जब कोई किसी भी बात में सफल होता है तो उसकी कहानी उसकी "सक्सेज़ स्टोरी" के रूप में प्रचलित हो जाती है। लेकिन यदि कोई अपने मकसद में कामयाब न हो पाए, तो भी उसे प्रयासों का हीरो तो माना ही जाना चाहिए। यदि उसके प्रयास सटीक, पर्याप्त और सही दिशा में हों तो उसकी लक्ष्य-प्राप्ति में असफलता कोई बहुत महत्त्व नहीं रखती। उसे श्रेय दिया ही जाना चाहिए।
एक बार की बात है, एक नदी के किनारे एक घने पेड़ पर एक बन्दर रहता था। पेड़ पर पर्याप्त मीठे फल लगते थे, जिन्हें भरपेट खाकर बन्दर बहुत खुश रहता था। उसी नदी में एक बड़ा सा मगरमच्छ भी रहता था। वह कभी-कभी धूप सेकने की गरज से नदी के किनारे आ जाया करता था। वहां से जब वह बन्दर को उछल-कूद करते देखता तो दोनों में कुछ न कुछ बातचीत भी होने लगती। देखते-देखते दोनों में दोस्ती हो गई। दोनों एक-दूसरे को अपनी-अपनी पहुँच की खाने की चीज़ें भी खिलाते, जिससे दोस्ती गाढ़ी हो गई।
एक दिन बन्दर ने सोचा- पेड़ पर ज़रा सी बरसात का पानी आता है, तो पेड़ हरा-भरा हो जाता है, ये मगर सारा दिन पानी में रहता है, तो इसकी खाल कितनी ठंडी और मुलायम होगी, किसी दिन इसकी पीठ पर सवारी करने का आनंद लिया जाये।
एक दिन मौका देख कर बन्दर मगर से बोला-मैं सारा दिन पेड़ की सख्त डालियों पर कूदता रहता हूँ, सोचता हूँ कि किसी दिन तुम्हारी मुलायम पीठ पर बैठूं तो तुम्हें भी आराम मिले। मगर इस प्रस्ताव पर झट तैयार हो गया। बोला-ये तो बहुत अच्छी बात है,अब आज तो देर हो गई, पर कल जब मैं आऊं तो तुम मेरी पीठ पर सवारी करना।
अगले दिन मगर के पानी से बाहर आते ही बन्दर उछल कर उसकी पीठ पर सवार हो गया। मगर किनारे की रेत पर मटक-मटक कर चलता हुआ बन्दर को घुमाने लगा। तभी बन्दर ने एकाएक एक मोटी रस्सी का फंदा उसके गले में डाल कर मगर को बाँध दिया और बोला- धूर्त, सारी मछलियाँ कब से तेरी शिकायत करती हैं कि तू उन्हें खा जाता है,आज मैं तुझे पेड़ से बाँध कर उन्हें हमेशा के लिए तुझसे मुक्ति दिलाऊंगा।
मगर सकपका गया। उसे ऐसे धोखे की आशंका न थी। मीठी आवाज़ में बोला-तुम ठीक कहते हो, मुझे सज़ा मिलनी ही चाहिए, किन्तु मैंने शाम को खाने के लिए कई मछलियों को एक गड्ढे में कैद कर रखा है। जाकर उन्हें आज़ाद कर दूं, फिर मुझे बाँध देना।
बन्दर ने कहा- बेवकूफ, हर युग में दोस्ती टूटती है, पर उसके बहाने अलग-अलग होते हैं। मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगा। मगर ने आँखें बंद कीं, और अगले युग का इंतज़ार करने लगा।
एक बार की बात है, एक नदी के किनारे एक घने पेड़ पर एक बन्दर रहता था। पेड़ पर पर्याप्त मीठे फल लगते थे, जिन्हें भरपेट खाकर बन्दर बहुत खुश रहता था। उसी नदी में एक बड़ा सा मगरमच्छ भी रहता था। वह कभी-कभी धूप सेकने की गरज से नदी के किनारे आ जाया करता था। वहां से जब वह बन्दर को उछल-कूद करते देखता तो दोनों में कुछ न कुछ बातचीत भी होने लगती। देखते-देखते दोनों में दोस्ती हो गई। दोनों एक-दूसरे को अपनी-अपनी पहुँच की खाने की चीज़ें भी खिलाते, जिससे दोस्ती गाढ़ी हो गई।
एक दिन बन्दर ने सोचा- पेड़ पर ज़रा सी बरसात का पानी आता है, तो पेड़ हरा-भरा हो जाता है, ये मगर सारा दिन पानी में रहता है, तो इसकी खाल कितनी ठंडी और मुलायम होगी, किसी दिन इसकी पीठ पर सवारी करने का आनंद लिया जाये।
एक दिन मौका देख कर बन्दर मगर से बोला-मैं सारा दिन पेड़ की सख्त डालियों पर कूदता रहता हूँ, सोचता हूँ कि किसी दिन तुम्हारी मुलायम पीठ पर बैठूं तो तुम्हें भी आराम मिले। मगर इस प्रस्ताव पर झट तैयार हो गया। बोला-ये तो बहुत अच्छी बात है,अब आज तो देर हो गई, पर कल जब मैं आऊं तो तुम मेरी पीठ पर सवारी करना।
अगले दिन मगर के पानी से बाहर आते ही बन्दर उछल कर उसकी पीठ पर सवार हो गया। मगर किनारे की रेत पर मटक-मटक कर चलता हुआ बन्दर को घुमाने लगा। तभी बन्दर ने एकाएक एक मोटी रस्सी का फंदा उसके गले में डाल कर मगर को बाँध दिया और बोला- धूर्त, सारी मछलियाँ कब से तेरी शिकायत करती हैं कि तू उन्हें खा जाता है,आज मैं तुझे पेड़ से बाँध कर उन्हें हमेशा के लिए तुझसे मुक्ति दिलाऊंगा।
मगर सकपका गया। उसे ऐसे धोखे की आशंका न थी। मीठी आवाज़ में बोला-तुम ठीक कहते हो, मुझे सज़ा मिलनी ही चाहिए, किन्तु मैंने शाम को खाने के लिए कई मछलियों को एक गड्ढे में कैद कर रखा है। जाकर उन्हें आज़ाद कर दूं, फिर मुझे बाँध देना।
बन्दर ने कहा- बेवकूफ, हर युग में दोस्ती टूटती है, पर उसके बहाने अलग-अलग होते हैं। मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगा। मगर ने आँखें बंद कीं, और अगले युग का इंतज़ार करने लगा।
अतिउत्तम!
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ReplyDeleteवाह इस बार बंदर नें चाल चलने का भी अवसर नहीं दिया.....
ReplyDeleteAap donon ka dhanyawad. Samay ka takaza yahi hai ki ab ham kuchh logon ko to sandeh laabh bilkul n den.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,पिछली बार मगर की बारी थी तो इस बार बन्दर की.दूध का जला तो छाछ भी फूंक कर ही पीता है,अनुभव से न सीखने पर जान पर आ सकती है.लाभ यही रहा कि दोनों कि ही अगली पीढियां थी.नहीं तो बन्दर को फिर मात खानी पड़ती.
ReplyDeleteसुन्दर
Dhanyawad
ReplyDelete"पानी में रह कर मगर से वैर" इसकी जगह अब क्या कहेंगे :)
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