दुनिया के बहुत से देश ऐसे हैं जहाँ बनी फिल्मों में गीत नहीं होते। इसका कारण पूछने पर वहां के फिल्मकार तरह-तरह के जवाब देते हैं। उदाहरण के लिए,कोई कहता है कि दुनिया गद्य में बात करती है, पद्य में नहीं। कोई कहता है कि गीतों से कथानक के निर्वाह में व्यवधान पड़ता है। किसी-किसी को यह भी कहते सुना गया है कि हर परिस्थिति का हर चरित्र गवैया नहीं होता।
लेकिन जब भारतीय फिल्मों की बात होती है, तो तस्वीर कुछ अलग होती है।यहाँ कथानक गीतों के बिना आगे नहीं बढ़ पाता। पात्र नवरस की किसी भी भंगिमा में हों, आलाप लेकर अपनी बात कह देते हैं। कई बार तो यह बात इस तरह कही जाती है कि बरसों तक लोगों के कानों में बजती रहती है। लोग फिल्म भूल जाते हैं, कहानी भूल जाते हैं, चरित्र भूल जाते हैं, लेकिन गीत को नहीं भूल पाते।
इसीलिए भारत में "शमशाद बेगम" होती है। चौरानवे साल की गायिका की आवाज़ सुनने वालों के ज़ेहन में सोलह साल की युवती को जीवंत कर देती है। जो देश अपनी फिल्मों में गीत नहीं रखते, वे शमशाद बेगम कैसे पाते होंगे? यदि नहीं पाते होंगे तो उनके जीवन में क्या बजता होगा? यदि कुछ नहीं बजता होगा तो उन फिल्मों से रस कैसे छलकता होगा?
लेकिन जब भारतीय फिल्मों की बात होती है, तो तस्वीर कुछ अलग होती है।यहाँ कथानक गीतों के बिना आगे नहीं बढ़ पाता। पात्र नवरस की किसी भी भंगिमा में हों, आलाप लेकर अपनी बात कह देते हैं। कई बार तो यह बात इस तरह कही जाती है कि बरसों तक लोगों के कानों में बजती रहती है। लोग फिल्म भूल जाते हैं, कहानी भूल जाते हैं, चरित्र भूल जाते हैं, लेकिन गीत को नहीं भूल पाते।
इसीलिए भारत में "शमशाद बेगम" होती है। चौरानवे साल की गायिका की आवाज़ सुनने वालों के ज़ेहन में सोलह साल की युवती को जीवंत कर देती है। जो देश अपनी फिल्मों में गीत नहीं रखते, वे शमशाद बेगम कैसे पाते होंगे? यदि नहीं पाते होंगे तो उनके जीवन में क्या बजता होगा? यदि कुछ नहीं बजता होगा तो उन फिल्मों से रस कैसे छलकता होगा?
Sahi kaha aapne,wahan 'shamshad begum' nhi hoti hogi...
ReplyDeleteDhanyawaad.
ReplyDeleteहिन्दी मूवी की रीत,
ReplyDeleteगाओ सुनो गुनगुनाओ गीत
बहुत बढ़िया।
सही कहा. मधुमती फिल्म को याद कीजिये. उसके गीत भुलाए नहीं भूलते.
ReplyDeleteYe mithaas hamaari dharohar hai, Dhanyawaad.
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