Saturday, March 17, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 9 ]

     ...बच्चों ही नहीं, उनके माता-पिता को भी नाना बहुत पसंद आये. बरसों पहले स्कॉटलैंड  से आकर ब्राजील में बसा उनका परिवार बाद में बफलो का ही होकर रह गया. वे बिना किसी संकोच के बताते थे कि बचपन में वे उत्पाती हिंसक बालक थे. उन्हें हर किसी को दुःख में देखने से ही आनंद मिलता था. लेकिन पुरानी वस्तुओं से उनका मोह पागलपन की हद तक था.हर पुरानी वस्तु उन्हें बात करने योग्य बुज़ुर्ग जैसी लगती थी. वे कहते- यदि किसी बूढ़े ने चालीस साल तक किसी छड़ी के सहारे अपने कदम बढ़ाये हैं,तो बूढ़े के मरने के बाद निश्चय ही वह छड़ी बूढ़े के बारे में खूब बातें करेगी, बशर्ते कोई उसकी ज़ुबान समझने वाला हो.किसी बुज़ुर्ग स्त्री का बरसों पुराना चश्मा उसकी आँखों की  रामकहानी क्यों नहीं जानेगा, वे सुनने वालों से ही पूछते थे.
     उनका लाल सुर्ख चेहरा बिना हड्डियों के बना कोई बुत दीखता था.
     ग्रोव सिटी के नज़दीक उनकी लम्बी-चौड़ी ज़मीन थी, जो उन्होंने बनाना रिपब्लिक कंपनी को सस्ते में केवल इसलिए देदी, क्योंकि कंपनी ने नई इमारत बनवाने  के लिए उसकी खुदाई करते समय उसमें मिलने वाले सारे ताबूत उन्हें वापस लौटाने का आश्वासन दिया था. नाना कहते थे कि अब उनके खजाने में सदियों पहले गुज़रे कई  इंसानों की रूहें हैं.
     नाना के मुंह से सोमालिया के किन्ज़ान की कहानी सुन कर तो सभी दंग रह गए.किन्ज़ान बहुत छोटी उम्र से ही नायग्रा के पानी को गिरते देख निहारा करता था. वह उस विशालकाय झरने को उसी तरह देखता रहता था जैसे  बच्चे सिनेमा या टीवी के परदे को देख कर सुध-बुध खो बैठते हैं. उसे वह गिरते पानी का दैत्याकार पर्दा चाँदी के भीगे रजतपट के मानिंद लगता था, जो उसे जादू की हद तक लुभाता था.कभी दूर-दराज की अमेरिकी सेना में तैनात किन्ज़ान के पिता की मौत की खबर आने पर भी उसने वहां आकर घंटों बैठना नहीं छोड़ा था. किन्ज़ान की माँ रस्बी चाहती थी कि अब किन्ज़ान भी सेना में भर्ती हो जाये.पंद्रह साल के किन्ज़ान को बेमन से माँ का कहा करना पड़ा. 
     किन्तु दूसरों के मन की बात इन्सान मान तो सकता है, पर जिंदगी भर मानता रह नहीं सकता. किन्ज़ान छिपके सेना से भाग आया. उस पर केवल एक ही धुन सवार थी कि वह नायग्रा की ऊंचाई से पानी में बह कर नीचे आएगा.उसने दर्ज़नों काम किये. वह धन जोड़ता और फिर इस जोड़-तोड़ में लग जाता कि कैसे वह नायग्रा फाल्स को पार करने लायक सुरक्षित रक्षा-कवच बनाये. उसकी माँ रस्बी इसके सख्त खिलाफ थी. वह उसे हर तरह से समझा चुकी थी कि वह यह पागलपन छोड़ दे. बेटे की जिद ने उसे भी वहशीपन की हद तक जिद्दी बना दिया था. वह दुनिया का हर वह उपाय करने को तैयार थी जो उसके बेटे से ऐसी धुन छुड़ा दे. उसने बेटे को घर में कैद करके रखा, किराये के हिंसक चौकीदारों से उसे नायग्रा के आसपास न फटकने देने का खर्चा उठाया, बेटे को बफलो से दूर लेजाने का प्रयास किया.
     पर जैसे-जैसे माँ अपने मन की करती, वैसे-वैसे बेटे का अपने मन की करने का जुनून और बढ़ता...[जारी...]             

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...