Friday, July 2, 2010

आत्मीयता से सोचें

जिस तरह कुछ समय बाद अपने रहने की जगह की साफ़ सफाई की जाती है, वैसे ही अब यह भी ज़रूरी हो गया है कि हम अपने समय के शब्दकोषों की सफाई करें. बहुत सारे शब्द हमारी डिक्शनरियों में लदे पड़े हैं, जिनसे हमारा कोई लेना देना नहीं रहा. उन्हें हटायें. अगली पीढ़ियों के लिए चाहें तो उन्हें किसी म्यूसियम गैलेरी में रख सकते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे कुछ देशों ने डायनासौर के अंडे रखे हैं. हमारी पीढियां यही जान लें कि ये शब्द कभी इतिहास में काम आते थे तो काफी है. उन्हें अपने गहने की तरह गले में लटकाए रहने का अब कोई मतलब नहीं है. सच बात तो ये है कि ये मौसम ज्यादा बोलने का है भी नहीं. कभी कभी लगता है कि जो हम कहना चाहते हैं, वह पहले से ही हवा में है. जो हम बताना चाहते हैं, वह दीवारों पर चस्पां है. ऐसे में आपको कुछ भी कहकर या कुछ भी लिख कर वो संतोष नहीं मिलता, जो आपके कद को एक अंगुल भी बढ़ाये. तब यह प्रश्न अपने आप उठ खड़ा होता है कि अब आखिर क्या कहा जायेगा. कौन किससे क्या कहेगा? किसे किसी से कुछ पूछना है? कौन है जिसे जिज्ञासा है? इन प्रश्नों के साफ़ उत्तर नहीं हैं.
यह सब बातें किसी नकारात्मक बंद गली में गुज़रते हुए नहीं कही जा रहीं. बल्कि आने वाले समय पर अतिविश्वास के चलते कही जा रही हैं. वास्तव में कमाते जाना ही किसी का उद्देश्य नहीं होना चाहिए. बीच बीच में कमाए हुए का आनंद लेना भी ज़रूरी है. हमारे जीवन मूल्य एक ऐसे ही दौर में आ गए हैं, जब उनकी सार्थकता अच्छी तरह दिखती है. एक अच्छे भले लम्बे चौड़े घर में चौबीस घंटे में जो भी कुछ घटता है, वह टीवी के किसी न किसी चैनल पर किसी न किसी सीरिअल में दिखाया जा रहा है. ऐसे में अपने जीवन पर मीमांसा कि ज़रुरत किसे और कहाँ रह जाती है? आप यदि यह पढ़ रहे हैं, तो एक छोटी सी गुजारिश आप से भी है - शब्दकोष के ऐसे शब्द जिन्हें अब हटाया जाना चाहिए, आपकी नज़र में कौनसे हैं? हमें बताइए. आपके विचारों का स्वागत है. उदाहरण के लिए - हम भारतीय जनमानस से रामायण और महाभारत हटा दें?

7 comments:

  1. हम भारत शब्द को ही हटा दें. आउट-डेटेड हो गया है कुछ नया सोचा जाना चाहिये.
    आखिर समय-समय पर बदलता ही रहा है कभी आर्यावर्त कभी भारतवर्ष तो कभी कुछ और...

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  2. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
    इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी की इच्छा हो तो यहां पधारें -
    http://gharkibaaten.blogspot.com

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  4. इस चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  5. तलाश जिन्दा लोगों की ! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    =0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=0=

    सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

    (सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
    राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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