उस शाम कई लोगों को इमली के आकार वाली छोटी केसरिया मछली दिखाई दी, जो अपने शरीर से धुआं छोड़ कर साफ़ पानी को मटमैला बनाती है, और आँखों के लिए उथले पानी और गहरे पानी के बीच भ्रम पैदा करती है.
लेकिन जल-प्रपात के बाद कुछ दूर पर बने वर्लपूल की उद्दाम लहरों के बीच जब रस्बी को भी उस मछली की झलक दिखाई दी तो उसकी आँखें पथरा गईं.
वह कई घंटों से किसी पागल की तरह वहां अकेली बैठी उस नहर-नुमा जलाशय में नज़रें गढ़ाए थी. उसे पीले-केसरिया रंग की तार-तार हुई चादर जब पानी के वेग में थपेड़े खाती दिखी तो वह किसी ध्यानमग्न साधू की भांति तन्द्रावश चलती हुई किनारे पर आई और उसने पानी में छलांग लगा दी.
रस्बी ने जल समाधि लेली.
वह गहरे पानी के जल-जंतुओं के भोज के लिए नियति द्वारा परोस दी गई.
अगले दिन स्थानीय अख़बारों में किन्ज़ान के असफ़ल अभियान की एक छोटी सी खबर छपी.
रात काफी गहरा चुकी थी. बच्चों के माता-पिता को इस बात का घोर आश्चर्य हो रहा था कि आमतौर पर जल्दी सो जाने वाले बच्चे नाना से कहानी सुनने में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें दोपहर से शाम, और शाम से रात हो जाने का कोई आभास न हुआ.सभी को किन्ज़ान की कहानी का अंत जानने की ऐसी उत्सुकता थी कि भूख-प्यास का भी ख्याल न रहा. बच्चों और उनके माता-पिता ने कुछ समय पहले ही घूम कर बफलो नगर के वे सारे स्थान देखे थे, इसलिए उन्हें बिलकुल ऐसा अहसास हो रहा था , जैसे उनके बीच से ही कोई घटना घट कर सामने आ गई हो. कहानी के इस विराम के बाद खुद नाना को भी आभास हो रहा था कि उनके मेहमानों ने दोपहर से कुछ खाया नहीं है.
तभी दरवाज़ा खुला और दोनों बहनें, जो उस भारतीय परिवार को नाना के यहाँ छोड़ कर नज़दीक ही अपने फ़्लैट में चली गईं थीं, हाथ में एक बड़ी टोकरी में डिनर का सारा सामान लिए हाज़िर हुईं.
थोड़ी ही देर में सब भोजन की मेज़ पर थे. बहनें बता रही थीं, कि आज उन्होंने खुद भारतीय तरीके से सब्जी बनाने की कोशिश की है. इस बात से बच्चों की उत्सुकता भी बढ़ गई और भूख भी. भोजन के साथ-साथ वार्तालाप भी चलता रहा. छोटी बहन ने बताया कि वह हर सप्ताह जब भी छुट्टी में घर आती है तो एक बार नाना के घर के सामने वाले पेड़ पर टंगे उस घोंसले को देखने ज़रूर जाती है, जिसे नाना ने वहां खुद बना कर लगाया है.नाना कहते हैं, कि उस घोंसले में एक दिन अपने आप अंडे आ जायेंगे. सभी की दिलचस्पी यह जानने में रहती थी कि अंडे कब और कैसे आयेंगे?
लेकिन उस भारतीय परिवार की छोटी गुड़िया को उस घोंसले का ज़िक्र अच्छा नहीं लगा.उसे याद आ गया कि उस घोंसले के चित्र बने डिब्बे में कैसे अपने आप आग लगी थी, और उसका हाथ जलते-जलते बचा था. वह एक बार फिर, वह सब याद आ जाने से डर गई.उसकी आँखें लाल होने लगीं, और उसे तेज़ बुखार भी चढ़ने लगा...[जारी...]
लेकिन जल-प्रपात के बाद कुछ दूर पर बने वर्लपूल की उद्दाम लहरों के बीच जब रस्बी को भी उस मछली की झलक दिखाई दी तो उसकी आँखें पथरा गईं.
वह कई घंटों से किसी पागल की तरह वहां अकेली बैठी उस नहर-नुमा जलाशय में नज़रें गढ़ाए थी. उसे पीले-केसरिया रंग की तार-तार हुई चादर जब पानी के वेग में थपेड़े खाती दिखी तो वह किसी ध्यानमग्न साधू की भांति तन्द्रावश चलती हुई किनारे पर आई और उसने पानी में छलांग लगा दी.
रस्बी ने जल समाधि लेली.
वह गहरे पानी के जल-जंतुओं के भोज के लिए नियति द्वारा परोस दी गई.
अगले दिन स्थानीय अख़बारों में किन्ज़ान के असफ़ल अभियान की एक छोटी सी खबर छपी.
रात काफी गहरा चुकी थी. बच्चों के माता-पिता को इस बात का घोर आश्चर्य हो रहा था कि आमतौर पर जल्दी सो जाने वाले बच्चे नाना से कहानी सुनने में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें दोपहर से शाम, और शाम से रात हो जाने का कोई आभास न हुआ.सभी को किन्ज़ान की कहानी का अंत जानने की ऐसी उत्सुकता थी कि भूख-प्यास का भी ख्याल न रहा. बच्चों और उनके माता-पिता ने कुछ समय पहले ही घूम कर बफलो नगर के वे सारे स्थान देखे थे, इसलिए उन्हें बिलकुल ऐसा अहसास हो रहा था , जैसे उनके बीच से ही कोई घटना घट कर सामने आ गई हो. कहानी के इस विराम के बाद खुद नाना को भी आभास हो रहा था कि उनके मेहमानों ने दोपहर से कुछ खाया नहीं है.
तभी दरवाज़ा खुला और दोनों बहनें, जो उस भारतीय परिवार को नाना के यहाँ छोड़ कर नज़दीक ही अपने फ़्लैट में चली गईं थीं, हाथ में एक बड़ी टोकरी में डिनर का सारा सामान लिए हाज़िर हुईं.
थोड़ी ही देर में सब भोजन की मेज़ पर थे. बहनें बता रही थीं, कि आज उन्होंने खुद भारतीय तरीके से सब्जी बनाने की कोशिश की है. इस बात से बच्चों की उत्सुकता भी बढ़ गई और भूख भी. भोजन के साथ-साथ वार्तालाप भी चलता रहा. छोटी बहन ने बताया कि वह हर सप्ताह जब भी छुट्टी में घर आती है तो एक बार नाना के घर के सामने वाले पेड़ पर टंगे उस घोंसले को देखने ज़रूर जाती है, जिसे नाना ने वहां खुद बना कर लगाया है.नाना कहते हैं, कि उस घोंसले में एक दिन अपने आप अंडे आ जायेंगे. सभी की दिलचस्पी यह जानने में रहती थी कि अंडे कब और कैसे आयेंगे?
लेकिन उस भारतीय परिवार की छोटी गुड़िया को उस घोंसले का ज़िक्र अच्छा नहीं लगा.उसे याद आ गया कि उस घोंसले के चित्र बने डिब्बे में कैसे अपने आप आग लगी थी, और उसका हाथ जलते-जलते बचा था. वह एक बार फिर, वह सब याद आ जाने से डर गई.उसकी आँखें लाल होने लगीं, और उसे तेज़ बुखार भी चढ़ने लगा...[जारी...]
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