Sunday, December 9, 2012

काटजू, भारतीय और गणित

भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष काटजू साहब को बहुत-बहुत बधाई। उन्होंने वह काम पलक झपकते ही चुटकियों में कर दिखाया जो भारतीय जनगणना से जुड़ी सारी मशीनरी दस साल में भी नहीं कर पाती। लाखों कार्यकर्त्ता देश भर में कागज़ पैन लेकर बस्ती-बस्ती घूमते रहते हैं फिर भी यह नहीं पता लगा पाते  कि भारत में "भारतीय" कितने हैं, और उनमें किस की जाति  कौन सी है।
काटजू साहब ने आनन-फानन में  किसी सुपर कंप्यूटर की शैली में यह खड़े-खड़े पता लगा लिया कि  एक सौ बीस करोड़ भारतीयों में कितने मूर्ख या बेवकूफ हैं।
अब तक तो सब सुभीते से हो गया, लेकिन उलझन अब आ रही है। अब हर भारतीय अफरा-तफरी में काटजू साहब से संपर्क करना चाहता है। आखिर ये तो सब जानना ही चाहेंगे न कि  वे 'दस' में हैं या "नब्बे" में?क्योंकि काटजू साहब के मुताबिक़ सौ में से दस समझदार हैं, बाकी नब्बे मूर्ख।
यदि अपना नंबर नब्बे में आ गया, तो कोई चिंता नहीं है। अपनी चिंता सरकारें करेंगी ही। आरक्षण, रियायत, छूट, सब्सिडी आदि तमाम तरह की सुविधाएं हैं। हाँ, अगर कोई दस में रह गया,तो उसकी आफत है। वह कैसे अपने दिन गुज़ार पायेगा बेचारा।
खैर, यह तो आम आदमी की अपनी चिंता है, हम तो काटजू जी का नाम गणित के किसी बड़े पुरस्कार के लिए प्रस्तावित करते हैं।  

6 comments:

  1. maine to khud ko aur aapko us 10% mein hi rakh liya hai...Smiles...

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  2. SUNDAY, DECEMBER 9, 2012

    काटजू, भारतीय और गणित
    भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष काटजू साहब को बहुत-बहुत बधाई। उन्होंने वह काम पलक झपकते ही चुटकियों में कर दिखाया जो भारतीय जनगणना से जुड़ी सारी मशीनरी दस साल में भी नहीं कर पाती। लाखों कार्यकर्त्ता देश भर में कागज़ पैन लेकर बस्ती-बस्ती घूमते रहते हैं फिर भी यह नहीं पता लगा पाते कि भारत में "भारतीय" कितने हैं, और उनमें किस की जाति कौन सी है।
    काटजू साहब ने आनन-फानन में किसी सुपर कंप्यूटर की शैली में यह खड़े-खड़े पता लगा लिया कि एक सौ बीस करोड़ भारतीयों में कितने मूर्ख या बेवकूफ हैं।
    अब तक तो सब सुभीते से हो गया, लेकिन उलझन अब आ रही है। अब हर भारतीय अफरा-तफरी में काटजू साहब से संपर्क करना चाहता है। आखिर ये तो सब जानना ही चाहेंगे न कि वे 'दस' में हैं या "नब्बे" में?क्योंकि काटजू साहब के मुताबिक़ सौ में से दस समझदार हैं, बाकी नब्बे मूर्ख।
    यदि अपना नंबर नब्बे में आ गया, तो कोई चिंता नहीं है। अपनी चिंता सरकारें करेंगी ही। आरक्षण, रियायत, छूट, सब्सिडी आदि तमाम तरह की सुविधाएं हैं। हाँ, अगर कोई दस में रह गया,तो उसकी आफत है। वह कैसे अपने दिन गुज़ार पायेगा बेचारा।
    खैर, यह तो आम आदमी की अपनी चिंता है, हम तो काटजू जी का नाम गणित के किसी बड़े पुरस्कार के लिए प्रस्तावित करते हैं।
    प्रस्तुतकर्ता Prabodh Kumar Govil पर 8:17 PM

    इसे कहते हैं तेल और तेल की धार .तंज और तंज की मार ,नाक भी कट जाए नकटे की और खबर भी न हो .बेहतरीन व्यंग्य .

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