किन्ज़ान तरह-तरह के ऐसे उपाय ढूंढता, जिससे पानी की तूफानी धारा में बहते समय उसकी हिफाज़त हो सके. वह बचपन से ही कुशल तैराक था. पानी में किसी मछली की ही तरह अठखेलियाँ करना उसके बाएं हाथ का खेल था. उसके जीवन का अब एक ही सपना था कि वह नायग्रा के बवंडर भरे पानी में छलांग लगाए, और बहता हुआ आसमानी ऊंचाई से नीचे आकर इस दिव्य प्रपात पर अपने प्रताप का परचम लहराए. झरने से वर्लपूल तक किसी जल-देवता की भांति आना अब उसका एक, केवल एक सपना रह गया था. इस सपने के लिए वह अपनी माँ से लड़ रहा था, अपनी जीविका से लड़ रहा था,और अपनी जिंदगी से लड़ रहा था.
वह उन लोगों के बारे में भी सुन-जान चुका था जिन्होंने पहले कभी ऐसे प्रयास किये थे और वे असफल होकर इतिहास के शामियाने में सदा के लिए सो गए थे. ऐसे लोगों की दास्ताँ उसे डराती नहीं थी , बल्कि चौकन्ना बनाती थी, कि वह उनके द्वारा की गयी गलतियों को न दोहराए.उसे न तो नाम कमाने-प्रसिद्धि पाने का विचार था और न ही इस कारनामे से धन-दौलत पाने का. उसकी होड़ तो बस बहते पानी से थी, कि कैसे चांदी की उस ठंडी धारा के वेग पर सवार होकर वह लहरों की आँधियों के झंझावात पर शिकंजा कसे.फुहारों के करंट-भरे अभिषेक के लिए उसका जवान मस्तक तड़पता था.
सत्रह से भी कम उम्र में ऐसा तूफानी सपना कुदरत किसी शीशे के बदन में भला कैसे भर सकती है, इस पर वह कद्दावर महिला, रस्बी हैरान थी, जिसने पति को सैनिक के रूप में खो देने के बावजूद बेटे के लिए भी सेना का वही पथरीला रास्ता चुना था.बेटे के उसकी बात अनसुनी कर देने के बाद वह किसी भी सीमा तक जाकर बेटे को रोकना चाहती थी. उसे न मृत्यु से डर लगता था, न जिंदगी से प्रेम था, वह तो केवल बेटे के भविष्य को "खेल"में गवाने के खिलाफ थी. देश को सिपाही की ज़रुरत होती है, जुनूनी की नहीं, यह उसकी सोच थी.
अपनी सनक-भरी खोजों के दौरान किन्ज़ान ने जान लिया था कि वेग भरी धारा में लकड़ी का सहारा बहुत निरापद नहीं रहेगा, क्योंकि लकड़ी से बनी कई कश्तियाँ अब असफल जांबाजों की बीती कहानियों का हिस्सा थीं. प्लास्टिक के उपयोग का युग आ गया था. विमानों से पैराशूट अब सफलता से काम में लिए जा चुके थे. केवल यह उपाय महंगे थे, और किन्ज़ान की जुनूनी-उमंग का कोई प्रायोजक नहीं था. सफलता के बाद तो सर-आँखों पर बैठाने के लिए दुनिया दौड़ती है, सफलता का सपना लिए दौड़ते युवक के साथ भला कौन आता ? वह भी तब, जब जन्म देने वाली माँ खुद लट्ठ लेकर सपने के यायावर के पीछे पड़ी हो.
किन्ज़ान के दोस्तों ने पहले तो उसके मंसूबों को हवा में उछाला, लेकिन धीरे-धीरे दोस्ती के दालान में संजीदगी की नर्म घास उगने लगी, वे तरह-तरह से उसकी मदद को आगे आने लगे. धन की कमी के बादल छिन्न-भिन्न होने लगे. जिस पवन-वेग से उड़ने वाले घोड़े पर उनका दोस्त सवार हो, उसे ललकार कर हरी झंडी दिखाने का भी तो अपना एक रोमांच है. किन्ज़ान को "अपने दिन"नज़दीक आते दिखने लगे...[जारी...]
वह उन लोगों के बारे में भी सुन-जान चुका था जिन्होंने पहले कभी ऐसे प्रयास किये थे और वे असफल होकर इतिहास के शामियाने में सदा के लिए सो गए थे. ऐसे लोगों की दास्ताँ उसे डराती नहीं थी , बल्कि चौकन्ना बनाती थी, कि वह उनके द्वारा की गयी गलतियों को न दोहराए.उसे न तो नाम कमाने-प्रसिद्धि पाने का विचार था और न ही इस कारनामे से धन-दौलत पाने का. उसकी होड़ तो बस बहते पानी से थी, कि कैसे चांदी की उस ठंडी धारा के वेग पर सवार होकर वह लहरों की आँधियों के झंझावात पर शिकंजा कसे.फुहारों के करंट-भरे अभिषेक के लिए उसका जवान मस्तक तड़पता था.
सत्रह से भी कम उम्र में ऐसा तूफानी सपना कुदरत किसी शीशे के बदन में भला कैसे भर सकती है, इस पर वह कद्दावर महिला, रस्बी हैरान थी, जिसने पति को सैनिक के रूप में खो देने के बावजूद बेटे के लिए भी सेना का वही पथरीला रास्ता चुना था.बेटे के उसकी बात अनसुनी कर देने के बाद वह किसी भी सीमा तक जाकर बेटे को रोकना चाहती थी. उसे न मृत्यु से डर लगता था, न जिंदगी से प्रेम था, वह तो केवल बेटे के भविष्य को "खेल"में गवाने के खिलाफ थी. देश को सिपाही की ज़रुरत होती है, जुनूनी की नहीं, यह उसकी सोच थी.
अपनी सनक-भरी खोजों के दौरान किन्ज़ान ने जान लिया था कि वेग भरी धारा में लकड़ी का सहारा बहुत निरापद नहीं रहेगा, क्योंकि लकड़ी से बनी कई कश्तियाँ अब असफल जांबाजों की बीती कहानियों का हिस्सा थीं. प्लास्टिक के उपयोग का युग आ गया था. विमानों से पैराशूट अब सफलता से काम में लिए जा चुके थे. केवल यह उपाय महंगे थे, और किन्ज़ान की जुनूनी-उमंग का कोई प्रायोजक नहीं था. सफलता के बाद तो सर-आँखों पर बैठाने के लिए दुनिया दौड़ती है, सफलता का सपना लिए दौड़ते युवक के साथ भला कौन आता ? वह भी तब, जब जन्म देने वाली माँ खुद लट्ठ लेकर सपने के यायावर के पीछे पड़ी हो.
किन्ज़ान के दोस्तों ने पहले तो उसके मंसूबों को हवा में उछाला, लेकिन धीरे-धीरे दोस्ती के दालान में संजीदगी की नर्म घास उगने लगी, वे तरह-तरह से उसकी मदद को आगे आने लगे. धन की कमी के बादल छिन्न-भिन्न होने लगे. जिस पवन-वेग से उड़ने वाले घोड़े पर उनका दोस्त सवार हो, उसे ललकार कर हरी झंडी दिखाने का भी तो अपना एक रोमांच है. किन्ज़ान को "अपने दिन"नज़दीक आते दिखने लगे...[जारी...]
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