उन्होंने राजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति की मुहिम इसलिए आरम्भ की थी, कि प्रशासन में प्रगतिशील दृष्टिकोण को पारंपरिक सोच पर तरजीह दी जा सके। उनका मानना यह था, कि किसी को कोई बड़ा दायित्व केवल इसलिए न मिले, कि वह उस दायित्व के मूल हितग्राही से रिश्ता रखता है, पर साथ ही वे इस बात की हिमायती भी थीं, कि किसी को केवल इस आधार पर बड़े दायित्व को ग्रहण करने से वंचित न किया जाए, कि वह मूल हितग्राही से रिश्ता रखता है।मतलब यह, कि "किसी अधिकार के साथ कितने भी कर्त्तव्य जुड़ें हों, वह अधिकार उसे तभी मिले, जब वह उनके योग्य अपने को सिद्ध कर चुका हो, या यह सक्षमता रखता हो।" पूर्व-सक्षमता की परख के मामले में अवश्य उनके कुछ विवादास्पद विचार हो सकते हैं।
ऐसे में प्रधान-मंत्री पद के किसी भी ऐसे दावेदार को वह पसंद ही करतीं, जो किसी विरासत से न जुड़ा हो।वह किस पार्टी से हो, इस पर उनके विचार क्या होते, इस बात का अनुमान इस बात से लगता है, कि उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सिंडिकेट के सभी शीर्ष नेताओं के निर्णय से इत्तफाक न होने पर पुरानी बहती नदी से एक अलग धारा, 'इंदिरा-कांग्रेस' निकाल ही दी थी।
ऐसे में प्रधान-मंत्री पद के किसी भी ऐसे दावेदार को वह पसंद ही करतीं, जो किसी विरासत से न जुड़ा हो।वह किस पार्टी से हो, इस पर उनके विचार क्या होते, इस बात का अनुमान इस बात से लगता है, कि उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस सिंडिकेट के सभी शीर्ष नेताओं के निर्णय से इत्तफाक न होने पर पुरानी बहती नदी से एक अलग धारा, 'इंदिरा-कांग्रेस' निकाल ही दी थी।
No comments:
Post a Comment