मैंने भारतीय मनोवृत्ति में कुछ शब्दों और विचारों के पुनरीक्षण की बात की थी. इसमें दबी छिपी एक और बात निकल आयी. जयपुर के भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान के डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने भ्रष्टाचार का सवाल उठाया. अच्छी बात है, जीवन मूल्यों से जुड़ी हुयी ही है. यह सुखद है कि अब जब पिछले तीन महीने से अमेरिका में हूँ, जयपुर से ही यह विचार पीछा करता हुआ मुझ तक पहुंचा है. प्रसंगवश बता दूं, राजस्थान जन सतर्कता समिति के प्रदेश महामंत्री का कार्य पिछले कुछ वर्षों से देखते देखते कई बार यह सुनने को मिला कि अब भ्रष्टाचार हमारा गहना या कपड़ा नहीं, बल्कि शरीर की चमड़ी है. इसे अब उतार कर फेंका नहीं जा सकता. एक पूर्व राज्यपाल ने तो एक सार्वजनिक समारोह में यहाँ तक कह दिया कि अब हमें भ्रष्टाचार को हटाने की बात करना छोड़ देना चाहिए. इसके साथ हम कैसे जी पायें, यही सोचना है. राजस्थान के पिछले विधान सभा चुनाव में नयी नयी उभरी जागो पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और राजस्थान प्रदेश प्रभारी के रूप में जब मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री दीपक मित्तल के साथ ३२ उम्मीदवारों को टिकट दे रहा था, मन ही मन मुझे लग रहा था कि भ्रष्टाचार को लेकर हम नहीं जानते कि हमें क्या करना है. यदि हम अपने उम्मीदवारों से कहते हैं कि चुनाव में भ्रष्ट तरीके मत अपनाओ तो इसका सीधा सीधा अर्थ यही दिख रहा था कि हम उन्हें श्राप दे रहे हैं. जोधपुर में एक मंच से यह बात कहते समय मैं साफ़ देख रहा था कि एक अन्य दल के कार्यकर्ता हमारी सभा में आये लोगों के वाहनों की हवा निकाल रहे हैं. खैर, ये सब बातें अलग भी हैं और लम्बी भी. मैं एक बार फिर आप से पूछ रहा हूँ कि भ्रष्टाचार या बेईमानी हटाने की कोशिश हमें करनी चाहिए या नहीं. नयी पीढ़ी के पास इसका उत्तर नहीं है. उसे तो यदि हम कहेंगे कि कोशिश करो तो वो करेगी, यदि कहेंगे कि इसी के साथ जियो, तो वह उसकी कोशिश करेगी. अपने पिछले ब्लॉग में मैंने रामायण और महाभारत का जिक्र इसीलिए किया था कि स्त्री का अपमान, जुआ, बहुपत्नी अथवा बहुपति प्रथा, भीषण हिंसा और अराजकता इन दोनों गठरियों में बाँध कर भी तो हम अरसे से ढोते चले आ रहे हैं. आपके उत्तर या वैचारिक सहयोग के बाद ही आगे कोई बात बनेगी.
ई गुरु राजीव जी ने अच्छा सुझाव दिया है कि हम भारत का ही नाम बदल दें. बदला जा चुका है. वैसे भी नाम अपने लिए नहीं होता. राजीव जी राजीव और प्रबोध जी प्रबोध भला कब उच्चारते हैं. नाम तो दूसरे ही लेते हैं. सो सैंकड़ों देशों की जमात ने अपनी सुविधा से इंडिया कर ही लिया है. रशिया को रूस और चाइना को चीन कहने का अधिकार हमारे पास कहाँ है जो हम इंडिया और भारत के विवाद में पड़ें. इमरान अंसारी, अजय कुमार, अरविन्द और संगीता जी ने जो सहयोग किया है, उसका भी शुक्रिया.
भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया है...और ये कम न होगा..
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