी पुनर्जन्म होना.
     ऐसी बातें उन लोगों ने भारत में तो सुनी थीं, किन्तु अमेरिका में इतने अनुभवी बुज़ुर्ग से सुनना उन्हें रोमांचित  कर गया. बेटे के तो यह सुनते ही रोंगटे खड़े हो गए. उसने अपने बिस्तर पर लेट कर झटपट एक चादर से मुंह ढक लिया. नाना ने भी उन्हें थका जान कर अब सो जाने का आग्रह किया...[जारी...]     

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...