Sunday, February 20, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 3

दिल्ली ने जो बचपन पाले, नेता-अफसर बन बैठे सब
अंग्रेजों की माला जप कर हैं भारत-भाग्य-विधाता अब
गावों -कस्बों के बचपन जो पढ़ते पेड़ों की छाँव तले
उनकी किस्मत में कलम कशी,बस लिखती रही सदा दिल्ली
शिक्षा के मानदंड कहकर 'बदलेंगे ये हैं सड़े गले'
ये पीट रही है ज़ोरों से जो ढोल विदेशी पड़ा गले
पंद्रह बरसों तक विद्यालय में पढ़ा-लिखा सब धूल मिला
बस थर्टी डेज़ के 'लेसन 'में सब सिखला देगी अब दिल्ली
दिल्ली की बरसी पर आओ तुम फूल चढाने को यारो
भाषण सुनने को संग लाओ अब अनुवादों के तुम ब्यूरो
हो बरसी चाहे पुण्यतिथि तुम दिल्ली दर्शन को आना
हर शांतिदूत की बरसी पर ये कर्फ्यू हटवाती दिल्ली
होता है स्वागत भव्य सदा आये दिन नृप-सम्राटों का
अंग्रेजी में स्वागत भाषण,अंग्रेजी में बोले टाटा
करने को कायम अमन-चैन बुलवाती विश्व-फरिश्तों को
फिर बुलट-प्रूफ में सैर-सपाटे करवाती प्यारी दिल्ली

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