Monday, March 12, 2012

सूखी धूप में भीगा रजतपट [ भाग 4 ]

     चारों में से किसी की रूचि रेस्तरां की साज-सज्जा को देखने में नहीं थी. शायद सुबह से घूमते रहने के कारण थके हुए भी थे और भूखे भी. लगता था जैसे जल्दी से खाना खाकर होटल के अपने कमरे में लौटना और सो जाना चाहते हों. वेटर द्वारा रखा गया मेनू भी सभी ने अनमने भाव से देखा. बच्चों के दिल की बात माँ समझती है, शायद इसी ख्याल से पिता ने कोई दखल नहीं दिया, और माँ ने सभी के लिए साधारण दक्षिण भारतीय भोजन का आदेश दे दिया.खाना आने में ज्यादा देर नहीं लगी.
     तभी एक ऐसी घटना घटी कि बच्चों के माता-पिता दोनों बुरी तरह चौंक गए. सात वर्षीय पुत्र ने खाने की थाली एक ओर सरका कर पानी से भरा बड़ा जग हाथ में उठाया और उसे सीधे मुंह से लगा कर गटागट पानी पीने लगा. तीनों एक साथ चौंके, क्योंकि बेटा इतना नासमझ नहीं था जो होटल में जग को सीधे मुंह लगा कर पानी पिए. आखिर वह एक अच्छे  स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा था.उसकी आदतें भी बिगड़े बच्चों जैसी नहीं थीं .फिर घोर अचम्भे की बात यह थी कि उस छोटे से बच्चे ने लगभग तीन लीटर पानी एक सांस में पी डाला. माँ, बाप और हमउम्र बहन हैरानी से उसे देखते रह गए. एक वेटर के आ जाने, और आश्चर्य से लड़के को देखते रहने के कारण पूरा परिवार शर्मिंदा भी हुआ. पर वेटर को वह घटना हैरानी से ज्यादा मनोरंजन की लगी. वह जग उठा कर उसमें फिर से पानी भर कर लाने के लिए दौड़ा.
     लेकिन जब तक वेटर पानी लेकर आया तब तक देर हो चुकी थी, बच्चे के माँ-बाप सारा माजरा समझते, इसके पहले ही बच्चे की आँखें बंद हो गईं, और वह भरी नींद के बोझ से एक ओर लुढ़क गया. माँ ने तुरंत उसे अपने पास खींच कर अपनी गोद में लिटा लिया और अपने आँचल से हवा करने लगी.नन्ही बच्ची इस अकस्मात् घटी घटना पर भयभीत हो गई. 
     खाना आया, पर बिना किसी से कुछ भी कहे  वह परिवार वहां से उठ गया.खाना किसी ने न खाया. बिल चुका दिया गया.सोते हुए बेटे को पिता ने अब अपनी गोद में उठा कर कंधे से लगा लिया. बीच-बीच में माँ बेटे को जगाने की कोशिश ज़रूर करती, पर बेटा जैसे बेहोशी की गहरी नींद में था. 
     जिस होटल में वह परिवार ठहरा था, वह ज्यादा दूर नहीं था. वे लोग होटल में लौट गए. कमरे में पहुँच कर लड़के को बिस्तर पर लिटा दिया गया. बच्चा केवल गहरी नींद में ही था, और किसी तरह से उसकी तबियत नहीं बिगड़ी थी. उसे आराम से सोते देख कर अब परिवार का भय और विस्मय थोड़ा कम हुआ, साथ ही भूख ने भी दस्तक दी.रात भी गहरी हो चली थी. 
     माँ ने यह तय किया कि कुछ फल मँगा लिए जाएँ.नाश्ते का थोड़ा सामान उनके पास पहले से भी मौजूद था. थोड़ी ही देर में एक वेटर एक छोटी सी ट्रॉली लेकर कमरे में प्रविष्ट हुआ. ट्रॉली पर जूस के गिलासों के साथ एक सुन्दर से डब्बे में कुछ फल भी थे. छोटी बच्ची ने उस सुन्दर डिब्बे को देखा तो खुश होकर तुरंत ट्रॉली के पास चली आई. इतना सुन्दर डिब्बा उसने पहले कभी-कहीं देखा न था. ऐसा लगता था, मानो डिब्बा क्या था, किसी चिड़िया के घोंसले में तिनकों के बीच ताज़े फल रखे थे. [ जारी...]             

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...