किन्ज़ान भाव-विभोर हो गया. उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके इरादे को इतनी उम्मीद से लिया जायेगा. केवल एक माँ रस्बी को छोड़ कर दुनिया का हर आदमी जैसे उसके सपने के पूरा होने में दिलचस्पी रखता था. उसे तरह-तरह के प्रस्ताव भी मिलने शुरू हो गए थे.
अल्बानी के एक कालेज ने उसे आश्वासन दिया था, कि यदि वह अपने मिशन में कामयाब रहता है, तो उसे तैराकी का प्रशिक्षण देने के लिए कोच रखा जायेगा. किन्ज़ान इस प्रस्ताव से अभिभूत हो गया. उसने तो आजतक आजीविका के लिए सेना में भर्ती होने की अपनी माँ की हिदायत के अलावा और कोई रास्ता जाना ही नहीं था.
मैन-हट्टन की सडसठवीं स्ट्रीट में कपड़ों की धुलाई करने वाली एक चीनी महिला ने अखबार के माध्यम से किन्ज़ान से अनुरोध किया था कि वह जिन कपड़ों में नायग्रा को पार करेगा, उन्हें लौंड्री मालकिन ऊंची कीमत देकर खरीदना चाहेगी.
पिट्सबर्ग के एक भारतीय सज्जन ने घोषणा की थी कि सफल होने के बाद किन्ज़ान के नाम पर भारत में एक स्विमिंग-पूल निर्मित करवाएंगे.
रात साढ़े ग्यारह बजे जब किन्ज़ान और अर्नेस्ट कीमियागर के साथ डिनर खा रहे थे, कीमियागर के पास पच्चीसवीं गली से एक महिला की गुज़ारिश आई कि यदि किन्ज़ान अपने अभियान में उसके ब्राजीलियन नस्ल के छोटे पप्पी को साथ में रख सकता है, तो वह इस मुहिम के लिए दस हज़ार डॉलर देगी.
किन्ज़ान की आखों में आंसू आ गए. काश, एक बार, सिर्फ एक बार उसकी माँ भी कह देती कि "किन्ज़ान अपने मकसद में कामयाब हो, यह मेरा आशीर्वाद है".लेकिन उसकी माँ का उस पर अहसान था, उसका माँ पर नहीं, क्योंकि माँ ने उसे जन्म दिया था, किन्ज़ान उसे अब तक कुछ न दे पाया था, सिर्फ भय के अलावा.
रात के गहराते-गहराते किन्ज़ान से मिलने दो व्यक्ति आ गए. वे एक नामी-गिरामी कंपनी से आये थे, जो शहर के बीचों-बीच स्थित थी. कम्पनी हर साल अपने हजारों कर्मचारियों के लिए एक टापू पर स्थित भव्य बगीचे में एक गेट-टुगेदर आयोजित करती थी. उसमें सभी कार्मिक अपने परिवार के साथ उपस्थित होते थे. दिन-भर मनोरंजन और खानपान का दौर चलता था, मेलों की भांति आयोजन होता था. उनका कहना था कि यदि किन्ज़ान अपनी उस नौका का वहां प्रदर्शन करे, जिस से वह नायग्रा को पार करने वाला है, तो कंपनी उसके अभियान में खासी मदद करेगी. वहां उसकी नौका एक आकर्षण का केंद्र होगी, और उस पर कम्पनी की ओर से इस आशय का बैनर भी प्रदर्शित किया जायेगा...[जारी...]
अल्बानी के एक कालेज ने उसे आश्वासन दिया था, कि यदि वह अपने मिशन में कामयाब रहता है, तो उसे तैराकी का प्रशिक्षण देने के लिए कोच रखा जायेगा. किन्ज़ान इस प्रस्ताव से अभिभूत हो गया. उसने तो आजतक आजीविका के लिए सेना में भर्ती होने की अपनी माँ की हिदायत के अलावा और कोई रास्ता जाना ही नहीं था.
मैन-हट्टन की सडसठवीं स्ट्रीट में कपड़ों की धुलाई करने वाली एक चीनी महिला ने अखबार के माध्यम से किन्ज़ान से अनुरोध किया था कि वह जिन कपड़ों में नायग्रा को पार करेगा, उन्हें लौंड्री मालकिन ऊंची कीमत देकर खरीदना चाहेगी.
पिट्सबर्ग के एक भारतीय सज्जन ने घोषणा की थी कि सफल होने के बाद किन्ज़ान के नाम पर भारत में एक स्विमिंग-पूल निर्मित करवाएंगे.
रात साढ़े ग्यारह बजे जब किन्ज़ान और अर्नेस्ट कीमियागर के साथ डिनर खा रहे थे, कीमियागर के पास पच्चीसवीं गली से एक महिला की गुज़ारिश आई कि यदि किन्ज़ान अपने अभियान में उसके ब्राजीलियन नस्ल के छोटे पप्पी को साथ में रख सकता है, तो वह इस मुहिम के लिए दस हज़ार डॉलर देगी.
किन्ज़ान की आखों में आंसू आ गए. काश, एक बार, सिर्फ एक बार उसकी माँ भी कह देती कि "किन्ज़ान अपने मकसद में कामयाब हो, यह मेरा आशीर्वाद है".लेकिन उसकी माँ का उस पर अहसान था, उसका माँ पर नहीं, क्योंकि माँ ने उसे जन्म दिया था, किन्ज़ान उसे अब तक कुछ न दे पाया था, सिर्फ भय के अलावा.
रात के गहराते-गहराते किन्ज़ान से मिलने दो व्यक्ति आ गए. वे एक नामी-गिरामी कंपनी से आये थे, जो शहर के बीचों-बीच स्थित थी. कम्पनी हर साल अपने हजारों कर्मचारियों के लिए एक टापू पर स्थित भव्य बगीचे में एक गेट-टुगेदर आयोजित करती थी. उसमें सभी कार्मिक अपने परिवार के साथ उपस्थित होते थे. दिन-भर मनोरंजन और खानपान का दौर चलता था, मेलों की भांति आयोजन होता था. उनका कहना था कि यदि किन्ज़ान अपनी उस नौका का वहां प्रदर्शन करे, जिस से वह नायग्रा को पार करने वाला है, तो कंपनी उसके अभियान में खासी मदद करेगी. वहां उसकी नौका एक आकर्षण का केंद्र होगी, और उस पर कम्पनी की ओर से इस आशय का बैनर भी प्रदर्शित किया जायेगा...[जारी...]
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