भारत वासियों के मन में यह बात डाली जाती है कि अमेरिका एक पूंजीवादी देश है। मुझे लगता है कि यह अवधारणा बहुत पुरानी और सीमित है।यह बताइए कि आज पूंजीवादी कौन सा देश नहीं है?बल्कि अब तो वह दौर है कि देश ही नहीं, व्यक्ति-मात्र ही पूंजीवादी है। यदि कोई पूंजीवादी नहीं है तो वह केवल सड़क पर मौत की प्रतीक्षा में पड़ा भिखारी है जिसकी बुझती आँखों में केवल यह आस है कि कोई आता-जाता उसके सामने ज़रा सी ' पूँजी ' डाल दे तो वह मरने से बच जाये, चाहे कुछ देर के लिए ही सही। देश, चाहे वह कोई भी हो दिन-रात इस उधेड़बुन में है कि येन-केन-प्रकारेण उसकी पूँजी पहले से अधिक हो जाये और उसका ' विकास ' हो। यदि आपको यह बात सही लगती है तो ' पूंजीवादी ' शब्द को कड़वा शब्द मत समझिये।
कहा जाता है कि अमरीका दुनिया में अपना वर्चस्व जमाना चाहता है। पहली बात तो यह, कि वर्चस्व ज़माने से नहीं, बल्कि उसे कमतरों द्वारा स्वीकार करने से जमता है। रूस ने भी कभी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनने की चाहत रखी थी।दूसरी बात, एक दूसरे पर वर्चस्व ज़माने की चेष्टा के बिना ' विकास ' की कल्पना भी नहीं की जा सकती। खिलाड़ी अपने से ' कम ' को परास्त कर ही बड़ा बनता है। व्यक्ति अपने से हीन को देख कर ही श्रेष्ठ होने का भाव पाता है। यह एक स्वाभाविक ' रेस ' है, जो दुनिया की बेहतरी के लिए ज़रूरी है।
हम क्यों सर्वश्रेष्ठ को सम्मान देने में कंजूसी करें ?
कहा जाता है कि अमरीका दुनिया में अपना वर्चस्व जमाना चाहता है। पहली बात तो यह, कि वर्चस्व ज़माने से नहीं, बल्कि उसे कमतरों द्वारा स्वीकार करने से जमता है। रूस ने भी कभी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनने की चाहत रखी थी।दूसरी बात, एक दूसरे पर वर्चस्व ज़माने की चेष्टा के बिना ' विकास ' की कल्पना भी नहीं की जा सकती। खिलाड़ी अपने से ' कम ' को परास्त कर ही बड़ा बनता है। व्यक्ति अपने से हीन को देख कर ही श्रेष्ठ होने का भाव पाता है। यह एक स्वाभाविक ' रेस ' है, जो दुनिया की बेहतरी के लिए ज़रूरी है।
हम क्यों सर्वश्रेष्ठ को सम्मान देने में कंजूसी करें ?
यह शृंखला शुरू करने के लिये धन्यवाद! अमेरिका के बारे में बहुत से भ्रम तोडने की आवश्यकता है। विश्व के दो महान गणतंत्रों की जनता को एक दूसरे को समझना ज़रूरी है।
ReplyDeleteaapke vichar ne mujhe hausala diya hai, kripaya mujhe sahyog bhi dete rahiye. in tippaniyon par khuli aur bebak ray dekar.
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