Monday, December 10, 2012

आपका नजरिया क्या है, नज़र के बारे में?

सुबह हुई, और हमें सब कुछ नज़र आने लगा। दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे करामाती टॉर्च, जिसे हम सूर्य कहते हैं, क्षितिज से निकल कर हमारे सामने आ जाती है।
पैदा होते ही बच्चा आँखें खोलता है, और उसी के साथ रोशन हो जाती है पूरे परिवार की दुनिया।
जब हम किसी भी काम के लिए घर से निकलते हैं, तो तरह-तरह के प्रसाधनों से अपने को तैयार करते हैं। सलीके से कपड़े पहनते हैं, कि  सबकी नज़र हम पर पड़े। यदि कोई हमें अनदेखा करे, अर्थात हम पर नज़र न डाले, तो हमें अच्छा नहीं लगता। कहीं भी कोई खूबसूरत चीज़ अगर हमें दिखे, तो हम भी उस पर नज़र डालते ही हैं। नज़र ज़रा भी धुंधली पड़ी, तो लोग घबरा कर डाक्टर के पास भागते हैं। डाक्टर यदि हमारी आँखें दो की चार करदे, तब भी हमें कबूल,क्योंकि आखिर नज़र का सवाल है।
लेकिन किसी दिन हमारे साथ कुछ अशुभ या बुरा घटा, और हम कहने लगते हैं कि  "नज़र" लग गई। बच्चा बीमार हुआ, और बस,हम कहते हैं कि इसे किसी की नज़र लग गई। हमारे अच्छे चलते व्यापार में घाटा हुआ, और हमारा माथा ठनका, कि किसी की नज़र लग गई।
आखिर ये माज़रा क्या है? नज़र लगे कि न लगे?
इसका उत्तर है कि  हमें किसी की "बुरी" नज़र न लगे। और ऐसा तभी होगा, जब हम अपने सुख में दूसरों को भी शामिल करेंगे। दूसरों के सुख में खुश होंगे।
अपने दिमाग में कोई माइक्रोवेव-ऑवन नहीं रखेंगे, कि किसी की कोई ख़ुशी वहां आई, और जल-भुन गई!

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