जब कोई खिलाड़ी रिकार्ड तोड़ता है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने पूर्ववर्ती खिलाड़ियों से बेहतर खेला.जब कोई फिल्म रिकार्ड तोड़ती है तो इसका भी मतलब यही है कि उसने अपने पूर्व प्रदर्शित फिल्मों से ज्यादा कमाई की.ऐसी घटनाएं हमें आल्हादित करती हैं, रोमांचित करती हैं.
लेकिन जब हम किसी अखबार में पढ़ते हैं कि किसी नेता ने रिकार्ड तोड़ा,तो हम भयभीत हो जाते हैं.हमारा सर शर्म से झुक जाता है क्योंकि हम तुरंत समझ जाते हैं कि इस बार इतना बड़ा घोटाला हुआ जितना पहले कभी नहीं।
हमारी नई पीढ़ी को यह जानना ही चाहिए कि आखिर घोटाला किसे कहते हैं? नौजवानों को घोटाले की परिभाषा भी मालूम होनी चाहिए और इसके गुण-अवगुण भी. क्योंकि देश अब उन्हीं के हवाले है. यदि घपलों-घोटालों की आंधियां ऐसे ही चलती रहेंगी तो युवाओं को ही देश की नैया इन तूफानों से निकाल कर ले जानी है.ऐसा कह कर मैं देश के सभी उम्रदराज़ लोंगों का अपमान नहीं कर रहा.मेरा मतलब यह भी नहीं है कि सभी प्रौढ़ या वृद्ध लोग बेईमान हैं.मैं जो कह रहा हूँ उसका मतलब यह है कि उम्रदराज़ लोग धीरे-धीरे शरीर और मन से अशक्त हो जाते हैं.उन में सुधार का जज्बा नहीं रह जाता. वह यथास्थितिवाद के आदी हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि अब कुछ नहीं हो सकता, जो हो रहा है होने दो, बस अपना दामन किसी तरह बचालो।
पर नए लोग ऐसा नहीं सोचते.उन्हें ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए.उन्हें तो हर ऐसी बात की तह में जाना चाहिए जो देश या समाज को नुकसान पहुंचाती हो.उसके बारे में जानने के बाद उसके सुधार के भरपूर प्रयास भी करने चाहिए.शक्ति युवा हाथों में ही होती है.हौसला युवा जिगर में ही होता है।
घोटाले की सब से आसान परिभाषा है -चीज़ों,बातों या नियमों को आपस में इस तरह अस्तव्यस्त कर देना कि वे आसानी से पहचानी न जा सकें, फिर सुविधाएं हड़प लेना।
घोटालों की प्रवृत्ति पहचानने के लिए कुछ साधारण से प्रयोग कीजिये.आपने देखा होगा कि जब हम किसी बस में चढ़ते हैं तो वहां सीटों पर नंबर पड़े हुए होते हैं.हमें अपनी टिकट पर दिए नंबर के अनुसार सीट लेनी होती है.आप गौर से देखिये और लोगों की बातें सुनिए. कुछ लोग आपको ऐसे मिलेंगे - अरे क्या फर्क पड़ता है, कोई कहीं बैठ जाओ... कुछ ऐसे मिलेंगे - ये मेरी सीट है, आपका सामान हटाओ. तीसरे ऐसे मिलेंगे - ये सीट मेरी है, आपकी उधर है, लाइए आपका सामान उधर रख दूं।
यहाँ पहले किस्म के लोग घपले की मानसिकता को प्रश्रय देने वाले हैं.दूसरे खालिस आम आदमी हैं, और तीसरे अनुशासन व न्यायसंगतता के पक्ष धर हैं।
बचपन में ही बच्चों में घोटाले की प्रवृत्ति परखने के लिए यह प्रयोग कीजिये - एक कक्ष में २५ कुर्सियां रख कर उन पर कोई भी २५ नंबर डाल दीजिये. क्रम से नहीं, कैसे भी रखिये. अब बच्चों को बाहर खड़ा कर के १ से २५ नंबर अलॉट कर दीजिये. अब उन्हें कहिए कि एक मिनट में उन्हें भीतर जाकर अपने नंबर की कुर्सी ढूंढकर उसपर बैठना है. १ मिनट तक घंटी बजेगी. घंटी रुकते ही उन्हें कुर्सी पर ज़रूर बैठ जाना है अन्यथा वे आउट हो जायेंगे।
अब खेल शुरू कीजिये और परिणाम देखिये।
जो बच्चे निर्धारित समय में अपनी सही जगह ढूंढ कर बैठ जायेंगे वे जीवन में अनुशासन मानने वाले हैं. जो नंबर नहीं ढूंढ पाने पर खड़े ही रह जायेंगे वे परिस्थितियों के हाथों भविष्य सौंपने वाली मानसिकता के हैं. और जो नंबर नहीं ढूंढ पाने पर भी बैठ जायेंगे, वे आगे चल कर घपलों की मानसिकता वाले हैं.
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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