Sunday, October 23, 2011

वे नब्बे साल के अनुभवी बुज़ुर्ग और वह सत्ताईस साल का नादान

उनकी उम्र नब्बे साल है. खुदा का शुक्र है कि अभी भी अपने सब काम वे अपने हाथों से करते हैं. कुछ दिन पहले वे आधी रात में बिस्तर से उठ कर शौचालय जा रहे थे, जो कुछ ही दूरी पर था. अचानक उन्हें ऐसा लगा जैसे 'भगवान शिव'स्वयं उनके सामने आकर खड़े हो गए हों. बिलकुल वही आकार-प्रकार जो वे रोज़ पूजा में देखते आये थे.वे हतप्रभ रह गए, और दोनों हाथ जोड़ दिए. संयोग से उस समय वह छड़ी  भी हाथ में नहीं थी, जो वे अमूमन साथ रखते हैं.
इतना ही नहीं, लौटते समय वही मूरत फिर उनके सामने आई. अबकी बार वे बोल भी पड़े- महाराज, क्यों मेरे सामने बार-बार आ रहे हो, क्या मुझसे कोई भूल हो गई? मूर्ति अंतर्ध्यान हो गई.
जब वे बिस्तर पर आकर लेटे, तो उन्हें ऐसा लगने लगा, मानो वे समुद्र की तेज़ लहरों में डूबते जा रहे हों. बार-बार लहरें उन्हें गहराई की ओर ले जा रही थीं, जैसे वे डूबते जा रहे हों. 
अगली सुबह वह बहुत प्रफुल्लित थे, और हर आने-जाने वाले को अपनी रात की आपबीती सुना रहे थे. वे यह देख कर और भी प्रमुदित थे कि रोजाना में उनकी बात अनसुनी  कर चले जाने वाले लोग भी आज उन्हें ध्यान से सुन रहे हैं.मानो दिन ही पलट गए उनके. 
उनके छोटे बेटे का लड़का डाक्टर था. उम्र कुल सत्ताईस साल, पर बेहद प्रखर बुद्धि वाला. वह दूसरे कमरे में बैठा अपनी दादी को प्यार से समझा रहा था कि दादाजी की आँख का मोतिया-बिन्द इतना पक गया है कि उन्हें कभी-कभी  अपनी परछाई भी काली,  आकार लेकर चलते फिरते दूसरे आदमी की तरह दिखाई देती है.रात को कभी-कभी उनका ब्लड-प्रेशर भी बहुत कम हो जाता है, खासकर शौच से आने के बाद. दादी हैरानी से देख रही थी कि यह वही छुटका है, जो पैदा होने के बाद उसके  हाथों से खरगोश की तरह फिसलता था.        

6 comments:

  1. रोचक! यदि समय मिले तो मेरी निम्न लघुकथा पर एक दृष्टिपात कीजिये:
    पागल – लघु कथा

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  2. aapke kahne se pahle hi mujhe aapki rachnaon ko padhna chahiye tha, khair, der ab bhi nahin hui hai.

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  3. सुबोध जी,
    मेरा मतलब वह नहीं था. दरअसल, आपकी इस पोस्ट पर मेरी वह लघुकथा एक आंशिक पर सटीक टिप्पणी थी, बस इतना ही.

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  4. aapne mera naam badal diya.vaise ye naam bhi aparichit nahin hai, mere bhai ka naam hai yah.

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  5. सॉरी अगेन! मैं भी न बस ... दीपावली शुभ हो!

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