कल जब अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती का सिलसिला चल रहा था, तब दोनों उम्मीदवारों की तरह ही एक और प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी थी। एक ऐसा प्रतिष्ठान, जिसकी साख बरसों से सारे विश्व में बनी हुई है। जिस नाम की घोषणा यह प्रतिष्ठान करता है, वह चाहे संसार के किसी भी कौने का हो, उसमें देखते-देखते सुर्खाब के पर लग जाते हैं। वह नाम फिर इतिहास में अमर हो जाता है। उसे अपने फील्ड में "अल्टीमेट" माना जाता है।
ओबामा जब अपने पिछले कार्यकाल के आरम्भ में ही थे, तब उन्हें "नोबल"शांति पुरस्कार के लिए चुन लिया गया था। उस समय भी कुछ लोगों की प्रतिक्रिया यही थी कि उन्हें यह सम्मान ज़रा जल्दी मिल गया है। इस बार किसी भी कारण से यदि राष्ट्रपति चुनाव परिणाम में फेर-बदल हो जाता तो तीन साल पहले के उन समीक्षकों के स्वर में नई ताजगी आ जाती। और साख में ज़रा सा बट्टा उन घोषणाकारों की सिद्ध-श्रेष्ठता पर भी लगता जो तमाम कयासों के उड़ते बादलों के बीच भी अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए यह सौगात लेकर आये थे।
लेकिन यह सब अब केवल विगत-कलाप है। वर्तमान कहीं ज्यादा सुखद, ज्यादा फलदायी है।
ओबामा जब अपने पिछले कार्यकाल के आरम्भ में ही थे, तब उन्हें "नोबल"शांति पुरस्कार के लिए चुन लिया गया था। उस समय भी कुछ लोगों की प्रतिक्रिया यही थी कि उन्हें यह सम्मान ज़रा जल्दी मिल गया है। इस बार किसी भी कारण से यदि राष्ट्रपति चुनाव परिणाम में फेर-बदल हो जाता तो तीन साल पहले के उन समीक्षकों के स्वर में नई ताजगी आ जाती। और साख में ज़रा सा बट्टा उन घोषणाकारों की सिद्ध-श्रेष्ठता पर भी लगता जो तमाम कयासों के उड़ते बादलों के बीच भी अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए यह सौगात लेकर आये थे।
लेकिन यह सब अब केवल विगत-कलाप है। वर्तमान कहीं ज्यादा सुखद, ज्यादा फलदायी है।
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