Friday, December 28, 2012

रोगी हिन्दुस्तान और हकीम सिंगापुरी

जो बात कल तक परदे में थी, बाहर भी आकर रही।
सूरज भी एक फेरे में एक बार उगता है, और एक ही बार डूबता है। लेकिन भारत के लिए ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। वह एक घटना से भी बार-बार शर्मसार हो सकता है।
राजधानी की सड़कों पर भविष्य की एक डाक्टर के साथ नियति ने पैशाचिक दरिंदगी के साथ पुरुष का जो रूप दिखाया, उस से हिंदुस्तान सकते में ही था कि एक महिला का फफूंद और कीड़े पड़ा घिनौना बयान आ गया कि पीड़िता को आत्मसमर्पण कर देना चाहिए था।
देश इसे सुन कर अपने  भूत-भविष्य-वर्तमान पर मनन कर ही रहा था कि एक माननीय नेता के मुखारविंद   से ऐसे उदगार फूटे-"जो महिलाएं ऐसी घटनाओं पर विरोध-प्रदर्शन करती हैं, वे तैयार होकर डिस्को आदि में क्यों आ जाती हैं?" उनका आशय यह था कि  डिस्कोथेक  जैसी जगह तो केवल पुरुषों के उछलने-कूदने के लिए है।
और फिर देश ने अपनी महिमा पर एक वार और झेला-"पीड़िता का इलाज यहाँ नहीं हो पा रहा, उसे सिंगापूर रवाना किया गया है।"अर्थात देश के हजारों हस्पताल इलाज के लिए नहीं हैं, वे तो मोटे डोनेशनों से डिग्री बांटने और आरक्षणों से  नौकरियां देने के लिए हैं। सच है, जिस देश में डाक्टर की 'ऐसी' क़द्र होगी, वह इलाज के लिए दूसरे देशों का मुंह ही ताकेगा। ठीक है???       

4 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...