Tuesday, November 27, 2012

यह संकेत बहुत अच्छा है

यदि कोई चीज़ बिगड़ती है,तो सभी को बुरा लगता है। पहले सभी चाहते हैं कि  यह सुधर जाए, पर यदि प्रयास करने पर भी वह नहीं ठीक होती, तो फिर धीरे-धीरे सबका धैर्य चुकने लगता है, और वे उपेक्षा से उसे बिगड़ता हुआ देखते रहते हैं। बाद में उनकी हताशा उन्हें विध्वंसात्मक बना देती है और वे उसे और भी नष्ट-भ्रष्ट करने लग जाते हैं।
यह प्रक्रिया आप किसी बच्चे को अपने खिलौने के साथ अपनाते देख सकते हैं। अपने प्रिय खिलौने को टूटा देख कर वह पहले सकारात्मक होकर उसे जोड़ने की कोशिश करने में प्रवृत्त होता है, पर फिर विध्वंसात्मक हो जाता है। वह उसे और तोड़-फोड़ कर उसका अस्तित्व मिटा देना चाहता है।
यह स्थिति दो बातों को इंगित करती है। एक तो यह, कि  अब बच्चा किसी दूसरे, उससे बेहतर खिलौने की तलाश में लग जाएगा, और दूसरा यह, कि  बच्चा अब अपने मानसिक विकास की अगली पायदान पर चढ़ जाएगा।
बचपन में कोई अपने माता-पिता से कुत्ता या मछली पालने की जिद करता है। बाद में जब वह कुत्ता या वह मछली मर जाती है तो बच्चा दोबारा मछली नहीं मांगता,वह कुछ और चाहता है क्योंकि उसके अनुभवों का एक अध्याय यहाँ पूरा हो जाता है।
हमारी युवा पीढ़ी इन दिनों ऐसा ही सलूक "देश" के साथ कर रही है।वह दिन गए, जब वह इस पर अविश्वास करके इसकी अवहेलना करती थी। अब वह तन-मन-धन से इसका पुनर-निर्माण चाहती है। कई युवाओं से मिल कर मुझे ऐसा लगता है कि  अब वे समस्याओं को नहीं, उनके हल को सुनना चाहते हैं।

3 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...