न्यूयॉर्क के बहुत बड़े हिस्से को घेर कर हडसन नदी बहती है। आसमान चूमते इमारती जुनून की सबसे चकाचौंध बस्ती मेनहट्टन के एक ओर से यह अथाह पानी अठखेलियाँ करता विचरता है। इस पर मिनट-दर-मिनट लुभावने जहाज और कश्तियाँ ऐसे फिसलते से गुज़रते हैं कि सैलानी तो आनंद-विस्मित होते ही हैं, देखने वाले भी आल्हादित होते हैं। योर्क एवेन्यू पर रौकफेलर विश्वविद्यालय के समीप गुज़रती हडसन के किनारे देर रात तक बैठे रहने का अपना अलग ही आनंद है। यहाँ से नदी के पार जाते पुलों और बस्तियों की लाइटें रात में नौ लाख सितारों व नौ करोड़ जुगनुओं की दीवाली का सा अहसास देती हैं।चन्द्रमा भी यहाँ इमारतों के बीच के आकाश की पतली फांकों से झांकता सकुचाता सा निकलता है। तीन-चार विश्वस्तरीय मेडिकल कालेज यहीं स्थित हैं जिनकी भव्यता नयनाभिराम है। यहाँ रोग-शोक स्थापत्य की आधुनिक कारीगरी में ऐसे छिपकर बैठा है कि यह नज़ारा कहीं से भी बीमारों से वाबस्ता नहीं लगता।
जॉगिंग, साइकलिंग व घूमने के अलावा शाम और रात को कई लोग अपने कुत्तों को टहलाने भी यहाँ लाते हैं। दुनिया के कई देशों के लोग, एक से एक आभिजात्य-पसंद और सम्पन्न लोग। लेकिन हवाखोरी के लिए घूमते समय जब इनके साथ चलते कुत्ते कहीं शौच कर देते हैं तो तुरंत ये हाथ में पकड़े पोलीथिन बैग में कुत्ते की विष्ठा खुद उठा लेते हैं और उसे एवेन्यू में जगह-जगह लगे बंद कचरा पात्रों में इस तरह डालते हैं कि बाहर न मैल रहे न दुर्गन्ध।
इस द्रश्य की तुलना जब मैं भारत की पवित्र मानी जाने वाली नदियों व आलीशान मानी जाने वाली गलियों से करता हूँ तो लगता है कि हम ऐसी बातों में भी इनलोगों से कितना पीछे छूट गए जो हम आसानी से कर सकते हैं।
इतना सा यदि हम कुत्तों क्या अपने बच्चों के लिए भी कर दें तो हमारे कई पवित्र धाम दूषित होने से बच जाएँ।
माना कि प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान में हम यूरोप और अमेरिका के भी गुरु रहे हैं, पर चंद अच्छी बातें यदि गुरु भी शिष्यों से सीख लें, तो क्या हर्ज़ है?
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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सार्थक लेख ...अच्छी बात किसी से भी सीखनी चाहिए ... पर ये भारत है ..यहाँ सब चलता है ..यहाँ तो अगर कोई कूडेदान की जगह कोई बाहर कूड़ा फेकें तो उसे मना नही करते बल्कि खुद भी वही करने लगते हैं ...
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