Wednesday, February 23, 2011

रक्कासा सी नाचे दिल्ली 8

ये शाहजहाँ की दिल्ली है , है वास्तुकला की दीवानी
होटल - मधुबार बनाती है कर झुग्गी - बस्ती वीरानी
ये काल-चक्र के हस्ताक्षर अकबर-बाबर का दिल दिल्ली
खूंरेजी और अहिंसा-प्रिय ये नेहरु-गाँधी की दिल्ली
ये खून-सना बापू का घर , ये रक्त-सिक्त इंदिरा का घर
ये बारूदों से मज्जा की जब-तब होती टक्कर का घर
ये पंडों-पीर-पुजारी की चलती दूकानों की बस्ती
ये सारे भारत को अपने प्रवचन से भरमाती दिल्ली
पाना हो सांसों का परमिट, दिल्ली दफ्तर में अर्ज़ लगा
लेना है रोटी का कोटा , दिल्ली के आगे जुगत भिड़ा
गेंहू,जौ,चावल, प्याज़,नमक, पिज्जा-नूडल प्रायोजित हैं
अब कोंटीनेंटल छौंक रही , देसी घी में देखो दिल्ली
हो एक्सपोर्ट पानी बाहर इम्पोर्ट ब्रांडी-व्हिस्की का
प्याऊ से ज्यादा मधुशाला,ये धंधा खूब मुनाफे का
सौंधी मिट्टी के गर्भ बीच अब पत्थर का सपना बोती
शीशे के कक्षों में लिखती खेतों का अर्थशास्त्र दिल्ली

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