...कुछ सैनिक आकर उस फार्म-हाउस से थोड़ी ही दूर पर ठहरे, जिसमें उन दिनों रसबानो अपनी माता और कुछ अन्य रिश्तेदारों के साथ छुट्टियाँ मना रही थी.फार्म-हाउस में काम करने वाले लड़कों से रसबानो को पता चला कि अमेरिकी सेना का एक तेल-वाहक जहाज़ कुछ ही दूरी पर डेरा डाले हुए है, जिसके कामगारों और सैनिकों से उनकी जब-तब बातचीत होती रहती है.
सैनिकों को स्थानीय बाज़ारों और देखने लायक जगहों में दिलचस्पी रहती, और फार्म-हाउस के कर्मचारियों को अमेरिका के बारे में जानने की जिज्ञासा रहती. सैनिकों के साथ आया छोटा-मोटा सामान भी उन्हें लुभाता.
जिस तरह आसमान के तारे क्षितिज पर आकर धरती के पेड़ों की फुनगियों को येन-केन प्रकारेण छू ही लेते हैं, जिस तरह सागर और धरती किसी तट पर एक-दूसरे को नम कर ही देते हैं,जिस तरह लहरों पर तैरते पोत एक मुल्क से चल कर दूसरे मुल्क की सीमा चूम ही लेते हैं, वैसे ही एक बदन पर चस्पां नयन-खंजन किसी न किसी तरह दूसरे जिस्म पर उगी आँखों के काजल की डाल पर घड़ी-दो-घड़ी बैठ ही लेते हैं.
किसी डाल पर कोई पंछी आ बैठे, तो फिर तिनकों के नशेमन बनने में भला कितनी देर लगती है? आशियाने ज़मीन पर भी बनते हैं, पानी में भी, और आसमान की हवाई गलियों में भी.
ऐसे ही, हल्की-हल्की बहती हवा में उड़ते पराग-कणों की तरह रसबानो का नसीब भी अमेरिकी सेना में भर्ती एक सोमालियाई सैनिक के साथ वाबस्ता हो गया. कुछ महीनों बाद रसबानो को भी अमेरिका आने का मौका मिल गया. सोमालिया की पहचान केवल पति के मुल्क के रूप में बनी रह गई. और इस तरह एक देश की धरती पर जन्मी रसबाला, बरास्ता खाड़ी रसबानो बनी, फिर अपने सैनिक पति के साथ हमेशा के लिए यहाँ आ गई.
इसी धरती ने उसे रस्बी नाम दिया और इससे भी बढ़ कर उसे किन्ज़ान दिया.
वह बूढ़ा,जो अपने आप को रस्बी का भाई बता कर अब किन्ज़ान से मामा का सम्मान पा रहा था,उसी फार्म-हाउस में किन्ज़ान के पिता से भी केवल एक बार मिला था. वह रस्बी का रिश्ते का भाई था, क्योंकि रस्बी के पिता ने दो शादियाँ की थीं. यह बूढ़ा घोड़ों की खरीद-फरोख्त में भी माहिर था और इसी काम में अपने पिता की मदद करता रहा था. इसका आना-जाना कारोबार के सिलसिले में अक्सर होता ही रहता था.
बूढ़े ने किन्ज़ान से आग्रह किया कि वह एक बार उसके साथ जेद्दाह चले, जहाँ उसे उसके और भाई-बंधु भी मिलेंगे.लेकिन किन्ज़ान को यह सब किस्से-कहानियों की बातें लगती थीं. क्योंकि इन सब के बारे में उसने अपनी माँ रस्बी से कभी कुछ नहीं सुना था. वह तो केवल इतना जानता था कि उसकी माँ अपने देश अमेरिका को दिलो-जान से चाहने वाली महिला थी, जो अमेरिकी सेना में काम करते हुए अपने पति को खो देने के बाद अपने बेटे को भी उसी सेना में भेजना चाहती थी. और अब अपना अधूरा आग्रह साथ लिए दुनिया से ही कूच कर गई. किन्ज़ान की नज़र तो खुद उसके अधूरे सपने पर भी थी. विधाता दुनिया में अधूरा कुछ भी कैसे छोड़ पाता है?...दुनिया का ब्ल्यू-प्रिंट उसने पहले से बना कर रखा होता तो किन्ज़ान का सपना...[जारी...]
सैनिकों को स्थानीय बाज़ारों और देखने लायक जगहों में दिलचस्पी रहती, और फार्म-हाउस के कर्मचारियों को अमेरिका के बारे में जानने की जिज्ञासा रहती. सैनिकों के साथ आया छोटा-मोटा सामान भी उन्हें लुभाता.
जिस तरह आसमान के तारे क्षितिज पर आकर धरती के पेड़ों की फुनगियों को येन-केन प्रकारेण छू ही लेते हैं, जिस तरह सागर और धरती किसी तट पर एक-दूसरे को नम कर ही देते हैं,जिस तरह लहरों पर तैरते पोत एक मुल्क से चल कर दूसरे मुल्क की सीमा चूम ही लेते हैं, वैसे ही एक बदन पर चस्पां नयन-खंजन किसी न किसी तरह दूसरे जिस्म पर उगी आँखों के काजल की डाल पर घड़ी-दो-घड़ी बैठ ही लेते हैं.
किसी डाल पर कोई पंछी आ बैठे, तो फिर तिनकों के नशेमन बनने में भला कितनी देर लगती है? आशियाने ज़मीन पर भी बनते हैं, पानी में भी, और आसमान की हवाई गलियों में भी.
ऐसे ही, हल्की-हल्की बहती हवा में उड़ते पराग-कणों की तरह रसबानो का नसीब भी अमेरिकी सेना में भर्ती एक सोमालियाई सैनिक के साथ वाबस्ता हो गया. कुछ महीनों बाद रसबानो को भी अमेरिका आने का मौका मिल गया. सोमालिया की पहचान केवल पति के मुल्क के रूप में बनी रह गई. और इस तरह एक देश की धरती पर जन्मी रसबाला, बरास्ता खाड़ी रसबानो बनी, फिर अपने सैनिक पति के साथ हमेशा के लिए यहाँ आ गई.
इसी धरती ने उसे रस्बी नाम दिया और इससे भी बढ़ कर उसे किन्ज़ान दिया.
वह बूढ़ा,जो अपने आप को रस्बी का भाई बता कर अब किन्ज़ान से मामा का सम्मान पा रहा था,उसी फार्म-हाउस में किन्ज़ान के पिता से भी केवल एक बार मिला था. वह रस्बी का रिश्ते का भाई था, क्योंकि रस्बी के पिता ने दो शादियाँ की थीं. यह बूढ़ा घोड़ों की खरीद-फरोख्त में भी माहिर था और इसी काम में अपने पिता की मदद करता रहा था. इसका आना-जाना कारोबार के सिलसिले में अक्सर होता ही रहता था.
बूढ़े ने किन्ज़ान से आग्रह किया कि वह एक बार उसके साथ जेद्दाह चले, जहाँ उसे उसके और भाई-बंधु भी मिलेंगे.लेकिन किन्ज़ान को यह सब किस्से-कहानियों की बातें लगती थीं. क्योंकि इन सब के बारे में उसने अपनी माँ रस्बी से कभी कुछ नहीं सुना था. वह तो केवल इतना जानता था कि उसकी माँ अपने देश अमेरिका को दिलो-जान से चाहने वाली महिला थी, जो अमेरिकी सेना में काम करते हुए अपने पति को खो देने के बाद अपने बेटे को भी उसी सेना में भेजना चाहती थी. और अब अपना अधूरा आग्रह साथ लिए दुनिया से ही कूच कर गई. किन्ज़ान की नज़र तो खुद उसके अधूरे सपने पर भी थी. विधाता दुनिया में अधूरा कुछ भी कैसे छोड़ पाता है?...दुनिया का ब्ल्यू-प्रिंट उसने पहले से बना कर रखा होता तो किन्ज़ान का सपना...[जारी...]
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