...जब नदी के किनारे से हारा-थका किन्ज़ान बोझल क़दमों और हैरत-भरे विचारों के साथ-साथ उस बूढ़े और नन्हे कुत्ते को लेकर अपने घर की ओर चला तो शायद वह सोच भी नहीं सकता था कि अब उसकी जिंदगी और उसका परिवार यही है. माँ के बारे में भी उसे कुछ खबर नहीं थी.
वीरान पड़े घर में देर रात तक तो किन्ज़ान ने माँ का इंतज़ार किया, मगर फिर उसे किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी. किसी तरह किन्ज़ान ने अपना और अपने साथियों का पेट भरा,और वे सो गए. जिंदगी ने सभी का इम्तहान लिया था, इसलिए सभी थके थे.
अगली सुबह घर के दरवाज़े पर सूरज और पुलिस, साथ-साथ आये. पुलिस ने बताया कि रस्बी अब इस दुनिया में नहीं है. किन्ज़ान ने जिंदगी का वो अँधेरा देखा, जिसे दूर कर पाने में ताज़ा उगा सूरज भी लाचार था.
दोपहर को दरवाज़े की घंटी बजने पर जब किन्ज़ान ने दरवाज़ा खोला तो एक जानी-पहचानी कार को खड़ा पाया. न्यूयॉर्क से आई महिला ने किन्ज़ान के मिशन की असफलता के लिए दुःख व्यक्त किया, और अपने नन्हे पुत्रवत प्यारे कुत्ते को ले जाने की पेशकश की. लेकिन जब किन्ज़ान ने महिला के दिए डॉलर लौटाने चाहे तो उसने कहा कि इन्हें किन्ज़ान अपने भविष्य के मिशन हेतु अग्रिम शुभकामनाओं के रूप में अपने पास रखे.
किन्ज़ान ने लाचारी से यह प्रस्ताव स्वीकार किया, क्योंकि उसे महसूस हो रहा था कि महिला उसके साथ हुए हादसे के बारे में पूरी तरह जान चुकी है.
अब किन्ज़ान का पहला मकसद बूढ़े से अपनी माँ के अतीत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना था. किन्ज़ान तो अब तक केवल यह जानता था कि वे लोग सोमालिया से यहाँ आये थे, किन्ज़ान के पिता अमरीकी सेना में थे, और सेना में रहते हुए ही उनकी मृत्यु हुई थी.
बूढ़ा यह देख कर आश्वस्त था कि अब किन्ज़ान ने अपना गुस्सा छोड़ कर उसकी आत्मीयता को जगह दी है. उसने किन्ज़ान को किसी परीलोक की कहानी की तरह पिछली बातों से रूबरू कराया.
...किन्ज़ान की माँ रस्बी मूल रूप से भारत की रहने वाली थी. वहां उसका जन्म जैसलमेर के पास एक बहुत छोटे से गाँव में हुआ था. रस्बी ने अपने जीवन के पहले चार वर्ष तक कभी चन्द्रमा नहीं देखा था. उसे यह भी पता नहीं था कि तारे क्या होते हैं. फूल-पत्तियां, पेड़ और पंछी रस्बी को जीवन के पहले चार साल तक कभी नहीं दिखे.
रेत और रेत के चारों ओर एक ऊंची सी पत्थरों की दीवार, और आसमान से आती सूखी धूप ही बस उसका जीवन था.उसकी माँ इसी धूप में और औरतों के साथ कभी चक्की पीसती, कभी कपड़ा बुनती,कभी बांस की टोकरी बनाती, तो कभी पत्थर तोड़ती. इसी बीच उसे प्याज़, चटनी या किसी दाल के साथ सूखी चार मोटी-मोटी रोटियां मिलतीं. उन रोटियों को माँ खाती, और उनके कुछ टुकड़े नन्ही रस्बी को मिलते, जिसका नाम तब रस्बी नहीं, रसबाला था.
रसबाला के लिए इस सारे सहरा में एक छोटा सा नखलिस्तान, अमृत जैसे दूध की बूंदों का एक प्यारा सा झरना था, जो उसकी माँ की छाती से बहता था, बाकी दुनियां सूखी और बदरंग थी. [जारी ...]
वीरान पड़े घर में देर रात तक तो किन्ज़ान ने माँ का इंतज़ार किया, मगर फिर उसे किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी. किसी तरह किन्ज़ान ने अपना और अपने साथियों का पेट भरा,और वे सो गए. जिंदगी ने सभी का इम्तहान लिया था, इसलिए सभी थके थे.
अगली सुबह घर के दरवाज़े पर सूरज और पुलिस, साथ-साथ आये. पुलिस ने बताया कि रस्बी अब इस दुनिया में नहीं है. किन्ज़ान ने जिंदगी का वो अँधेरा देखा, जिसे दूर कर पाने में ताज़ा उगा सूरज भी लाचार था.
दोपहर को दरवाज़े की घंटी बजने पर जब किन्ज़ान ने दरवाज़ा खोला तो एक जानी-पहचानी कार को खड़ा पाया. न्यूयॉर्क से आई महिला ने किन्ज़ान के मिशन की असफलता के लिए दुःख व्यक्त किया, और अपने नन्हे पुत्रवत प्यारे कुत्ते को ले जाने की पेशकश की. लेकिन जब किन्ज़ान ने महिला के दिए डॉलर लौटाने चाहे तो उसने कहा कि इन्हें किन्ज़ान अपने भविष्य के मिशन हेतु अग्रिम शुभकामनाओं के रूप में अपने पास रखे.
किन्ज़ान ने लाचारी से यह प्रस्ताव स्वीकार किया, क्योंकि उसे महसूस हो रहा था कि महिला उसके साथ हुए हादसे के बारे में पूरी तरह जान चुकी है.
अब किन्ज़ान का पहला मकसद बूढ़े से अपनी माँ के अतीत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना था. किन्ज़ान तो अब तक केवल यह जानता था कि वे लोग सोमालिया से यहाँ आये थे, किन्ज़ान के पिता अमरीकी सेना में थे, और सेना में रहते हुए ही उनकी मृत्यु हुई थी.
बूढ़ा यह देख कर आश्वस्त था कि अब किन्ज़ान ने अपना गुस्सा छोड़ कर उसकी आत्मीयता को जगह दी है. उसने किन्ज़ान को किसी परीलोक की कहानी की तरह पिछली बातों से रूबरू कराया.
...किन्ज़ान की माँ रस्बी मूल रूप से भारत की रहने वाली थी. वहां उसका जन्म जैसलमेर के पास एक बहुत छोटे से गाँव में हुआ था. रस्बी ने अपने जीवन के पहले चार वर्ष तक कभी चन्द्रमा नहीं देखा था. उसे यह भी पता नहीं था कि तारे क्या होते हैं. फूल-पत्तियां, पेड़ और पंछी रस्बी को जीवन के पहले चार साल तक कभी नहीं दिखे.
रेत और रेत के चारों ओर एक ऊंची सी पत्थरों की दीवार, और आसमान से आती सूखी धूप ही बस उसका जीवन था.उसकी माँ इसी धूप में और औरतों के साथ कभी चक्की पीसती, कभी कपड़ा बुनती,कभी बांस की टोकरी बनाती, तो कभी पत्थर तोड़ती. इसी बीच उसे प्याज़, चटनी या किसी दाल के साथ सूखी चार मोटी-मोटी रोटियां मिलतीं. उन रोटियों को माँ खाती, और उनके कुछ टुकड़े नन्ही रस्बी को मिलते, जिसका नाम तब रस्बी नहीं, रसबाला था.
रसबाला के लिए इस सारे सहरा में एक छोटा सा नखलिस्तान, अमृत जैसे दूध की बूंदों का एक प्यारा सा झरना था, जो उसकी माँ की छाती से बहता था, बाकी दुनियां सूखी और बदरंग थी. [जारी ...]
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