Tuesday, November 13, 2012

ये रात कब तक आएगी?

कल देर रात बिस्तर पर जाने के बाद भी दिन थमा नहीं। रौशनी रात भर रही। धमाकों का गगन-भेदी शोर पूरी रात चला। यह ख्याल आता रहा कि चौदह साल बाद घर लौटने पर राम का स्वागत अगर इसी तरह हुआ होगा तो क्या उन्हें घर लौटने के बाद भी नींद नसीब हुई होगी? मन यह सोच कर उदास रहा कि  जो लोग अब तक सोये नहीं हैं वे जुआ खेल रहे हैं। गुलज़ार सड़कों पर अब शराब पीकर घिसटने वालों की आमद होने लगी है। एक युवक ने गर्व से बताया कि  हर पंद्रह मिनट बाद वह जो विशेष पटाखा फोड़ रहा है, वह पांच हज़ार रूपये का है। सैंकड़ों रूपये किलो वाली कीमती मिठाइयाँ और सूखे मेवे बेकद्री से खाए-कम-फेंके-ज्यादा जा रहे हैं। बल्बों में बिजली और दीयों में तेल की न कोई गिनती है, न कोई सीमा। दफ्तर-विद्यालयों में सप्ताह भर तक  काम लगभग ठप्प है।
कभी-कभी लगता है कि  हमारी अर्थ-व्यवस्था, हमारा सामाजिक ताना-बाना,हमारा बौद्धिक चिन्तन कहीं सचमुच किसी दिन "राम-भरोसे" ही न हो जाए।

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