Thursday, November 8, 2012

हर बीज बिरवा, और हर बिरवा बनता है पेड़

एक राजा था।
एक दिन उसके दरबार में कहीं से एक युवक आया, और बोला-"राजा, आपके पास महल में जो भी रक्षक-पहरेदार हैं, वे सभी सीधे-सादे लोग हैं, आज्ञाकारी भी हैं, लेकिन क्षमा करें, ऐसे लोग किस काम के? जब कभी भी राज्य पर कोई धूर्त, लुटेरे-डाकू आक्रमण करेंगे, तब ये सीधे-सादे, शरीफ लोग भला उनका क्या कर  पायेंगे? और सीधे शरीफ लोग तो आक्रमण करेंगे नहीं!"
राजा को युवक की बात उचित लगी।फ़ौरन ये फरमान जारी हो गया कि  राज्य की सेना में नियुक्त करने के लिए डाकू-लुटेरे-आतताई-गुंडे किस्म के लोगों की ज़रुरत है।
कुछ लोगों को यह राजा  की कोई चाल जैसी लगी, फिर भी डरते, शंकित होते हुए  भी राज्य के तमाम गुंडे-आवारा-डाकू-लुटेरे-गिरहकट-कातिल आवेदन करने लगे।
एक दरबारी से रहा न गया। वह राजा से बोला- "महाराज, आप ऐसे लोगों से घिर जायेंगे तो उनसे फिर आपकी रक्षा कौन करेगा?"
राजा ने कहा- "जब यह सब लोग हमारा ही दल हो जायेंगे, तो हमें किसी का क्या डर?और हम उस युवक को ही सेनापति बनाए देते हैं, जिसने हमें इनकी भरती का सुझाव दिया था।"
राजा ने उस युवक को बुलवाने के लिए आदमी भेजे, किन्तु वह स्वयं ही आ पहुंचा और सारी बात सुन कर बोला- "महाराज, मैं आपको आपकी रक्षा का वचन देता हूँ, आपको विश्वास न हो, तो सनद के लिए हम दोनों अपनी पगड़ी बदल लेते हैं।"
राजा ने मायूस होकर कहा-"यह बात हम दोनों तक ही रहे, जनता तक न पहुंचे।"























No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...