Saturday, March 31, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 24 ]

     रस्बी के मन में हाहाकार सा मच गया. फिर भी उसकी हिम्मत नहीं हुई कि इतने अजनबियों के सामने आकर किसी भी तरीके से किन्ज़ान को रोक-टोक करके ज़लील कर सके. वह ज़बरन अपने आंसू रोक कर पेड़ के पीछे छिप कर खड़ी हो गई और एकटक सारा तमाशा देखने लगी. एकबार उस के दिल में यह भी आया कि ईश्वर उसे  यदि कुछ देना ही चाहेगा तो शायद किन्ज़ान को उसके मिशन में कामयाबी ही देदे. लेकिन यह ख्याल जैसे आया, वैसे ही तितर-बितर भी हो गया, क्योंकि तभी उसकी आखों के सामने आकाश से गिरता पानी का वह दैत्याकार झरना किसी भीगे रजतपट की तरह फ़ैल गया.
     ये क्या ? रस्बी की दुनिया लुट गई.
     हाथों में रंगीन रूमाल लिए दोस्तों और उन महिलाओं ने किन्ज़ान को रवाना किया...उसकी पीली-सुनहरी-केसरिया  नौका विशालकाय बॉल की तरह किनारे के उथले पानी में हिचकोले खाने लगी.
     एक तीखे चीत्कार के साथ रस्बी पलटी और अपने घोड़े पर सवार होकर विपरीत दिशा में बेतहाशा दौड़ने लगी.बहते पानी की गर्ज़ना में तमाम आवाजें ज़ज्ब हो गईं, रस्बी की तमाम उम्मीदों की तरह.
     पानी की रफ़्तार किनारों पर कम, किन्तु मझधार में बेहद तीव्र थी. रस्बी के मानस में सब गड्ड-मड्ड हो गया. वह दिशाहीन सी, सैंकड़ों तूफानों के मुकाबले तांडव करते शिव की  तरह कायनात से लड़ रही थी.किसी को कुछ पता नहीं था, किसी सूरज से टूट कर कोई उल्का सी गिरी थी, जिसके भीषण दोलन से नए ध्रुवीकरण जन्मने थे, क्या बचना था, क्या बीतना था, सब समय के गर्भ में था. अथाह  पानी किसी अभिशप्त वीतरागी चिर-संन्यासी सा अपनी धुन में गिर रहा था. मानो विधाता  की बनाई सृष्टि को धो डालने का पावन कार्य उसी को मिला हो.
     आसमान में चहचहाते परिंदे भी एक नज़र उस अलौकिक नौका पर डालने से खुद को रोक नहीं पा रहे थे.जहाँ से नौका अभियान शुरू हुआ था, वहां आसपास के पेड़ों पर पोस्टरों की शक्ल में लिखी इबारतें, प्रार्थनाएं, और कामनाएं कसौटी पर थीं. किन्ज़ान के चित्र के साथ "जब हम दुनिया से लौट कर जायेंगे, तो आकाश में अगवानी करता खुदा उन  साँसों को नहीं गिनेगा,जो हमने यहाँ लीं, बल्कि उस इबारत को पढ़ने की कोशिश करेगा जो हम अपने क़दमों के निशानों से धरती के सीने पर लिख जायेंगे" लिखी हुई पंक्तियों वाला कागज़ किसी कटी पतंग की तरह हरे-भरे जंगल में मंडरा रहा था. कुछ कागजों पर किन्ज़ान के हाथ से लिखी अपनी स्कूल-प्रार्थना की पंक्तियाँ भी थीं.
     आसमान नहीं चाहता था कि सूरज उस खौफ़नाक लम्हे की तस्वीर उतारे, इसलिए उसने दो मुट्ठी बादल सूरज पर बिखेर कर उसे धुंधला कर दिया था. थोड़ी देर के लिए सारा आकाश सांस रोके स्तब्ध सा रुक गया था. दुनिया की किसी दाई  ने किसी प्रसूता माँ के गर्भ से जुड़ी उसके शिशु की नाल अब तक इस तरह कभी न काटी थी...[जारी...]     

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