भागती, दौड़ती, घबराती, और अपनी जिंदगी पर हैरान होती, रस्बी घर चली आई. वह आकर इस तरह अपने बिस्तर पर लेट गई, जैसे उसे कुछ पता न हो. उसे किन्ज़ान के बारे में भी कुछ पता न चला. वह कब आया, आया कि न आया.
वह एकटक छत की ओर देखती मन ही मन गुनगुनाने लगी-" सोना होगा सबको, आई पारसपत्थर लेकर रात...रात छुएगी जिसको-जिसको, भूल रहेगा दिन को..." नींद रस्बी की आँखों से कोसों दूर थी. उसकी थकान, उसकी बेचैनी, सब उसका साथ छोड़ गए थे. वह अब डर भी नहीं रही थी.उसे ऐसा लग रहा था, मानो वह उस फांसी-स्थल को अपनी आखों से देख आई हो, जहाँ उसके बेटे को नियति फांसी चढ़ाने वाली हो.
अचानक रस्बी जोर-जोर से रोने लगी. उसे इसी तरह रोते-रोते नींद आ गई.
रस्बी ने वह जल-प्रपात अपने जीवन में दर्ज़नों बार देखा था. उसे याद नहीं, कि उस अथाह जल-राशि के गिरते तूफ़ान ने उसे कभी भी यह संकेत दिया हो, कि एकदिन वह उससे उसका बेटा मांगेगा. झरने को पार करने के बाद बिजली के ज़लज़ले की तरह वर्लपूल तक जाता हुआ पानी एक ओर, और अपने पेट से पैदा किया रुई के फाहे जैसा बेटा, जो अब भी एक युवा होता किशोर ही था, दूसरी ओर.
रस्बी को किन्ज़ान की प्रेमिका मिल गई. उसने कस कर उसे पकड़ लिया. लड़की एक ओर तेज़ी से भागने लगी. रस्बी उसके पीछे-पीछे दौड़ी.रस्बी इस बदहवासी से दौड़ रही थी कि राह चलते लोग उसे पागल समझे.लड़की के हाथ में आते ही उसने लड़की को कन्धों से पकड़ कर झिंझोड़ डाला- बोल, बोल तू करेगी न इतना सा काम... तू मेरे बेटे से एक झूठ बोल देगी? लड़की ने डर और परेशानी से आँखे बंद कर लीं. वह कोई उत्तर नहीं दे सकी. रस्बी फिर चिल्लाई... तू झूठ बोल दे उस से... वह छोटा नहीं है... वह दुनिया जीतने का सपना देख सकता है, तो ऐसा भी कर सकता है...बोल, कहेगी न उस से जाकर...कह कि तेरे पेट में उसका बच्चा है...!
न जाने क्या हुआ, कि लड़की भी खो गई, और रास्ते के तमाशबीन भी...
रस्बी ने उस रात ऐसे न जाने कितने सपने देखे.
सुबह नाश्ता बनाते समय वह अचानक किन्ज़ान से बोली- दुनिया में पहले भी कोई ये काम कर चुका है, जिसके लिए तू अपनी हत्या करने जा रहा है?
इस दो-टूक सवाल से किन्ज़ान एकाएक सकपका गया. संभल कर बोला- तुम क्या कह रही हो माँ, हर काम दुनिया में कभी न कभी हुआ है, और किसी न किसी ने किया है.
मैं तुझ पर मेरे बेटे को मारने का केस करूंगी.
किन्ज़ान हंसा. फिर गंभीर होकर बोला- यदि मैं अपने मकसद में कामयाब हो गया तो? तुम मुकदमा हार जाओगी...कामयाब नहीं हुआ तो ...
-हाँ...हाँ...बोल आगे...रुक क्यों गया? बोल...आगे बोल...और रस्बी ने ओवन से निकली तेज़ गरम प्लेट झन्नाटेदार तरीके से किन्ज़ान के सर पर खेंच कर मारी...[जारी...]
वह एकटक छत की ओर देखती मन ही मन गुनगुनाने लगी-" सोना होगा सबको, आई पारसपत्थर लेकर रात...रात छुएगी जिसको-जिसको, भूल रहेगा दिन को..." नींद रस्बी की आँखों से कोसों दूर थी. उसकी थकान, उसकी बेचैनी, सब उसका साथ छोड़ गए थे. वह अब डर भी नहीं रही थी.उसे ऐसा लग रहा था, मानो वह उस फांसी-स्थल को अपनी आखों से देख आई हो, जहाँ उसके बेटे को नियति फांसी चढ़ाने वाली हो.
अचानक रस्बी जोर-जोर से रोने लगी. उसे इसी तरह रोते-रोते नींद आ गई.
रस्बी ने वह जल-प्रपात अपने जीवन में दर्ज़नों बार देखा था. उसे याद नहीं, कि उस अथाह जल-राशि के गिरते तूफ़ान ने उसे कभी भी यह संकेत दिया हो, कि एकदिन वह उससे उसका बेटा मांगेगा. झरने को पार करने के बाद बिजली के ज़लज़ले की तरह वर्लपूल तक जाता हुआ पानी एक ओर, और अपने पेट से पैदा किया रुई के फाहे जैसा बेटा, जो अब भी एक युवा होता किशोर ही था, दूसरी ओर.
रस्बी को किन्ज़ान की प्रेमिका मिल गई. उसने कस कर उसे पकड़ लिया. लड़की एक ओर तेज़ी से भागने लगी. रस्बी उसके पीछे-पीछे दौड़ी.रस्बी इस बदहवासी से दौड़ रही थी कि राह चलते लोग उसे पागल समझे.लड़की के हाथ में आते ही उसने लड़की को कन्धों से पकड़ कर झिंझोड़ डाला- बोल, बोल तू करेगी न इतना सा काम... तू मेरे बेटे से एक झूठ बोल देगी? लड़की ने डर और परेशानी से आँखे बंद कर लीं. वह कोई उत्तर नहीं दे सकी. रस्बी फिर चिल्लाई... तू झूठ बोल दे उस से... वह छोटा नहीं है... वह दुनिया जीतने का सपना देख सकता है, तो ऐसा भी कर सकता है...बोल, कहेगी न उस से जाकर...कह कि तेरे पेट में उसका बच्चा है...!
न जाने क्या हुआ, कि लड़की भी खो गई, और रास्ते के तमाशबीन भी...
रस्बी ने उस रात ऐसे न जाने कितने सपने देखे.
सुबह नाश्ता बनाते समय वह अचानक किन्ज़ान से बोली- दुनिया में पहले भी कोई ये काम कर चुका है, जिसके लिए तू अपनी हत्या करने जा रहा है?
इस दो-टूक सवाल से किन्ज़ान एकाएक सकपका गया. संभल कर बोला- तुम क्या कह रही हो माँ, हर काम दुनिया में कभी न कभी हुआ है, और किसी न किसी ने किया है.
मैं तुझ पर मेरे बेटे को मारने का केस करूंगी.
किन्ज़ान हंसा. फिर गंभीर होकर बोला- यदि मैं अपने मकसद में कामयाब हो गया तो? तुम मुकदमा हार जाओगी...कामयाब नहीं हुआ तो ...
-हाँ...हाँ...बोल आगे...रुक क्यों गया? बोल...आगे बोल...और रस्बी ने ओवन से निकली तेज़ गरम प्लेट झन्नाटेदार तरीके से किन्ज़ान के सर पर खेंच कर मारी...[जारी...]
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