कमाने के दो रास्ते हैं. एक माँगना और दूसरा कुछ बेचना. बाकी सभी बातें इन्ही दो रास्तों पर आकर ठहरती हैं. एक डाकू जब किसी को लूट रहा होता है, वस्तुतः वह भी अपना दुस्साहस बेच रहा होता है. एक जेबकतरा भय और सतर्कता बेचता है. किसान और मजदूर भी अपना श्रम बेच कर ही कुछ कमा पाते हैं. आपके पास बेचने के लिए क्या है, कितना है, और आप समय पर उसे किस तरह उपलब्ध करा पाते हैं, इस पर आपकी कमाई निर्भर करती है. किसी मंदिर में जो भक्त तरह तरह के प्रसाद से ईश्वर को लाद रहे होते हैं, वे भी वास्तव में ईश्वर की भक्त वत्सलता खरीद रहे होते हैं.
किसी बच्चे को थोड़ी शक्कर खिलाइए. फिर उसे एक इमली खिलाइए और बाद में ज़रा सी मिर्च का स्वाद चखा दीजिये. उसके बाद उसे अलग अलग तरह के स्वादों के बारे में बताइए. केवल किताबों से पढ़कर स्वाद नहीं सीखे जा सकते. ठीक वैसे ही जैसे प्रशिक्षक से सुन कर तैरना नहीं सीखा जा सकता. भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो बहुत दूर है, पहले हमें यह पता करना पड़ेगा कि भ्रष्टाचार क्या है और कौन कौन उसके बारे में कितना जानता है. थोड़ा समय निकालिए और उन बातों की एक सूची बनवाइए जिन्हें हम भ्रष्टाचार कह सकते हैं. जहां तक कमाई की बात है, रास्ते दो ही हैं. किसी भूखे व्यक्ति को खाना खिला कर देखिये. वह यह नहीं पूछेगा कि आपने उसके भोजन के लिए जो रकम खर्च की है, वह खरी कमाई की है या खोटी.
जहां तक मांगने का सवाल है, माँगा हुआ धन बहुत अनिश्चित और रिसता हुआ आता है. हाँ, यदि मांगने में भी आप कुछ बेच सकते हों, तो अच्छी कमाई हो सकेगी. मुझे याद है मैं एक बार भोपाल से रतलाम गाड़ी में जा रहा था. एक छोटे स्टेशन पर ट्रेन की खिड़की में एक औरत हाथ फैलाती हुयी बढ़ रही थी. कोई उसे खाली हाथ जाने देता था, कोई २५-५० पैसे रख देता था. अचानक खिड़की में बैठे एक युवक ने उस औरत को १० रुपये का नोट दिया. औरत चाय की दुकान पर अपने बच्चे के लिए दूध लेने दौड़ पड़ी. शायद उसने आँखों ही आँखों में युवक को करुणा बेच दी थी.
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