जैसे हम कहानिया पढ़ते हैं कि आम्रपाली ने गौतम से पहले जिरह की और तब आशीर्वाद लिया, वैसे ही आगे आने वाली नस्लें भी तो कुछ पढ़ेंगी। उन्हें जानना होगा कि राखी के युग में दिग्विजय कौन था।
पुराने समय में जब शासक अपने रहने के लिए किले बनवाते थे, तो उनमें सुरक्षा के सभी इंतजाम होते थे। लोग भाले, बरछी, कृपाण आदि से हमले करते थे, तो इन सभी अस्त्रों के विरुद्ध दुर्गों में सुरक्षा चक्र भी होते थे। बारूद के गोलों को झेलने के लिए ऊंचे और मज़बूत बुर्ज़ हुए। शीश-महलों के दिन लदने के साथ बाद में जब शासकों पर पत्थर फेंकने का चलन आया तो शीशे की दीवारें प्रचलन से हट गईं , और लोहे के गेटों पर संतरी खड़े होने लगे। संतरी पहरे के समय में गुटका आदि सुभीते से खा सकें, इसके लिए गेट पर गुमटियां बनीं।
आखिर शासकों को किस-किस चीज़ से महफूज़ रखा जाता? अतः फिर उनके ही बदन पर बुलेट-प्रूफ लबादे लपेटे जाने लगे। राइफलें ,बन्दूखें आ गई थीं। धीरे-धीरे हलकी-फुलकी चीज़ों का प्रयोग बढ़ा। कुपित होकर लोग चप्पल-जूते फेंकने लगे। तब जूता कम्पनियों ने इतने लम्बे लेस बनाने शुरू किये, कि जब तक श्रोता जूता खोले तब तक 'माननीय' सभा बर्खास्त करके भाग सकें।
कालांतर में युग वाचाल हो गया। बयानों से भी शासकों पर हमले होने लगे। तब सत्तानवीसों के आउट-हाउसों में श्वान-गृहों, अस्तबलों, गैराजों की भाँति कक्ष बना कर चारों दिशाओं की चौकसी करने वाले बयान-वीर भी रखे जाने लगे। ये संतों से लेकर नर्तकियों तक पर धारा-प्रवाह बोलते थे, और धारा की भाँति ही चंचल-अविश्वसनीय-उद्दंड और उच्श्रंखल होते थे। इनका चपल-नर्तन, दुनिया आभासी हो जाने के कारण दूर तक देखा-सुना जा सकता था।
पुराने समय में जब शासक अपने रहने के लिए किले बनवाते थे, तो उनमें सुरक्षा के सभी इंतजाम होते थे। लोग भाले, बरछी, कृपाण आदि से हमले करते थे, तो इन सभी अस्त्रों के विरुद्ध दुर्गों में सुरक्षा चक्र भी होते थे। बारूद के गोलों को झेलने के लिए ऊंचे और मज़बूत बुर्ज़ हुए। शीश-महलों के दिन लदने के साथ बाद में जब शासकों पर पत्थर फेंकने का चलन आया तो शीशे की दीवारें प्रचलन से हट गईं , और लोहे के गेटों पर संतरी खड़े होने लगे। संतरी पहरे के समय में गुटका आदि सुभीते से खा सकें, इसके लिए गेट पर गुमटियां बनीं।
आखिर शासकों को किस-किस चीज़ से महफूज़ रखा जाता? अतः फिर उनके ही बदन पर बुलेट-प्रूफ लबादे लपेटे जाने लगे। राइफलें ,बन्दूखें आ गई थीं। धीरे-धीरे हलकी-फुलकी चीज़ों का प्रयोग बढ़ा। कुपित होकर लोग चप्पल-जूते फेंकने लगे। तब जूता कम्पनियों ने इतने लम्बे लेस बनाने शुरू किये, कि जब तक श्रोता जूता खोले तब तक 'माननीय' सभा बर्खास्त करके भाग सकें।
कालांतर में युग वाचाल हो गया। बयानों से भी शासकों पर हमले होने लगे। तब सत्तानवीसों के आउट-हाउसों में श्वान-गृहों, अस्तबलों, गैराजों की भाँति कक्ष बना कर चारों दिशाओं की चौकसी करने वाले बयान-वीर भी रखे जाने लगे। ये संतों से लेकर नर्तकियों तक पर धारा-प्रवाह बोलते थे, और धारा की भाँति ही चंचल-अविश्वसनीय-उद्दंड और उच्श्रंखल होते थे। इनका चपल-नर्तन, दुनिया आभासी हो जाने के कारण दूर तक देखा-सुना जा सकता था।
बहुत बढिया । आपको दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteDhanyawad ! Aapko bhi Deewali ki hardik shubhkaamnayen!
ReplyDeleteजानकारी सहित रोचक लेख....
ReplyDeleteदिवाली की अनंत शुभकामनाएँ...
सादर
Dhanyawad. Deewali shubh ho!
ReplyDeletebahut hi Sundar, achha kataksh.
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