नायग्रा फाल्स के समीप स्थित इसी बफलो विश्वविद्यालय के मुख्यद्वार के पास कुछ युवाओं ने पिछली शाम अपने कैमरे से फोटो खींचते समय एक वृक्ष की पतली सी टहनी पर किस नज़ारे को कैमरे में कैद कर लिया, ये शायद वे भी नहीं जानते थे. वैसे भी युवा पर्यटक घूमते हुए जिन कोणों को क्लिक करते हैं, उनमें ज़्यादातर चेहरे ही होते हैं.भीड़-भरे पर्यटन-स्थलों से एक दूसरे के कैमरों में दर्ज होकर न जाने क्या-क्या कहाँ से कहाँ तक पहुँच जाता है.बाद में इन्हीं में से कुछ चीज़ें तरह-तरह से सामने आ जाती हैं, और प्रसिद्ध हो जाती हैं.पेड़ की उस टहनी पर एक छोटा सा तिनकों से बना घर था, जो यदि किसी चिड़िया का बनाया हुआ होता तो घोंसला कहलाता, पर वह घर ही था , क्योंकि उसे किसी चिड़िया ने नहीं बल्कि इंसानों ने बनाया था, मात्र सजावट के लिए.
ऐसा बहुत कम ही हो पाता था कि किसी आने-जाने वाले का ध्यान उस पर जाये, लेकिन अनजाने ही वह किसी कैमरे में दर्ज हो गया. आपस में बातें करते हुए न जाने कितने लोग रोज़ वहां से गुजरते थे. उन लोगों में न जाने कहाँ-कहाँ से आये लोगों का शुमार था.
नायग्रा के गिरते हुए पानी का नज़ारा देखने के लिए पहले एक लिफ्ट से ज़मीन से काफी नीचे जाना होता था, फिर शिप में बैठ कर लहरों पर किसी राजहंस की सी शान और गति से अथाह पानी के गिरते दरिया से सामना होता था. पानी का वेग और मात्रा देख कर लोगों को समुद्र के भीतर बने किसी लोक का अहसास होता था. असीमित पानी के इस दर्शन से पहले या बाद में आसपास के इलाके को घूमना लोगों को शायद इसीलिए सुहाता था. और गुज़रे समय के ऐसे ही क्षणों में कई लोगों ने इस उफनते मचलते सागर को नापने के तरह-तरह से प्रयास किये थे.
कहते हैं कि ऐसे ही स्थानों पर, जहाँ इंसानी किस्म की कोई सीमा नहीं होती, "आत्माएं" रहना पसंद करती हैं. कहा जाता है कि संसार में करोड़ों लोग आते-जाते रहते हैं, फिर भी कुछ लोग दुनिया में आने के बाद विभिन्न कारणों से यहाँ से जाने से रह जाते हैं, जिनमें सुख-दुःख-अन्याय-जिज्ञासा-चमत्कार-दुर्भाग्य-सौभाग्य-संशय आदि विभिन्न कारणों से दुनिया में ही रह जाने वालों का समावेश होता है. शरीर को तो प्राकृतिक रूप से मिला समय पूरा होने पर वापस मिट्टी में मिलना होता है, लेकिन प्राण कई बार इस चक्र से उछट कर संसार में बने रह जाते हैं, और फिर मायावी शक्तियों से अपना अधूरा अभीष्ट पूरा करते हैं. इन्हें ही कहीं कोई भूत-प्रेत कहता है तो कोई आत्मा.
एक पर्यटक के कैमरे में कैद पेड़ की टहनी पे लटके घर ने सबको असमंजस में डाल दिया.[ जारी...]
ऐसा बहुत कम ही हो पाता था कि किसी आने-जाने वाले का ध्यान उस पर जाये, लेकिन अनजाने ही वह किसी कैमरे में दर्ज हो गया. आपस में बातें करते हुए न जाने कितने लोग रोज़ वहां से गुजरते थे. उन लोगों में न जाने कहाँ-कहाँ से आये लोगों का शुमार था.
नायग्रा के गिरते हुए पानी का नज़ारा देखने के लिए पहले एक लिफ्ट से ज़मीन से काफी नीचे जाना होता था, फिर शिप में बैठ कर लहरों पर किसी राजहंस की सी शान और गति से अथाह पानी के गिरते दरिया से सामना होता था. पानी का वेग और मात्रा देख कर लोगों को समुद्र के भीतर बने किसी लोक का अहसास होता था. असीमित पानी के इस दर्शन से पहले या बाद में आसपास के इलाके को घूमना लोगों को शायद इसीलिए सुहाता था. और गुज़रे समय के ऐसे ही क्षणों में कई लोगों ने इस उफनते मचलते सागर को नापने के तरह-तरह से प्रयास किये थे.
कहते हैं कि ऐसे ही स्थानों पर, जहाँ इंसानी किस्म की कोई सीमा नहीं होती, "आत्माएं" रहना पसंद करती हैं. कहा जाता है कि संसार में करोड़ों लोग आते-जाते रहते हैं, फिर भी कुछ लोग दुनिया में आने के बाद विभिन्न कारणों से यहाँ से जाने से रह जाते हैं, जिनमें सुख-दुःख-अन्याय-जिज्ञासा-चमत्कार-दुर्भाग्य-सौभाग्य-संशय आदि विभिन्न कारणों से दुनिया में ही रह जाने वालों का समावेश होता है. शरीर को तो प्राकृतिक रूप से मिला समय पूरा होने पर वापस मिट्टी में मिलना होता है, लेकिन प्राण कई बार इस चक्र से उछट कर संसार में बने रह जाते हैं, और फिर मायावी शक्तियों से अपना अधूरा अभीष्ट पूरा करते हैं. इन्हें ही कहीं कोई भूत-प्रेत कहता है तो कोई आत्मा.
एक पर्यटक के कैमरे में कैद पेड़ की टहनी पे लटके घर ने सबको असमंजस में डाल दिया.[ जारी...]
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