जब किसी का निधन हो जाता है तो उसकी शैया को मृत्यु के बाद उठा दिया जाता है, उसे बिछा नहीं रहने देते। इसे शुभ नहीं माना जाता। यह एक पुरानी परंपरा है। यद्यपि एक समय ऐसा भी था कि भारतीय घरों में दिन में शैया का पड़ा रहना, और उसपर बिस्तर बिछा रहना ही अच्छा नहीं माना जाता था। ऐसा केवल तब होता था, जब घर में कोई बीमार हो। इसलिए दिन में तो खाट खड़ी ही रहती थी।और जिस पर किसी के प्राण पखेरू उड़े हों, उस सेज को तो खड़ा कर ही दिया जाता था।"खाट खड़ी हो जाना" मुहावरा भी इसी से प्रचलन में आ गया।
समय के साथ बदलाव आये। खाट का स्थान भारी-भरकम लकड़ी के डिजायनर पलंगों ने ले लिया। दिन भर घर में बेड या डबल-बेड बिछे ही रहने लगे। इतने भारी शयन-मंच को रोज़ कौन उठाये। हम अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं में तो बदल गए, किन्तु अपने मानस बदलाव में हमारी गति वही नहीं रही।हम अपने नए दिनों में पुराने दिनों का तड़का अब भी कभी-कभी लगा ही बैठते हैं।
परसों एक वयोवृद्ध महिला की मृत्यु हो गई। उनके दिवंगत हो जाने के बाद, परंपरागत तरीके से भारी लकड़ी के उस आधुनिक डबल-बेड को भी उठा कर दीवार के सहारे खड़ा कर दिया गया।घर में लोगों का इकठ्ठा होना, और व्यवस्थाओं का अस्त-व्यस्त हो जाना आरम्भ हो गया।
एक तीन वर्ष की मासूम बालिका ने जीवन में पहली बार उस बेड को खड़ा देख, जिज्ञासा से हाथ क्या लगाया, कि देखते-देखते मातमी घर में मातम की नई लहर आ गई। भरभरा कर गिरते उस पाषाण-ह्रदय काष्ठाडम्बर ने यह भी नहीं देखा कि नीचे एक ऐसी निर्दोष कलिका मासूमियत से खड़ी है जिसने अभी जिंदगी का साक्षात्कार भी ढंग से नहीं किया।
भारतीय घरों में प्रचलित मानस-शब्दावलियों में ऐसी घटना के कई संभावित कारक दर्ज हैं, इसलिए इस पर चर्चा बेमानी है। एक घर से समय-असमय उठी दो अर्थियों पर देवता पुष्प-वृष्टि करें।
समय के साथ बदलाव आये। खाट का स्थान भारी-भरकम लकड़ी के डिजायनर पलंगों ने ले लिया। दिन भर घर में बेड या डबल-बेड बिछे ही रहने लगे। इतने भारी शयन-मंच को रोज़ कौन उठाये। हम अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं में तो बदल गए, किन्तु अपने मानस बदलाव में हमारी गति वही नहीं रही।हम अपने नए दिनों में पुराने दिनों का तड़का अब भी कभी-कभी लगा ही बैठते हैं।
परसों एक वयोवृद्ध महिला की मृत्यु हो गई। उनके दिवंगत हो जाने के बाद, परंपरागत तरीके से भारी लकड़ी के उस आधुनिक डबल-बेड को भी उठा कर दीवार के सहारे खड़ा कर दिया गया।घर में लोगों का इकठ्ठा होना, और व्यवस्थाओं का अस्त-व्यस्त हो जाना आरम्भ हो गया।
एक तीन वर्ष की मासूम बालिका ने जीवन में पहली बार उस बेड को खड़ा देख, जिज्ञासा से हाथ क्या लगाया, कि देखते-देखते मातमी घर में मातम की नई लहर आ गई। भरभरा कर गिरते उस पाषाण-ह्रदय काष्ठाडम्बर ने यह भी नहीं देखा कि नीचे एक ऐसी निर्दोष कलिका मासूमियत से खड़ी है जिसने अभी जिंदगी का साक्षात्कार भी ढंग से नहीं किया।
भारतीय घरों में प्रचलित मानस-शब्दावलियों में ऐसी घटना के कई संभावित कारक दर्ज हैं, इसलिए इस पर चर्चा बेमानी है। एक घर से समय-असमय उठी दो अर्थियों पर देवता पुष्प-वृष्टि करें।
बहुत दुख की बात है!
ReplyDeleteAur laachaari ki bhi. Dhanyawaad.
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन !!
ReplyDeleteDhanyawaad.
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