जब हम कुछ भी सुनते हैं तो उस पर हमारी प्रतिक्रिया कई तरह से होती है। पहले तो हम यह बात करें, कि हम सुनते भी कई तरह से हैं। वैसे शाब्दिक रूप से सुनने के लिए हमारे शरीर में 'कानों' की व्यवस्था है। लेकिन इन कानों के द्वारा जो कुछ भी हमारे मस्तिष्क में आता है, वह सब न तो हमारे ही लिए होता है, और न ही यह प्रतिक्रिया ज़ाहिर करने योग्य होता है।बहुत सी बातें तो वैसे ही, बहती हुई हवा की तरह हमारे इर्द-गिर्द बहती हैं। हाँ उसमें से कुछ बातें केवल हमारे लिए होती हैं, वे हमें चौकन्ना भी करती हैं, और हमारी प्रतिक्रिया भी चाहती हैं।
चारों ओर बहती बातों से हम जो श्रवित-समूह पाते हैं,उनमें से चुन कर कुछ बातें हमारा अवचेतन हमें देता है, ठीक वैसे ही, जैसे कोई महिला किसी साग-सब्जी में से छिलके-डंठल आदि हटा कर खाने योग्य चुन लेती है। केवल इसी पर हमें 'रिएक्ट' करना होता है।यह हम प्रायः इस तरह करते हैं-
1.हम इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए सबसे पहले अपने चेहरे के लिए एक भाव चुनते हैं। यह भाव नौ रसों में से किसी एक पर केन्द्रित हो सकते हैं।
2.रस के चयन के अनुसार ही हम स्वतः भाषा का चयन भी कर लेते हैं।
3.फिर हम चेहरे के "हेलीपैड"से भाव की पिचकारी द्वारा भाषा का स्त्राव छोड़ते हैं।
यही हमारी प्रतिक्रिया है।
नोट-इस नियम के अपवाद भी होते हैं। जैसे, यदि हम किसी राजनेता का भाषण सुन रहे हों, तो हो सकता है कि हमारे कानों में क्रिकेट की कमेंट्री जा रही हो, और हम प्रतिक्रिया स्वरुप कोई फ़िल्मी गीत गुनगुना रहे हों।
चारों ओर बहती बातों से हम जो श्रवित-समूह पाते हैं,उनमें से चुन कर कुछ बातें हमारा अवचेतन हमें देता है, ठीक वैसे ही, जैसे कोई महिला किसी साग-सब्जी में से छिलके-डंठल आदि हटा कर खाने योग्य चुन लेती है। केवल इसी पर हमें 'रिएक्ट' करना होता है।यह हम प्रायः इस तरह करते हैं-
1.हम इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए सबसे पहले अपने चेहरे के लिए एक भाव चुनते हैं। यह भाव नौ रसों में से किसी एक पर केन्द्रित हो सकते हैं।
2.रस के चयन के अनुसार ही हम स्वतः भाषा का चयन भी कर लेते हैं।
3.फिर हम चेहरे के "हेलीपैड"से भाव की पिचकारी द्वारा भाषा का स्त्राव छोड़ते हैं।
यही हमारी प्रतिक्रिया है।
नोट-इस नियम के अपवाद भी होते हैं। जैसे, यदि हम किसी राजनेता का भाषण सुन रहे हों, तो हो सकता है कि हमारे कानों में क्रिकेट की कमेंट्री जा रही हो, और हम प्रतिक्रिया स्वरुप कोई फ़िल्मी गीत गुनगुना रहे हों।
शब्दों की जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी..कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने.बहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने...बहुत खूब.आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
Bahut-bahut Dhanyawaad. Aap jaise shubhchintak milenge to shayad likhta rahoon. aabhaar!
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