जब दशरथ का वचन सुन, राम को जंगल में जाने के लिए निकलना पड़ा, तब कैकेई और मन्थरा के अलावा कोई खुश नहीं हुआ। जब राम को लौटा लाने के भरत के प्रयास विफ़ल हो गए, तब सब मायूस हो गए। राम जंगल क्या गए, लोगों ने अपने घर को जंगल बना लिया।
जैसे जंगल में सैंकड़ों प्रजातियों के जीव रहते हैं, वैसे ही घरों में भी मच्छर, मकड़ी,छिपकली,मक्खी,पतंगे, खटमल,मेंढक,चूहे,छछूंदर,गिलहरी,कबूतर,चिड़िया,इल्लियाँ,चींटे,चींटियाँ,कनखजूरा, टिड्डा,तितली और न जाने कौन-कौन से जंतु रहने लगे। लोग इनसे लापरवाह रहते, वे सोचते, जब हमारे राम इन सब के बीच गुज़ारा कर रहे हैं, तो हमें इनसे क्या परहेज़। राम जंगल में हैं, तो घर और जंगल में फर्क ही क्या?
जब चौदह साल बाद राम घर लौट आये, तब लोगों का ध्यान गया।अरे, ये कौन-कौन घर के कौनों में डेरा डाले पड़ा है? बस, लोगों ने आव देखा न ताव, पिल पड़े इन पर। मार-मार कर भगाया सब को। झाड़ू,ब्रश,पौंछा,दवा का छिड़काव, चाहे जो करना पड़े, किसी को नहीं रहने देना है। मकड़ी कितनी ही ऊंचाई पर जाला बुने, लम्बे बांस के सहारे सब छिन्न-भिन्न।अब जब अपने राम घर लौट आये, तो इन जंगलियों से क्या वास्ता? ये दोबारा इधर का रुख न करें, इसके लिए रंग-रोगन, कलई, डिस्टेम्पर,कुछ भी लगा कर इनका रास्ता बंद करने के पीछे सब पिल पड़े। बिल,छेद,कंदराएं, दरारें,सब बंद। ये घर हैं, कोई जंगल नहीं, कि कोई भी यहाँ आराम से घूमे।
ये सब, साल भर आदमी को तंग करते हैं न , तो दीवाली के दिन इनसे भी बदला। जैसे को तैसा।
हाँ, बस एक को आने की आज़ादी है घर में। सिर्फ एक। वह भी केवल आज के दिन। केवल "उल्लू"। न जाने वह अपने साथ किसे ले आये? वह आज कभी भी आये,उसका इंतज़ार हम सब करेंगे। वैसे तो वह अँधेरे में भी देख लेता है, पर उसके लिए दीप जला कर ढेर सारा उजाला करदें। "शुभ दीपावली"
जैसे जंगल में सैंकड़ों प्रजातियों के जीव रहते हैं, वैसे ही घरों में भी मच्छर, मकड़ी,छिपकली,मक्खी,पतंगे, खटमल,मेंढक,चूहे,छछूंदर,गिलहरी,कबूतर,चिड़िया,इल्लियाँ,चींटे,चींटियाँ,कनखजूरा, टिड्डा,तितली और न जाने कौन-कौन से जंतु रहने लगे। लोग इनसे लापरवाह रहते, वे सोचते, जब हमारे राम इन सब के बीच गुज़ारा कर रहे हैं, तो हमें इनसे क्या परहेज़। राम जंगल में हैं, तो घर और जंगल में फर्क ही क्या?
जब चौदह साल बाद राम घर लौट आये, तब लोगों का ध्यान गया।अरे, ये कौन-कौन घर के कौनों में डेरा डाले पड़ा है? बस, लोगों ने आव देखा न ताव, पिल पड़े इन पर। मार-मार कर भगाया सब को। झाड़ू,ब्रश,पौंछा,दवा का छिड़काव, चाहे जो करना पड़े, किसी को नहीं रहने देना है। मकड़ी कितनी ही ऊंचाई पर जाला बुने, लम्बे बांस के सहारे सब छिन्न-भिन्न।अब जब अपने राम घर लौट आये, तो इन जंगलियों से क्या वास्ता? ये दोबारा इधर का रुख न करें, इसके लिए रंग-रोगन, कलई, डिस्टेम्पर,कुछ भी लगा कर इनका रास्ता बंद करने के पीछे सब पिल पड़े। बिल,छेद,कंदराएं, दरारें,सब बंद। ये घर हैं, कोई जंगल नहीं, कि कोई भी यहाँ आराम से घूमे।
ये सब, साल भर आदमी को तंग करते हैं न , तो दीवाली के दिन इनसे भी बदला। जैसे को तैसा।
हाँ, बस एक को आने की आज़ादी है घर में। सिर्फ एक। वह भी केवल आज के दिन। केवल "उल्लू"। न जाने वह अपने साथ किसे ले आये? वह आज कभी भी आये,उसका इंतज़ार हम सब करेंगे। वैसे तो वह अँधेरे में भी देख लेता है, पर उसके लिए दीप जला कर ढेर सारा उजाला करदें। "शुभ दीपावली"
Bahut-bahut Dhanyawaad. Aapko bhi Deewali ki Anekon mangal kaamnaayen.
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