Tuesday, April 24, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [भाग 51 ]

     एमरा के पास अब बाबा की बात मानने के सिवा और कोई चारा न था. उसकी आँखों में आंसू आ गए, जब उसने सौ वर्ष के जर्जर, कृशकाय और संत स्वभाव मनीषी पर चमड़े के हंटर से लगातार पैशाचिक वार किये.
     थोड़ी ही देर में खून के पतनाले उस बूढ़ी काया से झरने लगे.एमरा का दिल कहता था कि उसके हाथ से आज हत्या न हो जाए. लेकिन वह वर्षों से उस आश्रम में थी, बाबा के कई महिमामय क्रिया-कलापों के बारे में सुन चुकी थी, इसलिए बाबा का कहा मानने पर विवश थी.
      सबसे बड़ी बात यह, कि वह किन्ज़ान और पेरिना  को लेकर अपने सवालों का सही खुलासा चाहती थी, जो बाबा का कहा मान लेने पर ही संभव था.
     बाबा का मुंह खुला, लेकिन एमरा को एक अप्रत्याशित अनुभव देकर. 
     एमरा यह देख कर दंग रह गई कि पूरे शरीर से रक्त बहते हुए भी बाबा जैसे ही ज़मीन पर एमरा के सवालों का जवाब देने के लिए बैठे, उनका चेहरा असीम तेज़ से दमकने लगा. और सारे बदन पर न तो कोई चोट का निशान दिखाई दिया, और न ही एक भी कतरा खून का. एमरा की जान में जान आई, और वह तन्मय होकर सुनने लगी. 
     बाबा बोला - हवा में भटकती एक "आत्मा" किन्ज़ान को पिछले कुछ दिनों से अपनी गिरफ्त में लिए हुए थी. उसने एक छोटी मछली का रूप लेकर किन्ज़ान के प्रभा-मंडल में डेरा डाला हुआ था, अर्थात वह पूरी कोशिश में थी कि वह उसके आसपास रहे. 
     एमरा सपाट चेहरे से बाबा का मुंह देखने लगी. फिर साहस कर बोली- क्या यह आत्मा किसी को कोई नुक्सान पहुंचा सकती थी? वह वास्तव में क्या थी?क्या यह किसी वायरल-इन्फेक्शन की तरह किसी शरीर में लग जाती है? क्या इसका सम्बन्ध किसी भौतिक घटना-दुर्घटना से है? क्या यह दुबारा  जन्म लेने की कोई कोशिश थी? क्या ऐसी कोशिश कोई कर सकता है? 
     बाबा जोर से हंसा.बोला- ये जीवन छोटा है, इसमें इतना जानने की कोई ज़रुरत नहीं. जब जीवन किसी के लिए शुरू होता है, तो उससे पहले उसे कुछ भी पता नहीं होता, कि पहले क्या था. न ये मालूम होता है कि बाद में क्या होगा. लेकिन जैसे एक पात्र से दूसरे पात्र में डालते समय जल की कुछ बूँदें  छलक कर धरती पर गिर जाती हैं, वैसे ही जीवन न होने, होने और फिर न होने के क्रम में कभी कोई जान छिटक कर जीवन चला रहे हाथों से गिर कर ओझल हो जाती है. ठीक किसी पात्र से तड़प कर उछली हुई मछली की भांति...
     अच्छा, बाबा ये बताइए, आप किन्ज़ान को देख कर 'पन्ना-पन्ना' क्यों चिल्लाये थे?एमरा ने सवाल किया. 
     बाबा ने बताया- यह जो 'प्राण' किन्ज़ान के साथ चिपक कर सामने आया, यह पहले भी मेरी आँखों के सामने आ चुका था, इस से मैं इसे पहचान गया...
     एमरा अवाक् रह गई. उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं. उसके मुंह से यकायक बोल नहीं फूटा...[जारी...] 
        

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