Wednesday, February 7, 2024

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन कितना भी स्वादिष्ट या लज़ीज़ हो, जब तक उसे सलीके के साथ, आकर्षक बर्तनों में न पेश किया जाए, कम से कम व्यावसायिक जगत में हम सफल नहीं होंगे।

अब हम ये सब सलीके जान गए हैं। अब समय आ गया है कि हम भोजन बनाना भी सीखें! 

ओह, ये भोजन भोजन क्या करना, हम सीधे सीधे कहें कि बात लेखन की है। भाषा से जुड़े लेखन की नहीं, साहित्यिक लेखन की! अब हमारे पास मेले - ठेलों की पर्याप्त व्यवस्था है, अब हम लिखें... लिखना सीखें!!! 

Monday, August 14, 2023

राही रैंकिंग/Rahi Ranking 2023

 

1. ममता कालिया Mamta Kaliya
2. चित्रा मुद्गल Chitra Mudgal
3. सूर्यबाला Suryabala
4. नासिरा शर्मा Nasira Sharma
5. रामदरश मिश्र Ramdarash Mishra
6. प्रेम जनमेजय Prem Janamejay
7. प्रताप सहगल Pratap Sehgal
8. नंद भारद्वाज Nand Bhardwaj
9. संजीव कुमार (डॉ) Sanjeev Kumar (Dr)
10. नीरजा माधव Neerja Madhav
11. मधु कांकरिया Madhu Kankariya
12. माधव कौशिक Madhav Kaushik
13. विनोद कुमार शुक्ल Vinod Kumar Shukla
14. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल (डॉ) Durga Prasad Agrawal (Dr)
15. सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra
16. सूरज प्रकाश Suraj Prakash
17. दामोदर खड़से (डॉ) Damodar Khadse (Dr)
18. अष्टभुजा शुक्ल Ashtabhuja Shukla
19. संतोष श्रीवास्तव Santosh Shrivastav
20. गिरीश पंकज Gireesh Pankaj
21. दिविक रमेश Rivik Ramesh
22. रत्न कुमार सांभरिया Ratna Kumar Sambhariya
23. प्रणव भारती (डॉ) Pranav Bharti (Dr)
24. बलराम Balram
25. लालित्य ललित Lalitya Lalit
26. ज्ञान चतुर्वेदी Gyan Chaturvedi
27. राजी सेठ Raji Seth
28. फारूक आफरीदी Farooq Afridi
29. राम देव धुरंधर (मॉरीशस) Ram Deo Dhurandar (Mauritius)
30. नीलू गुप्ता ( यूएसए) Nilu Gupta (USA)
31. मनीषा कुलश्रेष्ठ Manisha Kulshrestha
32. विनोद साही Vinod Sahi
33. अंजना संधीर Anjana Sandheer
34. हरीश नवल Harish Naval
35. असगर वजाहत Asgar Vajahat
36. गोपाल चतुर्वेदी Gopal Chaturvedi
37. यशपाल निर्मल  Yashpal Nirmal
38. उदय प्रकाश Uday Prakash
39. हंसा दीप Hansa Deep
40. लक्ष्मी शंकर बाजपेई Laxmi Shankar Bajpai
41. बुद्धिनाथ मिश्र Buddhi Nath Misra
42. राजेश जोशी Rajesh Joshi
43. तेजेंद्र शर्मा Tejendra Sharma
44. बलराम Balram
45. सुभाष चंदर Subhash Chandar
46. विजय कुमार तिवारी Vijay Kumar Tiwari
47. हरीश पाठक Harish Pathak
48. विमला भंडारी Vimla Bhandari
49. उर्मिला शिरीष Urmila Shirish
50. महेश दर्पण Mahesh Darpan
51. शैलेंद्र कुमार शर्मा Shailendra Kumar Sharna
52. रजनी मोरवाल Rajni Morwal
53. अनुराग शर्मा (यूएसए) Anurag Sharma (USA)
54. देवेंद्र जोशी Devendra Joshi
55. हरि राम मीणा Hari Ram Mina
56. हरि सुमन बिष्ट HariSuman Visht
57. अरुण अर्णव खरे Arun Arnav Khare
58. बी एल आच्छा BL Achchha
59. बुलाकी शर्मा Bulaki Sharma
60. सुषमा मुनींद्र Sushma Munindra
61. विवेक रंजन श्रीवास्तव Vivek Ranjan Srivastav
62. ज्ञान प्रकाश विवेक Gyan Prakash Vivek
63. अमृत लाल मदान Amrit Lal Madan
64. संतोष खन्ना Santosh Khanna
65. रूप सिंह चंदेल Roop Singh Chandel
66. सुभाष नीरव Subhash Neerav
67. अरविंद तिवारी Arvind Tiwari
68. हरि प्रकाश राठी Hari Prakash Rathi
69. सुरेश ऋतुपर्ण Suresh Rituparna
70. हरिहर झा (ऑस्ट्रेलिया) Harihar Jha (Australia)
71. गुर बचन कौर Gurbachan Kaur (USA)
72. दिलीप तेतरबे Dilip Teterbe
73. मधु आचार्य Madhu Acharya
74. सविता  चड्ढा Savita Chaddha
75. अहिल्या मिश्र Ahilya Mishra
76. नीरज दईया Neeraj Daiya
77. दिनेश माली Dinesh Mali
78. कांता राय Kanta Roy
79. राजेश कुमार Rajesh Kumar
80. सूरत सिंह ठाकुर Surat Singh Thakur
81. राजेंद्र जोशी Rajendra Joshi
82. चंद्रकांता Chandrakanta
83. श्याम सखा श्याम Shyam Sakha Shyam
84. सिद्धेश्वर Siddheshwar
85. मिठेश निर्मोही Meethesh Nirmohi'
86. दिव्या माथुर (यूके) Divya Mathur (UK)
87. रति  सक्सेना Rati Saxena
88. जगदीश व्योम Jagdish Vyom
89. रमा कांत शर्मा Rama Kant Sharma
90.  विकेश निझावन Vikesh Nijhavan
91. गंगा राम राजी Ganga Ram Raji
92. सुदर्शन वशिष्ट Sudarshan Vashisht
93. पिलकेंद्र  अरोड़ा Pilkendra Arora
94. रण विजय राव Ranvijay Rao
95. हरीश कुमार सिंह Harish Kumar Singh
96. नीलम कुलश्रेष्ठ  Neelam Kulshrestha
97. सुधा चौहान Sudha Chauhan
98. सौम्या दुआ Soumya Dua
99. अलका अग्रवाल सिगतिया Alka Agrawal Sigatia
100. तन्वी कुंद्रा Tanvi Kundra

Selection cum Review Committee


Rahi Ranking 2023

 

1. ममता कालिया Mamta Kaliya
2. चित्रा मुद्गल Chitra Mudgal
3. सूर्यबाला Suryabala
4. नासिरा शर्मा Nasira Sharma
5. रामदरश मिश्र Ramdarash Mishra
6. प्रेम जनमेजय Prem Janamejay
7. प्रताप सहगल Pratap Sehgal
8. नंद भारद्वाज Nand Bhardwaj
9. संजीव कुमार (डॉ) Sanjeev Kumar (Dr)
10. नीरजा माधव Neerja Madhav
11. मधु कांकरिया Madhu Kankariya
12. माधव कौशिक Madhav Kaushik
13. विनोद कुमार शुक्ल Vinod Kumar Shukla
14. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल (डॉ) Durga Prasad Agrawal (Dr)
15. सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra
16. सूरज प्रकाश Suraj Prakash
17. दामोदर खड़से (डॉ) Damodar Khadse (Dr)
18. अष्टभुजा शुक्ल Ashtabhuja Shukla
19. संतोष श्रीवास्तव Santosh Shrivastav
20. गिरीश पंकज Gireesh Pankaj
21. दिविक रमेश Rivik Ramesh
22. रत्न कुमार सांभरिया Ratna Kumar Sambhariya
23. प्रणव भारती (डॉ) Pranav Bharti (Dr)
24. बलराम Balram
25. लालित्य ललित Lalitya Lalit


Sunday, August 12, 2018

SAAHITYA KI AVDHARNA

कुछ लोग समझते हैं कि केवल सुन्दर,मनमोहक व सकारात्मक ही लिखा जाना चाहिए।  नहीं-नहीं,साहित्य को इतना सजावटी बनाने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। साहित्य जीवन का दस्तावेज़ है। यदि आप अपने घर से बाहर निकल कर कुछ देखने का जोख़िम नहीं लेना चाहते,तो अपना घर ही देखिये-वहां भी एक भाग में,जहाँ आप पूजा करते हैं,आप जूते उतार देते हैं। किन्तु उसी घर के दूसरे हिस्से में जहाँ शौच के लिए जाते हैं,खोज कर चप्पल पहन लेते हैं। जीवन की यह विविधता साहित्य में भी आएगी। साहित्य केवल भजन-आरती नहीं है,जिसे आप पूजाघर के सुवासित वातावरण में ही लिख लें,वह आपकी जीवन-कथा का छायाकार है, वह आपके साथ पूजाघर में भी जायेगा,शयनकक्ष में भी,और मेहमानख़ाने में भी। ड्राइंगरूम और स्नानघर में भी।         

Tuesday, May 10, 2016

सेज गगन में चाँद की [24]

कुछ झिझकती सकुचाती धरा कोठरी में दबे पाँव घूम कर यहाँ-वहां रखे सामान को देखने लगी।
उसकी नज़र सोते हुए नीलाम्बर पर ठहर नहीं पा रही थी। उसके चौड़े कन्धों से निकली पुष्ट बाँहों ने न जाने कैसे-कैसे अहसास समेट रखे थे।
धरा ने आले पर रखी हुई छोटी सी वो तस्वीर हाथों में उठा ली, जिसके सामने नहाने के बाद नीलाम्बर अगरबत्ती जलाया करता था। कुछ सोच कर धरा ने एकाएक उसे रख दिया। उसे न जाने क्या सूझा, उसने सामने पड़ी दियासलाई हाथ में उठाई और उसमें से एक तीली लेकर रगड़ से उसे जलाने लगी।
ज्वाला की आवाज़ से धरा जैसे अपने आप में लौटी।
यदि अभी एकाएक नीलाम्बर की नींद खुल जाये और वह धरा को हाथों में माचिस की जलती हुई तीली लिए हुए देखे तो? एक पल तो धरा सहमी, किन्तु फिर आश्वस्त हो गयी।
नहीं,उसकी नींद कच्ची नहीं है। वह अभी जागेगा नहीं।
पलभर बाद धरा ने दूसरी तीली निकाल कर जला दी और फिर उसे हल्की सी फूँक से बुझा कर फेंक दिया। नीलाम्बर इस सब से बेखबर गहरी नींद में सोया हुआ था।
रह-रह कर उसकी नाक से हल्की सी सीटी की आवाज़ कभी-कभी निकलती थी। सीटी की आवाज़ के साथ ही मुंह से गर्म भाप भी निकलती थी,जिसका भभका व गंध उससे चार-पाँच फुट की दूरी पर खड़ी रहने के बावजूद धरा महसूस कर रही थी।
सहसा धरा की नज़र सबसे ऊपर के आले में पड़े अगरबत्ती के पतले से पैकेट पर पड़ी।  उसने धीरे से हाथ बढ़ा कर वहां से पैकेट उठा लिया और उसमें से दो अगरबत्तियाँ निकाल लीं।
माचिस फिर से उठा कर उसने दोनों अगरबत्तियां जला लीं,और उन्हें दीवार में कहीं लगाने के लिए कोई छेद या दरार ढूंढने लगी।एक पुराने से कैलेंडर की कील का छेद उसे दिख गया। उसी में कैलेंडर के धागे के साथ दोनों अगरबत्तियाँ भी धरा ने ठूँस दीं।
उनसे हल्का-हल्का धुआँ निकल कर वातावरण में मिलने लगा। अगरबत्ती की गंध और नीलाम्बर की गंध एकाकार होने लगी।
धरा ने कभी अपनी किसी सहेली से सुना था कि हर इंसान की अपनी एक अलग गंध होती है।धरा ने तब सहेली की बात पर विश्वास नहीं किया था।  पर वह ज़ोर देकर कहती रही थी कि हर आदमी की अपनी एक अलग गंध ज़रूर होती है।  चाहे वह अच्छी हो या बुरी, धीमी हो या मंद, लेकिन होती ज़रूर है।और कहते हैं कि कुँवारी लड़की या लड़के के बदन में तो ये गंध बेहद तीखी होती है, कभी-कभी मादक भी।
धरा की सहेली ने बताया था कि बाद में चाहे वह गंध तीखी न रहे.....पर
धरा उसे टोक बैठी थी - "बाद में मतलब?"
और धरा की वह शादी-शुदा सहेली भी झेंप कर रह गयी थी।
-"बाद में तीखी क्यों नहीं रहती?" धरा ने सवाल किया था।
-"बाद में उसमें और कई गंधें जो मिल जाती हैं।"कहते ही धरा ने अपनी उस सहेली को शरमा कर दुत्कार दिया था। धरा की उस सहेली की शादी कुछ  पहले ही हुई थी।
शादी के बाद उसने एक दिन धरा से कहा था-"इनकी गंध मैं आँखें बंद कर के भी पहचान सकती हूँ।"
-"कैसी है?"धरा बोली।
-"बताऊँ? जैसे किसी ने शुद्ध देसी घी में थोड़ा सा गुड़ मिला दिया हो और...."
-"अरे वाह, तेरे 'वो' तो लगता है अच्छे-ख़ासे इत्रदान ही हैं।"
सहेली शरमा कर रह गयी।
आज नीलाम्बर को यूँ सोता देख कर धरा के मन में भी एकबार ये ख़्याल आया कि नीलाम्बर के तन की गंध कैसी होगी? धत, ये क्या सोच बैठी, धरा ने अपने आप को ही दुत्कार दिया।
नीलाम्बर ने अब करवट ले ली थी। उसने पैर भी सीधे करके फैला लिए थे।उसकी बंद आँखें व पतली नुकीली नाक कमरे की छत की दिशा में उठी हुई थी।
एक हाथ नींद में ही उसने पेट पर रख लिया था, जिसकी कलाई में बंधा काला धागा होठों के ऊपर आये हलके पसीने की बूँदों की तरह ही चमक रहा था। सीधा हो जाने से.... 
[जारी]     
               
              

Monday, May 9, 2016

सेज गगन में चाँद की [23]

माँ के चले जाने के बाद धरा का ध्यान इस बात पर गया कि आज पहली बार शायद माँ उसे अकेला छोड़ कर गयी है। ताज्जुब तो इस बात का था कि धरा ने खुद माँ से उसके साथ चलने की पेशकश की थी। पर माँ उसे घर में अकेले छोड़ कर चली गयी।
इससे पहले तो कई बार ऐसा होता रहा था कि धरा कहती, मेरा जाने का मन नहीं है, मैं घर में ही रह जाउंगी, तब भी माँ उसे यह कह कर साथ ले लेती, कि अकेली घर में क्या करेगी, कैसे रहेगी ?
एक बार तो माँ को मज़बूरी में शारदा मामी के साथ जाना पड़ा तब भी धरा को अकेले छोड़ते समय भक्तन ने पिछली गली की सीता से कहा था, बहन ज़रा मेरे घर का ध्यान रखना, धरा वहां अकेली है।
और आज?
तो क्या धरा अब बड़ी हो गयी थी?
लेकिन माँ के शब्दकोष में तो कुंवारी जवान लड़की इतनी बड़ी कभी नहीं होती, कि घर में सरे शाम अकेली रह सके।
लेकिन जब धरा को इस गोरखधंधे का मतलब समझ में आया तो वह खुद से ही लजा गयी।
असल में नीचे वाली कोठरी में नीलाम्बर जो सोया हुआ था, धरा घर में अकेली कहाँ थी?
तो क्या माँ....?
चलो, जब माँ अकेला छोड़ ही गयी तो क्यों न नीचे चल कर ज़रा नीलाम्बर की खोज-खबर ली जाये।
वैसे भी जब से उसे रात की पाली का काम मिला था वह दिन रात बाहर ही तो रहता था। जब आता तो नहाने-धोने, और रोटी पकाने में रहता था। उसे फुर्सत ही कहाँ रहती थी कि चैन से दो-घड़ी बात कर सके।
भूले-भटके ऊपर आता भी तो चार सवाल माँ के झेलता तब कहीं जाकर रामा-श्यामा धरा से हो पाती। कई बार तो बस देख भर पाते दोनों एक-दूसरे को।
दबे पाँव सीढ़ियाँ उतर कर धरा जब नीचे आई तो कोठरी के किवाड़ भिड़े हुए थे।  धरा ने हलके से धक्के से उन्हें खोल दिया।
सामने गहरी नींद में नीलाम्बर सोया पड़ा था।  माथे पर बिखरे घने बाल, साँवले बदन पर हलके से पसीने से शरीर के चमकने का अहसास उसे और भी आकर्षक बना रहा था। एक पैर सीधा, एक घुटने से मोड़ कर हाथों के पंजों से तकिया दबाए उल्टा सोया पड़ा था।
जब से दोनों समय ड्यूटी करने लगा था, दिन के समय की उसकी नींद बहुत ही गहरी हो गयी थी। फिर इस समय दोपहर की गर्मी के बाद  शाम की थोड़ी ठंडक फ़ैल चुकी थी। हलकी सी ठंडी हवा उसकी नींद को और भी गहरी बनाए हुए थी।
धरा की समझ में न आया कि  क्या करे।  इस तरह चोरी-चोरी उसके कमरे में चले आने के बाद उसे वहां ठहरने में थोड़ा संकोच भी हो रहा था। फिर नीलाम्बर कपड़े उतार कर सो रहा था, एक छोटी सी चड्डी ही सिर्फ उसके कसरती तन पर थी। ऐसे में उसके करीब पहुँचने में भी धरा को झिझक हो रही थी।
[ जारी ]
                        

Sunday, May 8, 2016

सेज गगन में चाँद की [22]

भक्तन ने धरा के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए और कंगन उसकी कलाई में फ़िरा कर देखने लगी।
धरा ने धीरे से कंगन उतार कर माँ की गोद में रख दिए। फिर उसी तरह बैठी-बैठी आहिस्ता से बोली-
-"ये तुम्हें आज इनकी याद कैसे आ गयी?"
-"इनकी याद नहीं आ गयी, मैं तो ऐसे ही देख रही थी,घर में इतने चूहे हो गए हैं, सब ख़राब कर डालेंगे। तू ऐसा कर, ये मेरा ज़री वाला लाल-जोड़ा है न इसे अपने हिसाब से ठीक-ठाक करवा ले। पड़ा-पड़ा क्या दूध दे रहा है, कुछ काम तो आये।"
धरा शर्मा गयी। धत, शादी का लाल-जोड़ा क्या ऐसे रोजाना में काम आता है? माँ भी अजीब है, उसने मन ही मन सोचा, और उठ कर भीतर जाने लगी।
तभी माँ को न जाने कैसे ज़ोर की खाँसी उठी और धरा माँ के लिए पानी लाने को रसोई की ओर दौड़ पड़ी।
माँ भी जैसे बिखरे असबाब में उलझे पुराने दिनों की यादें बीन रही थी, कोई लम्हा अटक गया गले में!
पानी का गिलास माँ को पकड़ाते ही धरा की नज़र माँ की जवानी के दिनों की उस तस्वीर पर पड़ी जो शायद किसी कपड़े की तह से फिसल कर ज़मीन पर आ गिरी थी।
तस्वीर में आँखें झुकाए शरमाती सी माँ बापू के साथ बैठी थी।
माँ ने झोली के कंगन परे सरका कर झपट कर तस्वीर को सहेजा।
धरा बिना कुछ बोले वापस बाहर चली गयी।  भक्तन ने पानी पीकर गिलास वहीं रख दिया।
शाम को धरा खाना खाने के बाद छत पर मुंडेर का सहारा लेकर यूँ ही खड़ी हवा खा रही थी कि भक्तन माँ कमरे से बाहर निकल कर छत पर आई।
माँ ने इस समय नई सी पीली किनारी की धोती पहन रखी थी। धरा ने माँ के पैरों कीओर निगाह डाली, माँ चप्पल भी नई वाली पहने खड़ी थी। अवश्य ही कहीं जाने की तैयारी थी।
-"कहाँ जा रही हो माँ,"धरा ने बड़ी सी लाल बिंदी की ओर  देखते हुए कहा जो माँ शायद अभी-अभी लगा कर ही आई थी।
-"आज ज़रा शंकर से मिलने जाउंगी।" माँ बोली।
शंकर माँ का दूर के रिश्ते का या शायद मुंहबोला भाई था जिसे धरा भी मामा कहा करती थी। शहर में ही कुछ दूरी पर रहा करता था।
-"आज अचानक?"धरा ने चौंकते हुए से कहा।
-"अचानक नहीं बेटी, सोच तो बहुत दिनों से रही थी, पर मौका ही नहीं मिला। बीच में तबियत बिगड़ी तब मैंने सोचा शायद वही आ जाये।"
-"वो कैसे आ जाते? उन्हें क्या पता था तुम्हारी तबियत का?"
-"पता तो नहीं था, पर फिर भी।"
-"वो आते कहाँ हैं? कितने महीने तो हो गए।"धरा ने जैसे कुछ मायूसी से कहा।
-"तभी तो, इसीलिये तो मैंने सोचा, मैं होआऊं। शारदा भी बहुत दिनों से मिली नहीं है, मुझे लगता है उसकी बहू  अभी पीहर से वापस न आई होगी। वरना तो आती वह भी।"माँ ने पूरे परिवार की कैफियत दी।
-"मैं भी चलूँ ?"धरा ने हुलस कर कहा।
-"तू चलेगी?"रहने दे, तू क्या करेगी।" माँ ने जैसे कुछ सोच कर कहा।
माँ धीरे-धीरे सीढ़ियां उतर गयी।
[ जारी ]                    
          

   

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...