Saturday, July 17, 2010

क्या आपको दाल में से कंकड़ बीनना आता है?

समय के साथ साथ बातें बदल जाती हैं. कभी लगता था कि यदि कुछ लिखना है तो किताब लिखनी होगी. आज जब किसी को अपनी किताब पढ़ने के लिए देते हैं तो हनुमानजी की याद जाती है. क्योंकि लक्ष्मण के मूर्छित होने पर जब वैद्य सुषे ने उनसे संजीवनी लाने को कहा था, वे पूरा पर्वत ले आये थे. आज हम बच्चों को इस तरह नहीं बता सकते. हमें किताब मेंसे वह अंश निकाल कर उन्हें दिखाना होगा जो हम उन्हें सिखाना चाहते हैं. लिखने वाले एक कदम और बढ़ गए. वे किताबकी जगह अंश ही लिख देते हैं और बाद में उन्हें मिला कर किताब बना ली जाती है. यह आसान रहता है. लेकिन हमारे कुछलेखक मित्र जेट गति से आगे बढ़ गए हैं. वे जानते हैं कि लिखा गया अंश छपेगा, फिर किताब छपेगी, फिर वह पढ़ी जाएगी.और तब कहीं जाकर उनके अमर होने का नंबर आएगा. इतना समय उनके पास नहीं है. इसलिए वे पहले सीधे ही कालजयी होने की तरकीब निकाल लेते हैं. आप मिलना चाहते है ऐसे विद्वत्वीरों से? आप हिंदी साहित्य के इतिहास की किसी साईट पर चले जाइये. वहां ये तथाकथित सितारे खुद खुद बीच में चमकते हुए आपको दिख जायेंगे. पहचान लेंगे आप इनको?बस, देखते जाइये, सूर, तुलसी, कालिदास, निराला, प्रेमचंद, महादेवी, पन्त, प्रसाद आदि के बीच बीच में बोल्ड अक्षरों में ये आपको दिख जायेंगे. इन्हें ढूंढ निकालिए और खुद फैसला कीजिये कि इनका क्या करना है. लीजिये आज हमने भ्रष्टाचार की बात नहीं की.

2 comments:

  1. आपकी बात कुछ स्‍पष्‍ट नहीं हुई कुछ विस्‍तार से लिखिए।

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  2. आपका सन्देश देखा. मैं केवल ये कहना चाहता था कि पिछले दिनों हिंदी साहित्य का इतिहास की कुछ साइट्स देखते समय मैंने ऐसी जानकारियाँ पायीं जो मेरे हिसाब से सही नहीं हैं. हम लोगों को इस ओर ध्यान देकर कुछ करना चाहिए. हो सकता है गलत जानकारी किसी और की त्रुटि से गयी हो, उनकी स्वयं की नहीं. फिर भी बातें दुरुस्त हो जाएँ तो अच्छा.

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