कुछ महीने ही बीते होंगे, कि टर्की के एक फल व्यापारी ने अपने घर के नज़दीक एक प्रिंटिंग-प्रेस में कदम रखा. व्यापारी बेहद उत्साहित दिखाई दे रहा था. उसका बेटा कुछ दिन पहले ही दुबई से प्रबंधन की पढ़ाई पूरी करके लौटा था.अब बाप-बेटे ने मिल कर लम्बी-चौड़ी प्लानिंग करके अपने एक्सपोर्ट कारोबार को विस्तार देने की योजना बनाई थी.फल-व्यापारी अपने पैकिंग मेटेरियल की डिज़ाइन लेकर उसे छपवाने आया था. प्रेस ने उसे कई आकर्षक डिब्बों के नमूने दिखाए. इन्हीं डिब्बों में एक बेहद खूबसूरत तिनकों से बने डिब्बे का नमूना भी था. यह देखने में ऐसा लगता था, मानो किसी चिड़िया के बड़े से घोंसले में ताज़े फल रख कर पैक किये गए हों. इस तरह की पैकिंग से फल प्राकृतिक और पर्यावरणीय अभिरक्षा में रखे गए प्रतीत होते थे. इतना ही नहीं, बल्कि छापे-खाने के मालिक ने बताया कि यह डिज़ाइन बिलकुल मौलिक है, इसका प्रतिरूप कहीं उपलब्ध नहीं है क्योंकि प्रेस द्वारा उस डिज़ाइन का पेटेंट करा लिया गया है.
तिनकों से बने डिब्बे का यह नमूना उसी फोटो के आधार पर तैयार किया गया था, जिसे फल-व्यापारी की बेटी कभी अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान खुद खींच कर लाई थी.इस डिब्बे की खासियत यह थी कि इसमें रखे फल पेड़ पर लगे फलों की तरह ही दीखते थे, मानो उन्हें वहीँ समेट कर तिनकों में लपेटा गया हो.व्यापारी को यह डिब्बा खूब पसंद आया, और चंद दिनों बाद वह उसके द्वारा दुनिया-भर में भेजे जाने वाले फलों की पहचान ही बन गया. डिब्बे को देख कर ऐसा आभास होता था, जैसे ताज़े फलों की खुशबू तक डिब्बे में महफूज़ हो.
दुनिया चल रही है. यह न केवल चल रही है, बल्कि इसकी रफ़्तार भी दिन-दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है.इसी का नतीजा था कि पतझड़ के बाद बसंत, और बसंत के बाद ग्रीष्म ऋतु ने जब दस्तक दी तो बफलो में आने वाले पर्यटकों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ गई. आने वाले विदेशी बढ़े तो अमेरिका के इस नगर में फलों की खपत भी बढ़ गई. पर्यटक चाहे जहाँ से आयें, वे पानी की इस अलौकिक खान का नज़ारा देखने ज़रूर आते. नायग्रा देखने आते तो उन्हें उस इमारत में भी आना पड़ता जहाँ से बुकिंग के बाद उनकी इस दुर्दमनीय झरने को देखने की ललक-भरी यात्रा शुरू होती. इमारत के स्टोर्स और केफेटेरिया माल और मनुष्यों से लबालब रहने लगे.
रात के दो- तीन बजे तक पीले और सफ़ेद रंग की सुन्दर सी लॉरी इमारत की ऊपरी मंजिल पर फल के डिब्बों के अम्बार लगा देती . तीन मजदूर लड़के लिफ्ट से ढो-ढो कर न जाने कब तक उन डिब्बों को लाते रहते .इस तरह सैलानियों की आवभगत का इंतजाम करते-करते बफलो की उस इमारत में न दिन दीखता न रात. रात को भी पर्यटकों की आँखों को लुभाने वाली रंग-बिरंगी रौशनी शहर भर में फैली रहती. झरने के आसपास तो विशेष रूप से. और झरने को चारों ओर से घेरता बगीचा तो ऐसे जगमगाता जैसे स्वर्ग से इन्द्र टॉर्च डाल कर देख रहे हों कि कहीं धरती पर मेरे लोक से भी लुभावना मंज़र तो नहीं खड़ा हो गया ?
उसी बफलो में एक रात एक जोड़ा अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ एक भारतीय रेस्तरां में खाना खाने घुसा.[जारी...]
तिनकों से बने डिब्बे का यह नमूना उसी फोटो के आधार पर तैयार किया गया था, जिसे फल-व्यापारी की बेटी कभी अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान खुद खींच कर लाई थी.इस डिब्बे की खासियत यह थी कि इसमें रखे फल पेड़ पर लगे फलों की तरह ही दीखते थे, मानो उन्हें वहीँ समेट कर तिनकों में लपेटा गया हो.व्यापारी को यह डिब्बा खूब पसंद आया, और चंद दिनों बाद वह उसके द्वारा दुनिया-भर में भेजे जाने वाले फलों की पहचान ही बन गया. डिब्बे को देख कर ऐसा आभास होता था, जैसे ताज़े फलों की खुशबू तक डिब्बे में महफूज़ हो.
दुनिया चल रही है. यह न केवल चल रही है, बल्कि इसकी रफ़्तार भी दिन-दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है.इसी का नतीजा था कि पतझड़ के बाद बसंत, और बसंत के बाद ग्रीष्म ऋतु ने जब दस्तक दी तो बफलो में आने वाले पर्यटकों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ गई. आने वाले विदेशी बढ़े तो अमेरिका के इस नगर में फलों की खपत भी बढ़ गई. पर्यटक चाहे जहाँ से आयें, वे पानी की इस अलौकिक खान का नज़ारा देखने ज़रूर आते. नायग्रा देखने आते तो उन्हें उस इमारत में भी आना पड़ता जहाँ से बुकिंग के बाद उनकी इस दुर्दमनीय झरने को देखने की ललक-भरी यात्रा शुरू होती. इमारत के स्टोर्स और केफेटेरिया माल और मनुष्यों से लबालब रहने लगे.
रात के दो- तीन बजे तक पीले और सफ़ेद रंग की सुन्दर सी लॉरी इमारत की ऊपरी मंजिल पर फल के डिब्बों के अम्बार लगा देती . तीन मजदूर लड़के लिफ्ट से ढो-ढो कर न जाने कब तक उन डिब्बों को लाते रहते .इस तरह सैलानियों की आवभगत का इंतजाम करते-करते बफलो की उस इमारत में न दिन दीखता न रात. रात को भी पर्यटकों की आँखों को लुभाने वाली रंग-बिरंगी रौशनी शहर भर में फैली रहती. झरने के आसपास तो विशेष रूप से. और झरने को चारों ओर से घेरता बगीचा तो ऐसे जगमगाता जैसे स्वर्ग से इन्द्र टॉर्च डाल कर देख रहे हों कि कहीं धरती पर मेरे लोक से भी लुभावना मंज़र तो नहीं खड़ा हो गया ?
उसी बफलो में एक रात एक जोड़ा अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ एक भारतीय रेस्तरां में खाना खाने घुसा.[जारी...]
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