बहुत आशा, उल्लास, उमंग,जोश, उत्साह, जिजीविषा के दिन बिता कर किन्ज़ान और अर्नेस्ट जब बफलो वापस पहुंचे, तो पड़ौसी मित्रों की देख-रेख में लेटी रस्बी को पाया, और साथ ही पाई यह खबर भी, कि रस्बी को ज़बरदस्त हार्टअटैक होकर चुका है. उनके आते ही मित्र हितैषी और अर्नेस्ट भी, सभी चले गए, और किसी अपराधी की भांति सर झुका कर किन्ज़ान ने उन्हें विदा किया.
रस्बी में बेटे के लौटते ही कुछ चेतना आ गई, और वह घर के छोटे-मोटे कामों के लिए उठने लगी. उसके मन में भीतर ही भीतर आशा की एक नामालूम सी लौ भी दिपने लगी कि शायद अब किन्ज़ान कुछ दिन अपने ज़ुनून के साये से निकल कर रह सके.
घर की फिजां में उठते-बैठते जैसे कोई आवाज़ गूंजती थी- "मौत को साथी बनाया, चाँद-सूरज जैसे दोस्त, कौन था फिर किस से हम आराम करना सीखते?" दो दिन जैसे-तैसे बीते, कि घर की दीवारों पर पतझड़ के बाद की कोपलों की तरह किन्ज़ान के सपने उगने लगे. रस्बी की उम्मीदों पर फिर से बर्फ जमने लगी.
एक दिन दोपहर में किन्ज़ान को बिना बताये रस्बी बाज़ार गई, और किन्ज़ान के दिवंगत पिता की एक बड़ी सी तस्वीर बहुत सुन्दर फ्रेम में जड़वा कर लाई. किन्ज़ान से कोई मदद लिए बिना उसने दीवार पर आदर से उसे टांगा. किन्ज़ान भी आश्चर्य से उसे देखने लगा, क्योंकि उसने यह तस्वीर पहले कभी देखी नहीं थी.वह एकटक तस्वीर को देखता रहा, उसे कुछ न सूझा कि तस्वीर के बारे में वह माँ से क्या कहे. किन्तु उसके कुछ बोलने से पहले ही खुद रस्बी बोल पड़ी- उन्होंने देश के लिए जान दे दी,कोई तो उन्हें याद रखे.
किन्ज़ान ने तस्वीर की ओर देख कर एकबार अपने सीने और आँखों पर हाथ लगाया. वह इस बात से बिलकुल बेखबर था कि उसकी माँ की बात में कोई व्यंग्य छिपा है. उसे तो माँ की बात से उलटे और जोश आ गया और वह उन्हें अखबार में छपी वह तस्वीरें दिखाने लगा, जो न्यूयॉर्क में छपी थीं . माँ ने उस तस्वीर को ऐसे देखा, जैसे किन्ज़ान ने उन्हें उनकी तबियत बिगड़ने के दौरान खींचा गया एक्स -रे दिखाया हो.
बफलो में भी न्यूयॉर्क के मीडिया में छपी खबर का असर कहीं-कहीं दिखाई दिया, जब किन्ज़ान की नौका को पहचान कर कुछ बच्चे कौतुहल से उसके इर्द-गिर्द जमा हुए.
एक रात बहुत देर से खाना खाने के बाद किन्ज़ान जब घर से निकला तो रस्बी का माथा ठनका. वह जाते हुए किन्ज़ान से कुछ पूछ तो न सकी, मगर उसका जी जोर-जोर से घबराने लगा.उसने एक बड़े से स्कार्फ से अपने सर पर पट्टी बाँधी, और फिर काला चश्मा लगा, अपने आंसुओं को पोंछती हुई उसके पीछे-पीछे पैदल ही निकल पड़ी. किन्ज़ान बहुत मंथर गति से टहलता हुआ जा रहा था.पूरा शहर रंग-बिरंगी लाइटों में नहाया हुआ था. दूर गिरते जल-प्रपात के छींटों का अंधड़ पानी भरे बादलों के झुरमुट की शक्ल में शहर के आलम को भिगो रहा था...[जारी...]
रस्बी में बेटे के लौटते ही कुछ चेतना आ गई, और वह घर के छोटे-मोटे कामों के लिए उठने लगी. उसके मन में भीतर ही भीतर आशा की एक नामालूम सी लौ भी दिपने लगी कि शायद अब किन्ज़ान कुछ दिन अपने ज़ुनून के साये से निकल कर रह सके.
घर की फिजां में उठते-बैठते जैसे कोई आवाज़ गूंजती थी- "मौत को साथी बनाया, चाँद-सूरज जैसे दोस्त, कौन था फिर किस से हम आराम करना सीखते?" दो दिन जैसे-तैसे बीते, कि घर की दीवारों पर पतझड़ के बाद की कोपलों की तरह किन्ज़ान के सपने उगने लगे. रस्बी की उम्मीदों पर फिर से बर्फ जमने लगी.
एक दिन दोपहर में किन्ज़ान को बिना बताये रस्बी बाज़ार गई, और किन्ज़ान के दिवंगत पिता की एक बड़ी सी तस्वीर बहुत सुन्दर फ्रेम में जड़वा कर लाई. किन्ज़ान से कोई मदद लिए बिना उसने दीवार पर आदर से उसे टांगा. किन्ज़ान भी आश्चर्य से उसे देखने लगा, क्योंकि उसने यह तस्वीर पहले कभी देखी नहीं थी.वह एकटक तस्वीर को देखता रहा, उसे कुछ न सूझा कि तस्वीर के बारे में वह माँ से क्या कहे. किन्तु उसके कुछ बोलने से पहले ही खुद रस्बी बोल पड़ी- उन्होंने देश के लिए जान दे दी,कोई तो उन्हें याद रखे.
किन्ज़ान ने तस्वीर की ओर देख कर एकबार अपने सीने और आँखों पर हाथ लगाया. वह इस बात से बिलकुल बेखबर था कि उसकी माँ की बात में कोई व्यंग्य छिपा है. उसे तो माँ की बात से उलटे और जोश आ गया और वह उन्हें अखबार में छपी वह तस्वीरें दिखाने लगा, जो न्यूयॉर्क में छपी थीं . माँ ने उस तस्वीर को ऐसे देखा, जैसे किन्ज़ान ने उन्हें उनकी तबियत बिगड़ने के दौरान खींचा गया एक्स -रे दिखाया हो.
बफलो में भी न्यूयॉर्क के मीडिया में छपी खबर का असर कहीं-कहीं दिखाई दिया, जब किन्ज़ान की नौका को पहचान कर कुछ बच्चे कौतुहल से उसके इर्द-गिर्द जमा हुए.
एक रात बहुत देर से खाना खाने के बाद किन्ज़ान जब घर से निकला तो रस्बी का माथा ठनका. वह जाते हुए किन्ज़ान से कुछ पूछ तो न सकी, मगर उसका जी जोर-जोर से घबराने लगा.उसने एक बड़े से स्कार्फ से अपने सर पर पट्टी बाँधी, और फिर काला चश्मा लगा, अपने आंसुओं को पोंछती हुई उसके पीछे-पीछे पैदल ही निकल पड़ी. किन्ज़ान बहुत मंथर गति से टहलता हुआ जा रहा था.पूरा शहर रंग-बिरंगी लाइटों में नहाया हुआ था. दूर गिरते जल-प्रपात के छींटों का अंधड़ पानी भरे बादलों के झुरमुट की शक्ल में शहर के आलम को भिगो रहा था...[जारी...]
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