एक बार एक व्यक्ति विचित्र दुविधा में घिर गया। एक रात उसके सपने में एक-एक करके उसके सभी पूर्वज आये,और उससे कहने लगे कि उसने अपने जीवन में जो कुछ भी किया वह अपने जीते-जी सारी दुनिया को बताये, ताकि यदि उसके किसी कार्य से दुनिया में किसी को भी कोई कष्ट हुआ हो, तो वह उससे क्षमा तो मांग ही सके, बल्कि आवश्यक होने पर अपनी भूल का प्रायश्चित भी अपने जीवन में ही कर सके।
व्यक्ति सुबह उठते ही रात को आये सपनों को याद करके बेहद शर्मिंदा हुआ। उसे तत्काल कई ऐसे कार्य-व्यवहार याद आ गए, जिन्हें उचित कदापि नहीं कहा जा सकता था। उनसे अवश्य कई लोगों को अपार कष्ट हुआ होगा, यह वह मन ही मन जान गया। किन्तु अब किया ही क्या जा सकता था।
उधर पुरखों के संकेत का अनदेखा करना भी एक घोर पाप जैसा ही था। अतः उसने स्वप्न में मिले निर्देश का अनुपालन करने का ही निश्चय किया।
अब सवाल यह था कि अपनी करनी लोगों को बताई कैसे जाए? जिनके साथ उसने अवांछित व्यवहार किया था, वे तो इस बाबत जानते ही थे, पर ऐसा तरीका क्या हो, जिससे बाकी के लोग भी ऐसे व्यवहार को जानें। बहुत सोच-विचार के बाद आखिर उसे एक तरीका सूझ ही गया। उसने अपनी आत्म-कथा लिखने का मानस बनाया। उसने अपनी जीवन-गाथा लिखनी शुरू की, और कुछ ही दिन में पूरी लिख डाली।
उसे यह देख कर घोर आश्चर्य हुआ कि सब कुछ कागज़ पर उतार देने के बाद भी किसी ने कोई विरोध या अप्रसन्नता दर्ज नहीं कराई। किन्तु उसने तो अपना काम कर ही दिया था। वह अब प्रसन्न और संतुष्ट था।
वह रोज़ रात को सोने से पहले अपने पूर्वजों को याद करता कि वे उसके सपने में आयें, और वह उन्हें बता सके कि उसने उनका कहा कर दिया है। किन्तु उसका कोई पूर्वज फिर कभी उसके सपनों में नहीं आया। क्योंकि उन सभी ने स्वर्ग में स्थित लायब्रेरी में बैठ कर "आत्म-कथा" की परिभाषा पढ़ ली थी।
व्यक्ति सुबह उठते ही रात को आये सपनों को याद करके बेहद शर्मिंदा हुआ। उसे तत्काल कई ऐसे कार्य-व्यवहार याद आ गए, जिन्हें उचित कदापि नहीं कहा जा सकता था। उनसे अवश्य कई लोगों को अपार कष्ट हुआ होगा, यह वह मन ही मन जान गया। किन्तु अब किया ही क्या जा सकता था।
उधर पुरखों के संकेत का अनदेखा करना भी एक घोर पाप जैसा ही था। अतः उसने स्वप्न में मिले निर्देश का अनुपालन करने का ही निश्चय किया।
अब सवाल यह था कि अपनी करनी लोगों को बताई कैसे जाए? जिनके साथ उसने अवांछित व्यवहार किया था, वे तो इस बाबत जानते ही थे, पर ऐसा तरीका क्या हो, जिससे बाकी के लोग भी ऐसे व्यवहार को जानें। बहुत सोच-विचार के बाद आखिर उसे एक तरीका सूझ ही गया। उसने अपनी आत्म-कथा लिखने का मानस बनाया। उसने अपनी जीवन-गाथा लिखनी शुरू की, और कुछ ही दिन में पूरी लिख डाली।
उसे यह देख कर घोर आश्चर्य हुआ कि सब कुछ कागज़ पर उतार देने के बाद भी किसी ने कोई विरोध या अप्रसन्नता दर्ज नहीं कराई। किन्तु उसने तो अपना काम कर ही दिया था। वह अब प्रसन्न और संतुष्ट था।
वह रोज़ रात को सोने से पहले अपने पूर्वजों को याद करता कि वे उसके सपने में आयें, और वह उन्हें बता सके कि उसने उनका कहा कर दिया है। किन्तु उसका कोई पूर्वज फिर कभी उसके सपनों में नहीं आया। क्योंकि उन सभी ने स्वर्ग में स्थित लायब्रेरी में बैठ कर "आत्म-कथा" की परिभाषा पढ़ ली थी।
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