दोपहर बाद घर लौट कर किन्ज़ान के दोस्त अर्नेस्ट ने ट्रायल के परिणाम रस्बी आंटी को बताने चाहे तो माहौल बिलकुल ऐसा था, मानो कोई मीट-मर्चेंट बकरे को प्रफुल्लित होकर बता रहा हो, कि वह कौन सी बोटी किस तरह हलाल करेगा. निश्चय ही यह सब अगर अर्नेस्ट की जगह किन्ज़ान बता रहा होता तो रस्बी या तो एक थप्पड़ उसे रसीद करती या फिर पास की दीवार से अपना सर ज़रूर टकरा देती. लेकिन अर्नेस्ट की बात उसे ऐसे सुननी पड़ी, जैसे किसी डॉक्टर के हाथों कोई नन्ही मासूम बच्ची कड़वा सिरप आँख बंद कर के पी रही हो.
उधर भोला अर्नेस्ट इस इंतज़ार में था, कि अब आंटी उन्हें कुछ खाने-पीने को देंगी, और किन्ज़ान कनखियों से माँ के सपाट चेहरे पर आते-जाते रंगों की मशाल की तपन महसूस कर रहा था. उसे हैरानी होती थी कि माँ उसके कुछ नया करने के जज़्बे को समझती क्यों नहीं ?
लेकिन उसी शाम अपनी धुन के पक्के किन्ज़ान ने न्यूयॉर्क जाने की तैय्यारी शुरू कर दी. एक कोरियर कम्पनी से अपनी नौका को भेजने का प्रयास खर्चीला, मगर संभव जान पड़ा. उधर किन्ज़ान और अर्नेस्ट ने अपनी रेल यात्रा की तैय्यारी कर डाली.
न्यूयॉर्क केवल उनकी सुविधा की मंजिल नहीं था, बल्कि महादेश का यह महानगर महान सपनों का रंगमंच भी था, यह किन्ज़ान को दूसरे दिन से ही आभास होने लगा.इसे संयोग ही कहा जायेगा कि न्यूयॉर्क के एक अखबार के रिपोर्टर ने पिछले दिनों बफलो में उनके ट्रायल के दौरान उफनती नदी के हहराते प्रवाह में लहरों के करेंट से पंजा लड़ाते किन्ज़ान का फोटो भी खींच लिया. रंगीन बॉल-नुमा नौका अखबार के पन्ने पर तैर कर न्यूयॉर्क के घर-घर में समां गई, और किन्ज़ान को एक संभावित जांबाज़ खिलाड़ी के रूप में शहर पहले ही जान गया.
और अगले दिन रॉकफेलर विश्वविद्यालय के समीप हडसन की लहरों की ताल पर बिजली की गति से एक ग्लोबनुमा नौका के पीछे पानी पर फिसलते किन्ज़ान को देखने जगह-जगह भीड़ जमा हो गई. कोई हाथ हिला कर उसका अभिवादन कर रहा था तो कोई उसके किनारे पर आने का इंतज़ार कर रहा था. नदी किनारे पार्कों में टहलते एक से एक उम्दा नस्लों के कुत्ते तक कौतुक से रेलिंग पर पाँव टिकाये किन्ज़ान की नौका को पानी के गगन-चुम्बी छींटे उड़ाते देखने रुक गए. जिस राह से सुबह से शाम तक तरह-तरह के जहाज और नौकाएं दोनों ओर की अट्टालिकाओं की ऊंचाइयों से इर्ष्या करते पानी का सीना चीरते गुजरते थे, वहां से एक दिन नायग्रा फाल्स का मान-मर्दन करने का हैरत-भरा मंसूबा लिए एक किशोर को गुजरते हुए भी हजारों लोगों ने देखा. लोगों की भावनाएं और शुभकामनाएं दोनों ओर से बरसीं.
अगले दिन किन्ज़ान को मीडिया का एक तोहफ़ा और मिला...[जारी...]
उधर भोला अर्नेस्ट इस इंतज़ार में था, कि अब आंटी उन्हें कुछ खाने-पीने को देंगी, और किन्ज़ान कनखियों से माँ के सपाट चेहरे पर आते-जाते रंगों की मशाल की तपन महसूस कर रहा था. उसे हैरानी होती थी कि माँ उसके कुछ नया करने के जज़्बे को समझती क्यों नहीं ?
लेकिन उसी शाम अपनी धुन के पक्के किन्ज़ान ने न्यूयॉर्क जाने की तैय्यारी शुरू कर दी. एक कोरियर कम्पनी से अपनी नौका को भेजने का प्रयास खर्चीला, मगर संभव जान पड़ा. उधर किन्ज़ान और अर्नेस्ट ने अपनी रेल यात्रा की तैय्यारी कर डाली.
न्यूयॉर्क केवल उनकी सुविधा की मंजिल नहीं था, बल्कि महादेश का यह महानगर महान सपनों का रंगमंच भी था, यह किन्ज़ान को दूसरे दिन से ही आभास होने लगा.इसे संयोग ही कहा जायेगा कि न्यूयॉर्क के एक अखबार के रिपोर्टर ने पिछले दिनों बफलो में उनके ट्रायल के दौरान उफनती नदी के हहराते प्रवाह में लहरों के करेंट से पंजा लड़ाते किन्ज़ान का फोटो भी खींच लिया. रंगीन बॉल-नुमा नौका अखबार के पन्ने पर तैर कर न्यूयॉर्क के घर-घर में समां गई, और किन्ज़ान को एक संभावित जांबाज़ खिलाड़ी के रूप में शहर पहले ही जान गया.
और अगले दिन रॉकफेलर विश्वविद्यालय के समीप हडसन की लहरों की ताल पर बिजली की गति से एक ग्लोबनुमा नौका के पीछे पानी पर फिसलते किन्ज़ान को देखने जगह-जगह भीड़ जमा हो गई. कोई हाथ हिला कर उसका अभिवादन कर रहा था तो कोई उसके किनारे पर आने का इंतज़ार कर रहा था. नदी किनारे पार्कों में टहलते एक से एक उम्दा नस्लों के कुत्ते तक कौतुक से रेलिंग पर पाँव टिकाये किन्ज़ान की नौका को पानी के गगन-चुम्बी छींटे उड़ाते देखने रुक गए. जिस राह से सुबह से शाम तक तरह-तरह के जहाज और नौकाएं दोनों ओर की अट्टालिकाओं की ऊंचाइयों से इर्ष्या करते पानी का सीना चीरते गुजरते थे, वहां से एक दिन नायग्रा फाल्स का मान-मर्दन करने का हैरत-भरा मंसूबा लिए एक किशोर को गुजरते हुए भी हजारों लोगों ने देखा. लोगों की भावनाएं और शुभकामनाएं दोनों ओर से बरसीं.
अगले दिन किन्ज़ान को मीडिया का एक तोहफ़ा और मिला...[जारी...]
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