एक बार सात राजकुमार घूमते हुए कहीं जा रहे थे। वे कहीं के राजकुमार नहीं थे, उनके पिताओं का कहीं कोई राजपाट नहीं था, केवल उनके स्कूली दिनों में उनके टीचर ने उन्हें बताया था कि जब तक मनुष्य स्वयं कमाना शुरू नहीं करता, और अपनी ज़रूरतों के लिए अपने माता-पिता पर अवलंबित रहता है, तब तक वह किसी राजकुमार की ही भांति है। उसे जो चाहिए मिल जाता है, और उसके लिए कोई चिंता नहीं करनी पड़ती।
केवल इसी आधार पर वे अपने को राजकुमार कहते थे, और उसी तरह व्यवहार करते थे।
घूमते-घूमते आखिर एक दिन उनके मन में आया, कि अब हम युवा हो रहे हैं, हमें अपनी जीविका के लिए कुछ न कुछ प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने निश्चय किया कि वे सब नगर में अलग-अलग दिशाओं में चले जाएँ और एक सप्ताह बाद वापस यहीं आ कर अपने-अपने अनुभव सुनाएँ।यह विचार सभी को पसंद आया। उन्होंने कुछ चर्चाएँ भी कीं, और रणनीतिक तौर पर तय किया कि वे सभी इस बीच कुछ न कुछ बेचेंगे। लौटने के बाद उन्हें बताना होगा, कि उन्होंने कौन सी वस्तु का व्यापार किया और उन्हें क्या आमदनी हुई।
सात दिन बाद जब एक निर्धारित जगह पर वे सभी मित्र मिले तो उन्हें यह जान कर बेहद ख़ुशी और अचम्भा हुआ कि वे सभी कुछ न कुछ कमाने में सफल हुए थे, और इस से भी बड़ी बात यह थी कि उन सभी ने एक ही वस्तु बेची थी।[...जारी]
केवल इसी आधार पर वे अपने को राजकुमार कहते थे, और उसी तरह व्यवहार करते थे।
घूमते-घूमते आखिर एक दिन उनके मन में आया, कि अब हम युवा हो रहे हैं, हमें अपनी जीविका के लिए कुछ न कुछ प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने निश्चय किया कि वे सब नगर में अलग-अलग दिशाओं में चले जाएँ और एक सप्ताह बाद वापस यहीं आ कर अपने-अपने अनुभव सुनाएँ।यह विचार सभी को पसंद आया। उन्होंने कुछ चर्चाएँ भी कीं, और रणनीतिक तौर पर तय किया कि वे सभी इस बीच कुछ न कुछ बेचेंगे। लौटने के बाद उन्हें बताना होगा, कि उन्होंने कौन सी वस्तु का व्यापार किया और उन्हें क्या आमदनी हुई।
सात दिन बाद जब एक निर्धारित जगह पर वे सभी मित्र मिले तो उन्हें यह जान कर बेहद ख़ुशी और अचम्भा हुआ कि वे सभी कुछ न कुछ कमाने में सफल हुए थे, और इस से भी बड़ी बात यह थी कि उन सभी ने एक ही वस्तु बेची थी।[...जारी]
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