जो चन्द्रमा पूनम की रात में चाँदी की परात की तरह चमकता दिखाई देता है, वही थोड़ी देर बादलों से आँख-मिचौनी खेल कर कच्ची बर्फ के गोले सा धूमिल भी हो जाता है. शहद की मिठास भी तृप्त कर देती है. और फिर चारों ओर दिखाई देने लग जाता है.
किन्ज़ान ने एक सुबह पेरिना को अपना वह स्कूल भी दिखाया, जिसे याद कर के वे लोग यहाँ चले आये थे.पेरिना को उस इमारत या जगह में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा, जिसे लेकर बरसों तक उसे याद रखा जाये. किन्ज़ान ने भी शायद पेरिना की यह प्रश्नवाचक मुद्रा भांप ली, और इसीलिए उसने अब पेरिना को वहां आने का असली कारण बताया.
दरअसल यहाँ से कुछ ही दूरी पर एक पर्वतीय क्षेत्र में बने बड़े चर्च के पीछे एक बहुत बड़ा फार्म-हाउस था, जिसमें एक भारतीय संत ने कुछ साल पहले अपना आश्रम बना लिया था. अब वे संत अमेरिका के ही वासी होकर रह गए थे. इस आश्रम में सैंकड़ों लोगों का लगातार आना-जाना लगा रहता था. गाड़ियों की भीड़ वहां हर समय देखी जा सकती थी.लोग बताते थे कि उस आश्रम की लगभग सत्तर देशों में शाखाएं हैं. हजारों लोग इन संत जी से आकर मिलते थे , और अपनी कठिनाइयाँ बताते थे , तथा उनसे अपनी समस्याओं का समाधान पाते थे .किन्ज़ान के मन में भी एक दबी इच्छा थी कि उसका नायग्रा झरने को पार करने का सपना कभी पूरा होगा या नहीं, वह जानना चाहता था.
पेरिना ने इस बात को तटस्थता से सुना, और सपाट प्रतिक्रिया दी. कोई दूसरा इंसान यह कैसे बता सकता है कि एक इंसान की कोई कोशिश पूरी होगी या नहीं?
ये दिन साथ-साथ घूमने के थे. बस, उसके लिए यही काफी था कि वह किन्ज़ान के साथ जा रही है. फिर ये फलसफा भी तो खुद पेरिना का ही था, कि यदि एक इंसान कुछ करना चाहता है, तो दूसरा यह क्यों चाहे कि वह न करे. वह ऐसी किसी बहस में नहीं उलझना चाहती थी कि यदि संतजी ने किन्ज़ान को सफल होने का संकेत दिया, और फिर किन्ज़ान अपने मकसद में कामयाब हो गया, तो इस सफलता का श्रेय किसे मिलेगा- संतजी को या किन्ज़ान को? यदि संतजी ने किन्ज़ान का सपना पूरा होने में कोई संदेह जताया, और किन्ज़ान फिर भी अपने मकसद में कामयाब रहा, तो संतजी को क्या सज़ा मिलेगी? यदि संतजी ने किन्ज़ान को सफल होने का आशीर्वाद दिया, और किन्ज़ान विफल हो गया, तो किन्ज़ान को क्या मुआवज़ा मिलेगा? यदि किन्ज़ान से संतजी ने सफल न होने की बात कही, और किन्ज़ान सफल नहीं ही हुआ, तो एक देश में साहसिक कारनामा पूरा न होने देने का दोषी कौन ठहराया जायेगा, संतजी या किन्ज़ान? और यदि संतजी ने कुछ भी कहा, और किन्ज़ान के साथ कुछ भी हुआ, तो सत्तर देशों के लोग इन बातों में क्यों खर्च हो रहे हैं?
लेकिन विश्व का दूसरा सबसे "घना" देश इन्हीं बातों में बीत रहा हो तो इस से पेरिना को क्या?
कुछ देर बाद पेरिना किन्ज़ान की बांह पकड़े आश्रम की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.जिस तरह वे आश्रम के मुख्य द्वार की ओर जा रहे थे, उसी तरह कई लोग आश्रम से बाहर आ रहे थे. पेरिना को तो इसी बात की हैरत थी कि लोगों को अपनी हिम्मत से ज्यादा भरोसा बंद कमरे में बैठे एक दूसरे, उन जैसे ही आदमी पर था. हर बात के दो उत्तर थे- हाँ और न. इस तरह आदमी आँख बंद करके सबको हाँ या सबको 'न' भी कहे तो पचास प्रतिशत सच्चा ही होने वाला था. और इतनी बड़ी सफलता पर तो उसे वाहवाही मिलने ही वाली थी...[जारी...]
किन्ज़ान ने एक सुबह पेरिना को अपना वह स्कूल भी दिखाया, जिसे याद कर के वे लोग यहाँ चले आये थे.पेरिना को उस इमारत या जगह में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा, जिसे लेकर बरसों तक उसे याद रखा जाये. किन्ज़ान ने भी शायद पेरिना की यह प्रश्नवाचक मुद्रा भांप ली, और इसीलिए उसने अब पेरिना को वहां आने का असली कारण बताया.
दरअसल यहाँ से कुछ ही दूरी पर एक पर्वतीय क्षेत्र में बने बड़े चर्च के पीछे एक बहुत बड़ा फार्म-हाउस था, जिसमें एक भारतीय संत ने कुछ साल पहले अपना आश्रम बना लिया था. अब वे संत अमेरिका के ही वासी होकर रह गए थे. इस आश्रम में सैंकड़ों लोगों का लगातार आना-जाना लगा रहता था. गाड़ियों की भीड़ वहां हर समय देखी जा सकती थी.लोग बताते थे कि उस आश्रम की लगभग सत्तर देशों में शाखाएं हैं. हजारों लोग इन संत जी से आकर मिलते थे , और अपनी कठिनाइयाँ बताते थे , तथा उनसे अपनी समस्याओं का समाधान पाते थे .किन्ज़ान के मन में भी एक दबी इच्छा थी कि उसका नायग्रा झरने को पार करने का सपना कभी पूरा होगा या नहीं, वह जानना चाहता था.
पेरिना ने इस बात को तटस्थता से सुना, और सपाट प्रतिक्रिया दी. कोई दूसरा इंसान यह कैसे बता सकता है कि एक इंसान की कोई कोशिश पूरी होगी या नहीं?
ये दिन साथ-साथ घूमने के थे. बस, उसके लिए यही काफी था कि वह किन्ज़ान के साथ जा रही है. फिर ये फलसफा भी तो खुद पेरिना का ही था, कि यदि एक इंसान कुछ करना चाहता है, तो दूसरा यह क्यों चाहे कि वह न करे. वह ऐसी किसी बहस में नहीं उलझना चाहती थी कि यदि संतजी ने किन्ज़ान को सफल होने का संकेत दिया, और फिर किन्ज़ान अपने मकसद में कामयाब हो गया, तो इस सफलता का श्रेय किसे मिलेगा- संतजी को या किन्ज़ान को? यदि संतजी ने किन्ज़ान का सपना पूरा होने में कोई संदेह जताया, और किन्ज़ान फिर भी अपने मकसद में कामयाब रहा, तो संतजी को क्या सज़ा मिलेगी? यदि संतजी ने किन्ज़ान को सफल होने का आशीर्वाद दिया, और किन्ज़ान विफल हो गया, तो किन्ज़ान को क्या मुआवज़ा मिलेगा? यदि किन्ज़ान से संतजी ने सफल न होने की बात कही, और किन्ज़ान सफल नहीं ही हुआ, तो एक देश में साहसिक कारनामा पूरा न होने देने का दोषी कौन ठहराया जायेगा, संतजी या किन्ज़ान? और यदि संतजी ने कुछ भी कहा, और किन्ज़ान के साथ कुछ भी हुआ, तो सत्तर देशों के लोग इन बातों में क्यों खर्च हो रहे हैं?
लेकिन विश्व का दूसरा सबसे "घना" देश इन्हीं बातों में बीत रहा हो तो इस से पेरिना को क्या?
कुछ देर बाद पेरिना किन्ज़ान की बांह पकड़े आश्रम की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी.जिस तरह वे आश्रम के मुख्य द्वार की ओर जा रहे थे, उसी तरह कई लोग आश्रम से बाहर आ रहे थे. पेरिना को तो इसी बात की हैरत थी कि लोगों को अपनी हिम्मत से ज्यादा भरोसा बंद कमरे में बैठे एक दूसरे, उन जैसे ही आदमी पर था. हर बात के दो उत्तर थे- हाँ और न. इस तरह आदमी आँख बंद करके सबको हाँ या सबको 'न' भी कहे तो पचास प्रतिशत सच्चा ही होने वाला था. और इतनी बड़ी सफलता पर तो उसे वाहवाही मिलने ही वाली थी...[जारी...]
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