...एक रात, जब किन्ज़ान आराम से अपने कमरे में सो रहा था, उसकी माँ रस्बी चुपचाप अपने बिस्तर से उठी और किसी चोर की भांति किन्ज़ान के कमरे की ओर देखती हुई अपनी अलमारी की ओर बढ़ी. उसने कपड़ों के बीच रखी कोई छोटी काली सी वस्तु झटपट निकाल कर अपनी जेब में छिपाई, और सर पर अपना पुराना बड़ा हैट लगा कर घर से बाहर निकल गई.वह रात के लगभग तीन घंटे बिता कर लौटी. आने के बाद, अपने कमरे में ऐसे सो गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो.
सुबह जब किन्ज़ान ने आँखें खोलीं, तो वह चौंक गया. उसके चारों ओर चार अस्थि-पिंजर रखे थे, और इन नर कंकालों के ऊपर, चेहरे की जगह उसकी माँ रस्बी के चेहरे के चित्र चस्पां थे.इतना ही नहीं, मेज़ पर रखे टेप पर मातमी धुन बज रही थी. किन्ज़ान बुरी तरह उदास हो गया. लेकिन उसने धैर्य न खोया, वह चुपचाप अपने दैनिक कामों में लगा रहा. उस दिन उसने लंच नहीं खाया. न ही रस्बी को उसने भोजन करते देखा.
वह रात जिस तरह आई, उसी तरह बीत भी गई. किन्ज़ान का न दिल पसीजा, और न इरादा. वह उसी तरह अपनी तैयारी में लगा रहा.
फिर एक दिन उसने अपनी माँ को अपने सामान की पैकिंग करते भी देखा. वह अच्छी तरह जानता था कि उसकी माँ के पास घर छोड़ कर जाने के लिए कोई और दूसरी जगह नहीं है.एक बार के लिए उसका जिगर ज़रा सा हिला, क्योंकि उसने कभी भी अपनी माँ के लिए 'होम लैस' होकर घूमने की कल्पना नहीं की थी. उसके पिता, क्योंकि उसकी छोटी सी उम्र से ही सेना की नौकरी के कारण घर से बाहर रहे थे, उसे पिता के बारे में कोई कल्पना नहीं थी, किन्तु माँ को उसने किचन में भोजन बनाते,कमरे में सफाई करते, मार्केट से राशन लाते, उसके कपड़े और बिस्तर संवारते, और उसकी बेचैनी में दवाओं से तीमारदारी करते बचपन से देखा था, अतः वह सोच न पाया कि ऐसे शख्स का गृह-विहीन होकर घूमना क्या होता है.वह उदासीन न रह सका, उसने चुपचाप जाकर माँ का वह बैग खोल कर पलट दिया, जिसमें उसने अपने कपड़े रखे थे. फिर चुपचाप आकर अपने काम में लग गया. माँ एक बार जोर से खीजी, लेकिन फिर सामान को उसी तरह पड़ा छोड़ कर घर के दूसरे कामों में लग गई.
किन्ज़ान के कमरे में बीचों-बीच लोहे के तारों का वह ढांचा फैला पड़ा था, जिस पर रंगीन प्लास्टिक को मजबूती से मढ़ा जाना था. इस तरह तैयार हो रही थी वह जानलेवा बॉल, जिससे रस्बी की जिंदगी को हार जाने का खतरा था और किन्ज़ान की जिंदगी को जीत जाने की उम्मीद . वक्त तमाशबीन था.
रस्बी को चार साल पहले की वह घटना अकस्मात् याद आई, जब एक दिन उसके घर पर न होने पर किन्ज़ान अपने साथ स्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की को घर ले आया था.तेरह साल के नासमझ किशोर की समझ से उस दिन रस्बी बुरी तरह डर गई थी...[जारी...]
सुबह जब किन्ज़ान ने आँखें खोलीं, तो वह चौंक गया. उसके चारों ओर चार अस्थि-पिंजर रखे थे, और इन नर कंकालों के ऊपर, चेहरे की जगह उसकी माँ रस्बी के चेहरे के चित्र चस्पां थे.इतना ही नहीं, मेज़ पर रखे टेप पर मातमी धुन बज रही थी. किन्ज़ान बुरी तरह उदास हो गया. लेकिन उसने धैर्य न खोया, वह चुपचाप अपने दैनिक कामों में लगा रहा. उस दिन उसने लंच नहीं खाया. न ही रस्बी को उसने भोजन करते देखा.
वह रात जिस तरह आई, उसी तरह बीत भी गई. किन्ज़ान का न दिल पसीजा, और न इरादा. वह उसी तरह अपनी तैयारी में लगा रहा.
फिर एक दिन उसने अपनी माँ को अपने सामान की पैकिंग करते भी देखा. वह अच्छी तरह जानता था कि उसकी माँ के पास घर छोड़ कर जाने के लिए कोई और दूसरी जगह नहीं है.एक बार के लिए उसका जिगर ज़रा सा हिला, क्योंकि उसने कभी भी अपनी माँ के लिए 'होम लैस' होकर घूमने की कल्पना नहीं की थी. उसके पिता, क्योंकि उसकी छोटी सी उम्र से ही सेना की नौकरी के कारण घर से बाहर रहे थे, उसे पिता के बारे में कोई कल्पना नहीं थी, किन्तु माँ को उसने किचन में भोजन बनाते,कमरे में सफाई करते, मार्केट से राशन लाते, उसके कपड़े और बिस्तर संवारते, और उसकी बेचैनी में दवाओं से तीमारदारी करते बचपन से देखा था, अतः वह सोच न पाया कि ऐसे शख्स का गृह-विहीन होकर घूमना क्या होता है.वह उदासीन न रह सका, उसने चुपचाप जाकर माँ का वह बैग खोल कर पलट दिया, जिसमें उसने अपने कपड़े रखे थे. फिर चुपचाप आकर अपने काम में लग गया. माँ एक बार जोर से खीजी, लेकिन फिर सामान को उसी तरह पड़ा छोड़ कर घर के दूसरे कामों में लग गई.
किन्ज़ान के कमरे में बीचों-बीच लोहे के तारों का वह ढांचा फैला पड़ा था, जिस पर रंगीन प्लास्टिक को मजबूती से मढ़ा जाना था. इस तरह तैयार हो रही थी वह जानलेवा बॉल, जिससे रस्बी की जिंदगी को हार जाने का खतरा था और किन्ज़ान की जिंदगी को जीत जाने की उम्मीद . वक्त तमाशबीन था.
रस्बी को चार साल पहले की वह घटना अकस्मात् याद आई, जब एक दिन उसके घर पर न होने पर किन्ज़ान अपने साथ स्कूल में पढ़ने वाली एक लड़की को घर ले आया था.तेरह साल के नासमझ किशोर की समझ से उस दिन रस्बी बुरी तरह डर गई थी...[जारी...]
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