कई बार ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति जब अपने उदगार व्यक्त करता है तो वह उदगार एकाएक प्रसिद्ध हो जाते हैं। महान व्यक्तियों की बातें तो आगे चलकर सूक्तियां बन जाती हैं। ऐसे में बाद में यदि स्वयं वह व्यक्ति भी उन विचारों को बदलना चाहे तो लोग यकीन नहीं करते।
कल रात सोते समय कुछ महान हस्तियाँ मेरे स्वप्न में आगईं। ऐसा लगता था जैसे उन्हें अपनी कही बातों पर पश्चाताप हो रहा हो। वे अपनी कही गई बातों में कुछ परिवर्तन करना चाहते थे।
मैंने तुरंत एक रजिस्टर और पैन अपने सिरहाने रख लिया। और उस पर स्वप्न में आने वाली हस्तियों के लिए नोट लिख दिया, कि आप अपने उद्गारों में जो भी परिवर्तन करना चाहें, कृपया इस पर लिख कर हस्ताक्षर कर दें।
सुबह रजिस्टर के कई पृष्ठ मुझे भरे हुए मिले। नीचे हस्ताक्षर भी थे। कुछ बानगियाँ आपके लिए प्रस्तुत हैं-
आराम हराम है [सरकारी कर्मचारियों पर लागू नहीं ]
बातचीत से हर बात का हल निकल सकता है [पाकिस्तान और नक्सलियों को छोड़कर ]
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा , पर तुम्हें आज़ादी मिल गयी तो तुम खूनखराबा करोगे।
आज़ाद व्यक्ति ही कुछ मांग सकता है, बंदी क्या मांगेगा [ फ़िल्मी सितारा हो तो गद्दा और मच्छरदानी मांग सकता है]
तुम जीवनभर बच्चे नहीं बने रह सकते, किन्तु बचकानी बातें उम्रभर करते रह सकते हो।
परहित के समान कोई धर्म नहीं है, पर धर्म परहित नहीं स्वहित है।
स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, यह बात अलग है कि हमें ढंग से स्वराज चलाना आता नहीं।
जय जवान, जय किसान, कुछ मारे जा रहे हैं, कुछ आत्महत्या कर रहे हैं।
सत्य की विजय होती है, पर काफी समय बाद और खूब खर्चा कर के।
ज्ञान ऐसा खज़ाना है जो कभी नष्ट नहीं होता पर डिग्रियां सम्हाल कर रखना, काम वही आयेंगी।
मेरा भारत महान, आंकड़े चाहें कुछ भी कहते रहें।
हरिजन ईश्वर की संतानें हैं, बाकी के लिए डी एन ए रिपोर्ट देखें।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Monday, July 26, 2010
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Bahut Sunder!
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