हमारे देश ने जब अपना राष्ट्रगीत,राष्ट्रध्वज,राष्ट्रीय पशु या राष्ट्रीय पक्षी चुना तो शायद कोई बड़ा विवाद सामने नहीं आया.सब कुछ आसानी से हो गया.किन्तु जब राष्ट्रभाषा की बारी आयी तो काफी बावेला मचा.इसका कारण यही था कि विविधता भरे हमारे देश में अनेकों भाषाएं मौजूद थीं.अपने-अपने तर्क,वितर्क और कुतर्कों के सहारे हम अभी तक इस रहस्य भरे इंतजार में हैं कि यह लड़ाई आखिर कौन सी भाषा ने जीती?हर साल चौदह सितम्बर को लगता है कि हिंदी,हिंदी और हिंदी, परन्तु बाकी के
तीन सौ चौंसठ दिन दिखाई देता है कि हिंदी ???बेचारी हिंदी।
हिंदी की जंग अपने-अपने तरीके से असंख्य लोग लड़ रहे हैं.और अभी तक के परिणाम शर्मनाक भले ही हों खतरनाक नहीं हैं.खतरा हिंदी को किसी से नहीं बल्कि हिंदी से कई लोगों को दिखता है।
यहाँ हम बात करते हैं देश के एक और गौरव - राष्ट्रपिता की.कभी-कभी लगता है कि हमने राष्ट्रपिता बनाकर कहीं देश के लिए बुढापे का पेड़ तो नहीं बो दिया? राष्ट्रपिता के चलते ही देश के पहले प्रधानमंत्री चाचा हो गए.देखते-देखते पीढियां बदल गयीं और देश ने राष्ट्रदीदी और फिर सन ऑफ इंडिया देखे.देश के साठसाल का होते-होते राष्ट्रपोतों का ज़माना आना ही था.और भारतमाता सबके देखते-देखते दादी अम्मा बन गयीं.इस तरह देश बूढा होता चला गया।
क्या इस बुढापे का कोई इलाज नहीं है?
इलाज है न .मेरे एक पुराने परिचित हैं.एक दिन विस्तार से अपने जीवन के बारे में बताने लगे.बोले-बचपन में मोहल्ले की टीम में क्रिकेट खेलता था,थोड़ा बड़ा हो गया तो लड़कों ने खिलाना बंद कर दिया.मैं गाँव की युवा टीम में आ गया.कुछ साल में वहां भी ओवर एज हो गया.तो खेल से जी ही उचाट हो गया.तब मैं लिखने लगा और साहित्यकार बन गया.यहाँ लोग मुझे युवा लेखक कहते थे.जी खुश हो जाता था.पर कुछ साल निकले कि लोग मुझे वरिष्ठ साहित्यकार कहने लगे.मैंने झटपट लिखने से तौबा कर ली.सोचा,इस से पहले कि लोग मुझे वयोवृद्ध साहित्यकार कहें मैं फील्ड ही बदल लेता हूँ.तब मैं अपने कस्बे की राजनीति में आ गया.अब लोग मुझे युवा नेता कहने लगे.फिर मन हराभरा हो गया.अब आलम ये है कि घरवाले तो कहते हैं कि मैं यमदूतों के इंतज़ार में हूँ परन्तु हमारी पार्टी मुझे अगले चुनाव के लिए अपना लीडर इन वेटिंग मानती है।
वाह,यह तो चिरयुवा बने रहने का अच्छा नुस्खा है, मैंने कहा,तो वे बोले-अब चलता हूँ.शाम को पार्टी की युवा शाखा की बैठक है।
मैं सोचता रहा कि देश बेकार में बूढा हो गया.इनके नुस्खे से तो उम्र उल्टी चलती और युवावस्था बनी रहती।
लगता है हिंदी भी इसी चाल से चल रही है,और रोज़ तरोताजा हो रही है.अंग्रेज़ी चाहे आज राष्ट्रमाता बन गयी हो,पर यह माता जिसे लोरी गाकर सुला रही है वह हिंदी ही है.जिस दिन जागेगी किलकारी भरेगी,कराह नहीं.
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शोध
आपको क्या लगता है? शोध शुरू करके उसे लगातार झटपट पूरी कर देने पर नतीजे ज़्यादा प्रामाणिक आते हैं या फिर उसे रुक- रुक कर बरसों तक चलाने पर ही...
Lokpriy ...
-
जिस तरह कुछ समय बाद अपने रहने की जगह की साफ़ सफाई की जाती है, वैसे ही अब यह भी ज़रूरी हो गया है कि हम अपने समय के शब्दकोषों की सफाई करें. ब...
-
जयपुर के ज्योति विद्यापीठ महिला विश्व विद्यालय की प्रथम वाइस-चांसलर,देश की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक-शिक्षाविद प्रोफ़ेसर रेखा गोविल को "शिक्...
-
1. Abdul Bismillah 2. Abhimanyu Anat 3. Ajit Kumar 4. Alok Puranik 5. Amrit lal Vegad 6. Anjana Sandheer 7. Anurag Sharma"Smart ...
-
निसंदेह यदि कुत्ता सुस्त होगा तो लोमड़ी क्या,बिल्ली भी उस पर झपट्टा मार देगी। आलसी कुत्ते से चिड़िया भी नहीं डरती, लोमड़ी की तो बात ही क्या...
-
जब कोई किसी भी बात में सफल होता है तो उसकी कहानी उसकी "सक्सेज़ स्टोरी" के रूप में प्रचलित हो जाती है। लेकिन यदि कोई अपने मकसद...
-
"राही रैंकिंग -2015" हिंदी के 100 वर्तमान बड़े रचनाकार रैंक / नाम 1. मैत्रेयी पुष्पा 2. नरेंद्र कोहली 3. कृष्णा सोबती 4....
-
इस कशमकश से लगभग हर युवा कभी न कभी गुज़रता है कि वह अपने कैरियर के लिए निजी क्षेत्र को चुने, या सार्वजनिक। मतलब नौकरी प्राइवेट हो या सरकारी।...
-
कुछ झिझकती सकुचाती धरा कोठरी में दबे पाँव घूम कर यहाँ-वहां रखे सामान को देखने लगी। उसकी नज़र सोते हुए नीलाम्बर पर ठहर नहीं पा रही थी। उसके ...
मेरे विचार में आपने सही लिखा है |लेकिन समस्या तो यह है कि जिनलोगों पर हिंदी को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी है वही इसे बर्बाद करने पर तुले हुए हैं| इसके जिम्मेदार हम भी हैं क्योंकि इस देश का नागरिक होने के नाते हमारा भी कुछ कर्तब्य है|
ReplyDelete