हमने कभी पढ़ा था कि धरती सूरज के टूटने से ही बनी है, इसी से सूरज के इर्द-गिर्द परिक्रमा करती रहती है। बचपन से ही सूर्य की महिमा जीवन में घुली-मिली देखी। हमें कहा जाता था कि सूर्योदय से पहले उठो। ब्रह्ममुहूर्त, जब सूरज निकलने को हो, सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय माना जाता। पढ़ने के लिए इसी समय के उपयोग की सलाह दी जाती।
दिन के कार्यकलाप भी सूरज के रथ के साथ ही आगे बढ़ते। सांझ को जब सूर्य के क्षितिज पर ओझल होने की घड़ी आती, कहा जाता कि इस समय घर में मत बैठो, बाहर खेलो या टहलो। जाते सूरज की लालिमा आँखों में भरने के लिए लोग सूर्यास्त को निहारा करते। यहाँ तक कि मशहूर दर्शनीय स्थलों पर घूमतेसैलानियों के लिए विशेष सनसेट पॉइंट बनाए जाते।
गावों में तो यह आलम था कि इसी समय को गोधूलि वेला कहा जाता, और यह सारे दिन का पटाक्षेप मानी जाती। दिन ढलते ही घर लौटने और दिया-बाती होते समय घर में ही रहने की कोशिशें की जातीं।
अब सब कुछ बदल गया है। सूरज की कहीं किसी को परवाह नहीं रही। समष्टि रूप में चाहे हो भी, व्यष्टिगत रूप में तो सब बेपरवाह हैं सूरज से। रात देर तक चलते काम या पढ़ाई के कारण देर तक सोना स्वाभाविक है। जल्दी उठना लोगों की आदत में ही नहीं रहा। जहां कभी बच्चों की परीक्षाएं सुबह-सवेरे ली जाती थीं, १५ अगस्त और २६ जनवरी को सूर्योदय के समय प्रभात-फेरियां निकाली जाती थीं, अब सुविधाजनक समय पर सब हो गया है। सुबह उठना कष्टकर है और बिना बात कष्ट सहा भी क्यों जाए? कष्टों से निजात पाना, जीवन को सरल बनाना ही हमारा अभीष्ट भी है। परन्तु हम चाहे सूरज को अनदेखा कर दें, वह अपना काम कर रहा है, पार्श्व में रह कर घर का संरक्षण कर रहे किसी बूढ़े की तरह।
क्या आपने यह कहानी सुनी है - सुबह के समय स्कूल जाते एक बच्चे ने साथ चलते अपने दोस्त से पूछा - बादल क्या है?
दोस्त ने जवाब दिया, यह धरती ने अपनी गर्म साँसों से आसमान को संदेश भेजा है। तभी बरसात होने लगी। बच्चा बोला,शायद धरती के संदेश का जवाब आ गया। सूरज धुंध में छिपकर सब देख रहा था। मगर बच्चों को विद्यालय के लिए देर हो रही थी, इसलिए बोला - नो कमेन्ट।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हम मेज़ लगाना सीख गए!
ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...
Lokpriy ...
-
जिस तरह कुछ समय बाद अपने रहने की जगह की साफ़ सफाई की जाती है, वैसे ही अब यह भी ज़रूरी हो गया है कि हम अपने समय के शब्दकोषों की सफाई करें. ब...
-
जयपुर के ज्योति विद्यापीठ महिला विश्व विद्यालय की प्रथम वाइस-चांसलर,देश की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक-शिक्षाविद प्रोफ़ेसर रेखा गोविल को "शिक्...
-
1. Abdul Bismillah 2. Abhimanyu Anat 3. Ajit Kumar 4. Alok Puranik 5. Amrit lal Vegad 6. Anjana Sandheer 7. Anurag Sharma"Smart ...
-
निसंदेह यदि कुत्ता सुस्त होगा तो लोमड़ी क्या,बिल्ली भी उस पर झपट्टा मार देगी। आलसी कुत्ते से चिड़िया भी नहीं डरती, लोमड़ी की तो बात ही क्या...
-
जब कोई किसी भी बात में सफल होता है तो उसकी कहानी उसकी "सक्सेज़ स्टोरी" के रूप में प्रचलित हो जाती है। लेकिन यदि कोई अपने मकसद...
-
"राही रैंकिंग -2015" हिंदी के 100 वर्तमान बड़े रचनाकार रैंक / नाम 1. मैत्रेयी पुष्पा 2. नरेंद्र कोहली 3. कृष्णा सोबती 4....
-
इस कशमकश से लगभग हर युवा कभी न कभी गुज़रता है कि वह अपने कैरियर के लिए निजी क्षेत्र को चुने, या सार्वजनिक। मतलब नौकरी प्राइवेट हो या सरकारी।...
-
कुछ लोग समझते हैं कि केवल सुन्दर,मनमोहक व सकारात्मक ही लिखा जाना चाहिए। नहीं-नहीं,साहित्य को इतना सजावटी बनाने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं ह...
सुबह के समय स्कूल जाते एक बच्चे ने साथ चलते अपने दोस्त से पूछा - बादल क्या है?
ReplyDeleteदोस्त ने जवाब दिया, यह धरती ने अपनी गर्म साँसों से आसमान को संदेश भेजा है। तभी बरसात होने लगी। बच्चा बोला,शायद धरती के संदेश का जवाब आ गया। सूरज धुंध में छिपकर सब देख रहा था। मगर बच्चों को विद्यालय के लिए देर हो रही थी, इसलिए बोला - नो कमेन्ट।
वाह बहुत बढिया ।
प्रबोध जी, नमस्कार।
ReplyDeleteआपके लेख पढ कर जिंदगी का अहसास हो आता है। दौडती जिंदगी को ठहरा कर अब आपको पढा है, तो आभास हुआ कि कितना स्वार्थ भर चुका है जीवन में।
आपके ब्लॉग पर आता रहूँगा, और इतने सजीव लेखन के लिए आपको बधाई।
देश की महान संस्कृति को भूलने का नतीजा है.
ReplyDeleteआपके विचार अच्छे हैं.
हकनामा पर स्वर्ग नरक लेख पढ़ें.
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/swarg-nark-sharif-khan.html
ham bhautikwadi sanskriti ke changul me is tarah jakad chuke hain ki hame in cheezon se koi matlab hi nahi rah gaya hai.waise suna tha anubhav ka koi vikalp nahi apke bog par aakar sabit ho jata hai.
ReplyDeleteप्रबोध जी नमस्कार। आज पहली बार आपको पढ़ा - अच्छा लगा। आखिरी दो पैराग्राफ तो मासूमियत से भरे हैं। बहुत अच्छा लिखा है। बधाई!
ReplyDelete