बड़ी बहन ने तुरंत पुलिस को फोन करके सूचना दी. छोटी ने बच्चों की माँ को संभाला जो अब धैर्य खोकर रोने लगी थी. अफ़रा-तफ़री के छह मिनट मुश्किल से गुज़रे होंगे, कि बाहर पुलिस की गाड़ी रुकने की तेज़ आवाज़ आई.किसी को इस बात पर अचम्भा करने का समय नहीं मिला कि सूचना पाते ही बिजली की गति से पुलिस कैसे आ गई, क्योंकि अचम्भा सभी को इस बात पर हो रहा था, कि गाड़ी में एक पुलिस अधिकारी के साथ उस परिवार का लाडला बेटा मौजूद था. सभी हक्के-बक्के रह गए. फोन करने वाली युवती से हाथ मिला कर पुलिस अधिकारी ने गाड़ी की ओर नज़र डाली ही थी कि सपाट से चेहरे से बच्चा गाड़ी से नीचे उतर कर खड़ा हो गया. माँ ने दौड़ कर उसे अपने से चिपटा लिया. छोटी बच्ची जो अब तक केवल उदास थी, अब रोने लगी. पर उसके बिसूरने पर किसी ने शायद यह सोच कर तवज्जो नहीं दी कि यह शायद ख़ुशी के आंसू हों.
अब वे दोनों युवतियां पुलिस अधिकारी की बात पर ज़ोर-ज़ोर से हंस रही थीं.शौचालय के भीतर मरम्मत का काम चल रहा था, जिसके चलते छत से एक ट्रॉली पाइपों की जांच के लिए भीतर उतारी गई थी. इधर माँ मुख्य द्वार पर खड़ी रही, उधर बेटा वहां ट्रॉली पड़ी देख कर उस पर चढ़ गया. बच्चा कुछ समझ पाता इसके पहले ही वह छत पर पहुंचा दिया गया. ट्रॉली-मैन ने उसे तुरंत परिसर में घूम रही पुलिस के सुपुर्द किया. युवतियों की हंसी सब के चेहरे पर परिहास-भरा सुकून बन कर कौंधी.
धूप की तेज़ी अब धीरे-धीरे कम हो रही थी.तेज़ चलती गाड़ी में सभी, कुछ उनींदे से थे.बच्चों के पिता ने न जाने क्या सोचते हुए अब फिर से वार्तालाप की कड़ी जोड़ी. शायद उन्हें सिमी ग्रेवाल की कुछ फिल्मों का नाम याद आ गया था. वे बताने लगे कि भारत के एक मशहूर डायरेक्टर ख्वाज़ा अहमद अब्बास ने रेगिस्तान में पानी की कमी को एक फिल्म "दो बूँद पानी" में दर्शाया था, जिसमें सिमी ग्रेवाल ने काम किया था.नाम सुनते ही दोनों युवतियों के चेहरे पर ख़ुशी छलकी, क्योंकि यह वही फिल्म थी जो उन्होंने देखी थी.इसी फिल्म ने उनके मन में ऐसी धारणा बना दी कि भारत में पानी का अभाव है.
जब वे लोग बफलो पहुंचे, रात हो चुकी थी.दोनों बहनों ने अब उन्हें होटल में नहीं ठहरने नहीं दिया. उस परिवार को भी यही निरापद लगा कि वे उन लोगों के साथ ही ठहरें. रात को खाना खाने के बाद बच्चे तो जल्दी सो गए, किन्तु उनके पिता युवतियों के नाना से जल्दी से जल्दी मिलना चाहते थे. फोन पर बात हुई और उनसे सुबह मिलने का समय ले लिया गया. रात देर तक बातें करने से दोनों को बहुत सी जानकारी मिली.
बच्चों के पिता को उन बहनों ने अपने नाना के काम के बारे में भी बताया. नाना को पुरानी चीज़ें जमा करने का शौक था. वे खुद भी तरह-तरह की चीज़ें बनाते थे. उन्होंने बड़ी मेहनत से एक बेहद सुन्दर घोंसला बनाया था, जिसे उन्होंने अपने घर के सामने एक पेड़ पर सजा दिया था. वे कहते थे कि यह अद्भुत मायावी घोंसला है, जिसमें एक दिन अपने आप रंगीन अंडे आ जायेंगे. उन्हें उस दिन का हमेशा इंतज़ार रहता था. उनके अलावा और कोई नहीं जानता था कि अंडे कहाँ से आयेंगे. बच्चों के पिता को इन बातों में केवल इतनी ही दिलचस्पी थी कि वे उनके बच्चों पर आये संकट को दूर कर सकें. दिन भर की थकान भूल कर वे सुबह के इंतज़ार में थे...[जारी...]
अब वे दोनों युवतियां पुलिस अधिकारी की बात पर ज़ोर-ज़ोर से हंस रही थीं.शौचालय के भीतर मरम्मत का काम चल रहा था, जिसके चलते छत से एक ट्रॉली पाइपों की जांच के लिए भीतर उतारी गई थी. इधर माँ मुख्य द्वार पर खड़ी रही, उधर बेटा वहां ट्रॉली पड़ी देख कर उस पर चढ़ गया. बच्चा कुछ समझ पाता इसके पहले ही वह छत पर पहुंचा दिया गया. ट्रॉली-मैन ने उसे तुरंत परिसर में घूम रही पुलिस के सुपुर्द किया. युवतियों की हंसी सब के चेहरे पर परिहास-भरा सुकून बन कर कौंधी.
धूप की तेज़ी अब धीरे-धीरे कम हो रही थी.तेज़ चलती गाड़ी में सभी, कुछ उनींदे से थे.बच्चों के पिता ने न जाने क्या सोचते हुए अब फिर से वार्तालाप की कड़ी जोड़ी. शायद उन्हें सिमी ग्रेवाल की कुछ फिल्मों का नाम याद आ गया था. वे बताने लगे कि भारत के एक मशहूर डायरेक्टर ख्वाज़ा अहमद अब्बास ने रेगिस्तान में पानी की कमी को एक फिल्म "दो बूँद पानी" में दर्शाया था, जिसमें सिमी ग्रेवाल ने काम किया था.नाम सुनते ही दोनों युवतियों के चेहरे पर ख़ुशी छलकी, क्योंकि यह वही फिल्म थी जो उन्होंने देखी थी.इसी फिल्म ने उनके मन में ऐसी धारणा बना दी कि भारत में पानी का अभाव है.
जब वे लोग बफलो पहुंचे, रात हो चुकी थी.दोनों बहनों ने अब उन्हें होटल में नहीं ठहरने नहीं दिया. उस परिवार को भी यही निरापद लगा कि वे उन लोगों के साथ ही ठहरें. रात को खाना खाने के बाद बच्चे तो जल्दी सो गए, किन्तु उनके पिता युवतियों के नाना से जल्दी से जल्दी मिलना चाहते थे. फोन पर बात हुई और उनसे सुबह मिलने का समय ले लिया गया. रात देर तक बातें करने से दोनों को बहुत सी जानकारी मिली.
बच्चों के पिता को उन बहनों ने अपने नाना के काम के बारे में भी बताया. नाना को पुरानी चीज़ें जमा करने का शौक था. वे खुद भी तरह-तरह की चीज़ें बनाते थे. उन्होंने बड़ी मेहनत से एक बेहद सुन्दर घोंसला बनाया था, जिसे उन्होंने अपने घर के सामने एक पेड़ पर सजा दिया था. वे कहते थे कि यह अद्भुत मायावी घोंसला है, जिसमें एक दिन अपने आप रंगीन अंडे आ जायेंगे. उन्हें उस दिन का हमेशा इंतज़ार रहता था. उनके अलावा और कोई नहीं जानता था कि अंडे कहाँ से आयेंगे. बच्चों के पिता को इन बातों में केवल इतनी ही दिलचस्पी थी कि वे उनके बच्चों पर आये संकट को दूर कर सकें. दिन भर की थकान भूल कर वे सुबह के इंतज़ार में थे...[जारी...]
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